मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

परदे के पीछे से इन नक्सलियों को हवा कौन दे रहा है

कल सुकमा में जो हुआ, उसका सभी ऐसे भारत वासियों को गहरा दुःख होगा , जो ऐसी घटनाओं को सीधे सीधे देखते हैं और सोचते हैं कि हमारे अपने ही देश में ऐसे कौन लोग हैं जो देश की सुरक्षा (चाहे आंतरिक हो या बाह्य) लिये अपनी जान हथेली पर लेकर चलने वाले नौजवानों को बेरहमी से और कायराना तरीके से हमेशा के लिये सुला देते हैं ?
इसका जबाव बहुत ईमानदारी से ढूंढ़ना है तो ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि में जाना होगा ।
बस्तर में चल रहा नक्सली आंदोलन अपनी आखिरी सांसें ले रहा है । जाहिर है कि जब नक्सली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तो उसमें वे सबसे घातक भी होंगे । ये जो सशस्त्र संघर्ष है, ये तो उस हिंसक विचारधारा का एक विद्रूप चेहरा मात्र है जो दिल्ली में JNU से लेकर बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय तक देश में नयी आकार लेती राष्ट्रवादी विचारधारा से अपने को अत्यंत आतंकित और भयभीत महसूस कर रही है । क्यों केजरीवाल और ममता बैनर्जी मोदी से अपने आप को इतना आतंकित महसूस करते हैं ? क्यों ये दोनों मुख्यमंत्री नीति आयोग की 2022 के भारत के लिये आयोजित vision पर चर्चा के लिये उपस्थित नहीं होते ? कौन परदे के पीछे से इन नक्सलियों को हवा दे रहा है, संचालित कर रहा है ? कौन अपनी राजनीति ख़त्म होने के डर से कश्मीर से लेकर केरल तक और गुजरात से लेकर मणिपुर तक राष्ट्रविरोधी ताकतों को भड़का रहा है ? ये सारे मोर्चे एक साथ यूपी में हुयी विराट जीत के बाद और उग्रता से क्यों खुल रहे हैं ? इन सब यक्ष प्रश्नों का उत्तर बहुत चतुराई और साहस के साथ ढूँढना भी होगा और परदे के पीछे की ताक़तों को बेनक़ाब भी करना होगा । यही मोदी सरकार की सबसे कड़ी अग्नि परीक्षा भी है । अगर आपने इस देश से भ्रष्टाचार और राष्ट्र विरोधी ताक़तों को ख़त्म करने का संकल्प लिया है तो इसे दृढ़ता और कठोरता के साथ समाप्त करने के उपाय भी करने होंगे और कदम भी उठाने होंगे ।
सुकमा के संदर्भ में ही एक छोटी सी जानकारी बहुत प्रासंगिक है । छत्तीसगढ़ में IG स्तर के एक आईपीएस अधिकारी हैं, शिवराम प्रसाद कल्लूरी, जिन्हें नक्सलियों के विरुद्ध लड़ाई में राज्य का सबसे सफल और असरदार अधिकारी माना जाता है । उन्होंने राज्य के उत्तरी इलाके (सरगुजा), जो कि झारखण्ड से लगता है, से नक्सलियों का जड़ से सफाया कर दिया । उन्हें इस मामले में कुछ हद तक छत्तीसगढ़ का केपीएस गिल भी कहा जा सकता है । अभी कुछ महीने पहले तक वे बस्तर के IG थे और उन्होंने सुकमा जिले को 2018 के पहले नक्सलमुक्त करने की घोषणा तक की थी । उनके कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों का तेजी से सफाया हुआ और सुकमा से उनके पैर उखड़ गये थे । लेकिन लगभग 2 महीने पहले नक्सलियों के दिल्ली में बैठे आकाओं ने उनको मानवाधिकार उल्लंघन मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फंसा दिया और छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर उनको हटा दिया । न केवल हटाया बल्कि लंबी छुट्टी पर भी भेज दिया ।
उनके बस्तर के IG पद से हटने के बाद 2 महीनों में ये दूसरा बड़ा हमला है । मार्च में CRPF के 11 जवान शहीद हुए और अब 26 जवान । नक्सली फिर सुकमा में अपनी मज़बूती दर्ज़ करा रहे हैं । यही उनकी लड़ाई का तरीका है ।

अब ये समझा जा सकता है कि क्या नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई ऐसे लड़ी जा सकती है ?
कहने का अर्थ ये है कि जो दिखता है, वो अधूरा सच है और उसे पूर्णता में देखने के लिये हमेशा बड़ी पिक्चर को देखना चाहिये । तभी पूरा सच सामने आता है ।
शहीद वीर जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि और ऐसे नेताओं को ईश्वर जल्दी उठायें जो देश की रक्षा में शहीद होने वालों की जान की कीमत पर अपनी राजनीति चमकाने का सपना सँजोये हुए हैं ।

इस्लाम की निशानियां मिटाने का विरोध क्यों नहीं होना चाहिए

सऊदी अरब ने मोहमद साहब के जन्म स्थान.. और उस पहाड़ी जहाँ उन्होंने पहली बार उपदेश दिया था.. उसके उपर बुलडोजर चलवाकर प्रिंस के लिए आलिशान महल और पार्किंग बनवा दी
पिछले कुछ सालों में सऊदी सरकार ने वह तमाम ऐतिहासिक निशानियां मिटा दीं जो पैगम्बर मुहम्मद साहेब से जुड़ी थीं। मेरे एक मित्र पिछले साल हज से लौटे तो वह बहुत दुखी थे। उन्होंने बताया जहां कल तक पैगम्बर साहब के शुरूआती साथियों की कब्रें थीं वे अब नजर नहीं आतीं। कई ऐतिहासिक मस्जिदें जिन्हें हम पवित्र मानते थे वहां अब बिजनेस सेंटर या शाही परिवार का महल नजर आता है। कहीं-कहीं तो इन प्राचीन इमारतों को तोड़ कर भव्य पार्किंग बना दी गई।
  मक्का में हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहब का जन्म जिस घर में हुआ उसके तमाम पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं। क्योंकि यह घटना बहुत पुरानी नहीं। मोहम्मद साहेब का जन्म 570 ईसवी में हुआ था। इसमें कोई विवाद भी नहीं है। बाद में उसे लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया था। उस घर को गिरा दिया गया।
हजरत के दौर की कई मस्जिदें और इमारतें मक्का में अभी दो चार साल पहले तक मौजूद थीं जिन पर अरब के बादशाह ने बुलडोजर चला कर जमींदोज कर दिया। इसमें पैगम्बर की पहली नेकदिल बेगम खदीजा का घर भी शामिल था। इसमें इस्लाम के पहले खलीफा अबू बकर का घर भी शामिल है जहां आज होटल हिलटन खड़ा है। जिस ऊंची पहाड़ी की चोटी "फारान" से हजरत मोहम्मद साहब ने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की थी, आज वहां सऊदी शाह ने अपना आलीशान महल बनवा दिया है। मक्का से लौटे अपने दोस्त की इस बात पर मुझे यकीन नहीं हुआ। मैंने अपने दूसरे हिन्दुस्तानी मुस्लिम दोस्तों से इस बारे में पूछा तो जैसी की उम्मीद थी उनका कहना था कि ये गप्प है बकवास है। मैंने नेट खंखाला तो उसमें इस तरह की कई सूचनाएं थीं। फिर भी मुझे यकीन नहीं हुआ तो मैंने सऊदी में रहने वाले अपने दोस्त  को फोन लगाया। उन्होंने मुझसे कहा ये सच है। मेरा दिल बैठ गया।
नेट पर ही मैंने सऊदी सरकार का इस पर बयान पढ़ा कि पैगम्बर साहब का मकान इन भव्य इमारतों के पास पार्किंग के स्थान में अवरोध पैदा करता था। इस मकान के कारण रास्ता तंग हो गया और वाहनों के आने-जाने में लगातार बाधा होती थी। इसलिए इस घर को ध्वस्त करना जरूरी हो गया था। हैरत की बात है कि पैगम्बर साहब का घर तोड़ते वक्त विरोध की एक भी आवाज दुनिया के किसी कोने से नहीं सुनाई दी। इस्लामिक जगत में ऐसी चुप्पी और खामोशी अजब है। मैंने अपने एक मुसलमान दोस्त से पूछा तो उनका जवाब था-किस मुसलमान में हिम्मत है कि वह अरब के शाह के खिलाफ आवाज उठाए। जो उठाएगा वह दोजख में जाएगा। उसकी आने वाली नस्लों का हज पर जाना बंद हो जाएगा। फिर आगे वह बोले कि वैसे इसमें गलत क्या है? पैगम्बर का पुश्तैनी घर, उनकी बेगमों के घर, पुरानी मस्जिदें, ये सब इमारतें हाजियों की सुविधा के लिए गिराई गईं। इस्लाम प्रतीक पूजा की इजाजत नहीं देता। हम मुसलमानों की श्रद्धा हज यात्रा में है प्रतीकों में नहीं।
मैंने सिर्फ तर्क के लिए कहा-फिर बाबरी मस्जिद के ढहाने पर पूरी दुनिया का इस्लाम नाराज क्यों है? उसके नाम पर क्यों दंगे हुए? कुछ उन्मादियों की हरकत के बदले सड़क पर दोनों तरफ के लोगों के खून क्यों बहाए गए? (हालांकि निजी तौर पर उसके ढहाए जाने को गैर अखलकी कदम मानता हूं क्योंकि हमारा संविधान इसकी इजाजत नहीं देता) वे जवाब नहीं दे पाए। मैं अपने अन्य मुस्लिम और कम्युनिस्ट दोस्तों से इस सवाल का जवाब मांगता हूं। इस्लाम की निशानियां मिटाने का विरोध क्यों नहीं होना चाहिए? अरब के ऐसे शाह का हाथ क्यों चूमा जाए जिसने इन पवित्र स्‍थानों को नेस्तानबूद कर दिया ? 
उम्मीद है मुझे तर्कपूर्ण जवाब मिलेगा।