शनिवार, 6 जुलाई 2013

अंतिम संस्कार के अनोखे तरीके !

मृत्यु निश्चित है, जिंदगी और मौत का खेल पृथ्वी पर तब से चला आ रहा है, जब से जीवन चक्र शुरू हुआ। जो आया है उसे जाना ही होगा और जब वह जाता है, तो उसके प्रियजन उसे आंखों में आंसू भरकर विदा करते हैं और करते हैं उसका अंतिम संस्कार।
       सामान्य दफनाने और दाह संस्कार करने की क्रियाओं के अलावा दुनिया में अंतिम संस्कार के ऐसी प्रथाए हैं, जिन्हें जानकर आपको मौत से ज्यादा भयानक यह काम लगेगा। शव के साथ परंपराओं के नाम पर कई सारी चीजें होती हैं और इन्हें जानकर लगेगा की अगर मृत व्यक्ति को अगर पता चलता हो कि मरने के बाद उसके साथ कई जगह ऐसा भी होता है, तो उसे कैसा लगेगा।
        बहरहाल, यह तो एक कल्पना है, लेकिन हम जो आपको बता रहे हैं वह सच्चाई है, जिसे जानने के लिए आगे पढ़िए !


गिद्धों के भरोसे शव तिब्बत में नियिंगमा परंपरा के तहत आकाश के तले अंतिम संस्कार करने का ऐसा विधान है, जहां मृत शरीर को मांसाहारी पक्षियों का भोजन बनने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब ये गिद्ध मृत के मांस को नोच-नोच कर खा चुके होते हैं उसके बाद शव की बची हुई हड्यिों के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं और इसे स्काई बेरीअल कहा जाता है। मृत की आत्मा शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। इस दौरान तिब्बती बुक ऑफ द डेथ भी पढ़ी जाती है।
                                 कोरिया में अंतिम संस्कार
कोरिया में अंतिम संस्कार की विचित्र विधि मृतक के घर में की जाती है। नियम के अनुसार मृतक की मौत के 3 दिन बाद सुबह यह संस्कार किया जाता है। इसके तहत मृतक को उसके पारिवारिक कब्र में दफन किया जाता है। शोकाकुल परिवार अंतिम संस्कार वाले कपड़े पहनता है और यहां की महिलाएं ऐसे हेयर क्लिप और हेयर बैंड पहनती हैं, जो रस्सी या सन से बने होते हैं और प्रतीक होते हैं परिवार के विलाप का।
                             शव के लिए आंसू नहीं बहाना
बाली, इंडोनेशिया में मृतक को जीवित की तरह माना जाता है और कहा जाता है कि वह तो अभी सो रहा है। साथ ही आंसू बहाने पर भी मनाही है.! वे पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि मृत्यु चक्र से मृतात्मा मुक्त हो गई है और उसे मोक्ष मिल गया है और अब मृत नया जन्म ले चुका है।
मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ताबूत में रखा जाता है या फिर एक मंदिर नुमा कागज और लकड़ी का स्ट्रक्चर बनाकर उसके अंदर रखा जाता है और संस्कार स्थल तक बैलों से जुती सवारी में ले जाया जाता है और उसके साथ एक जुलूस होता है। इस मार्च के दौरान विलाप करने वाले ये मानते हैं कि एक लाइन में नहीं चलना चाहिए। वे इस शव यात्रा में इधर-उधर होकर बुरी आत्माओं को भ्रम में डालने की परंपरा निभाते हैं, जो मृत आत्मा का पीछा कर रही होती हैं। इस पूरी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को नाकाबेन कहा जाता है और फिर अंतिम क्रिया में इस पूरे मंदिरनुमा ढांचे या ताबूत को आग के हवाले करके क्रिया पूरी कर दी जाती है।
                              घर में ही दफनाते हैं शव को
मायन, दक्षिणी मैक्सिको में अधिकतर वर्गों में मृत व्यक्ति को घर में ही दफन करने की परंपरा है और ऐसा माना जाता है कि इस तरह से उनका प्रिय उनके ज्यादा करीब होता है। गरीबी भी इसके पीछे एक वजह बताई जा रही है और अंतिम संस्कार का पैसा व्यवस्था न होने के कारण वहां इस तरह से घर में ही गढ्ढा खोदकर मृत को गाढ़ दिया जाता था और आज भी यह परंपरा कई जगह है। फिलीपींस के अपायाओ आदिवासियों में भी रसोईघर के अंदर मृत को दफनाने की परंपरा है।
                             समंदर में अंतिम संस्कार
समंदर में भी अंतिम संस्कार की क्रिया का विधान कई जगह है। इसके तहत शव को बोट या जहाज से समंदर में डाल दिया जाता है। नेवी और जहाजी बेड़ों के लिए काम करने वाले व समंदर के प्रोफेशन से जुड़े लोगों में संस्कार की यह परंपरा का विधान है। प्राइवेट सिटीजंस को भी उनके धर्म के अनुसार समंदर में संस्कार करने की इजाजत होती है। इसके तहत शव को ताबूत में रखा जाता है। शव न हो तो फिर उसकी मिट्टी या राख को भी समंदर में डाला जाता है।
                                      बैल के मूत्र से पवित्रीकरण
जोरास्ट्रीयन परंपरा के तहत मृत शरीर को बैल के मूत्र को पानी के साथ मिलाकर पवित्र किया जाता है, जिसे गोमेज Gomez  कहा जाता है। केवल प्रोफेशनल जोरास्ट्रीयन ही शव के पास इस क्रिया के लिए जा सकता है और यह शुद्धीकरण कर सकता है। इसके बाद शव को सफेद कपड़े पर लेटाया जाता है। शोकाकुल लोगों को शव को छूने की सख्त मनाही होती है। कुत्ते को दो बार शव के पास इसलिए लाया जाता है कि मृत व्यक्ति को बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल सके और कुत्ते की दृष्टि शव पर डलवाई जाती है इस परंपरा को सेगडिड “Sagdid”  कहा जाता है...

इसके बाद शव को पत्थर की एक शिला पर रखा जाता है और इसे गिद्धों का भोजन बनने के लिए छोड़ दिया जाता है और गिद्ध शव का मांस नोच-नोच कर खा जाते हैं। शुद्धीकरण के लिए मृत व्यक्ति के कमरे के बाहर सारी क्रियाएं होने के बाद चंदन और लुभान जलाया जाता है। इनके अंतिम संस्कार स्थल को धकमा या टॉवर ऑफ साइलेंस कहा जाता है। भारत में इस तरह के अंतिम संस्कार के लिए इस समुदाय के लोग बंगली बंगलों का उपयोग करते हैं, जिसे फ्यूनरल होम कहा जाता है, जो अस्थाई मकान होते हैं। इस तरह के बंगली में बेडरूम, बाथ रूम और किचन, डायनिंग रूम सारी व्यवस्थाएं भी होती हैं।
                                         ताबूत को लटकाते हैं
चीन में और फिलीपींस में कई जगह ताबूत में शव को रखकर चट्टानों पर लटकाने की परंपरा भी है और माना जाता है कि मृत ऐसा करने से स्वर्ग के करीब होगा और दक्षिणी चीन में भी यही होता है आदिवासियों की अंतिम संस्कार की परंपरा के तहत।
                                कुर्सी पर बैठाकर अंतिम संस्कार
फिलीपींस के बैंकुएट क्षेत्र के आदिवासियों में मृत व्यक्ति के लिए 8 दिन तक विलाप किया जाता है और फिर शव को कुर्सी पर बैठकार उसके हाथ-पैर और भुजाएं रस्सी से बांधते हैं। फिर इसे घर के प्रवेश द्वारा पर रखा जाता है और कम्युनिटी के सारे लोग एकत्र होकर भजन और गीत के रूप में मृत के जीवन का गान करते हैं और एक पार्टीनुमा आयोजन होता है और शव का चेहरा स्वर्ग की ओर रखने की परंपरा है। टिनक्यूइयन आदिवासियों में मृत को दूल्हे के कपड़े पहनाए जाते हैं और शव को कुर्सी पर बैठाया जाता है और शव के होठों से तंबाखू लगाई जाती है।
शव के मुंह में चॉपस्टिक रखते हैं
वियतनाम में अंतिम संस्कार की अजीब परंपरा के तहत किसी के माता या पिता का देहांत होता है, तो उनके बच्चे इस घटना को स्वीकारते नहीं हैं। शव के दांतों के बीच में इस परंपरा में चॉपस्टिक रखी जाती है और शव को चटाई पर लेटाया जाता है। इसके बाद मृत का बड़ा बेटा या बेटी मृत के सारे कपड़े उतारता है और उन्हें हवा में लहराया जाता है और उसकी आत्मा को पुकार लगाई जाती है कि मृत के शरीर में वह वापस आ जाए। 
इस परंपरा के बाद उसके बालों पर कंघी की जाती है, नाखून काटे जाते हैं और महिला शव को उसी अंदाज में सजाया जाता है और सजीव संसार की गंदगी और धूल को हटाया जाता है शव पर से। फिर वे शव के मुंह में चावल, सोना रखते हैं ताकि मृतात्मा भूखी न रहे और फिर सफेद कफन में लपेट कर उसे दफन कर दिया जाता है।
                                      अंतरिक्ष, अंतिम संस्कार
यह भी अंतिम संस्कार की अजीब परंपरा है इसके तहत मृत के संस्कार की या दफन की मिट्टी को या राख को लिपस्टिक जैसी ट्यूब में रखा जाता है और स्पेस में रॉकेट से लांच कर दिया जाता है। आज से 15 साल पहले टीवी पर आने वाले धारावाहिक स्टार ट्रेक के प्रोड्यूसर और स्क्रीन राइटर जेन रोडेनबेरी का अंतिम संस्कार ऐसे ही हुआ था और वे पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका स्पेस बेरिअल हुआ।

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