शुक्रवार, 25 मार्च 2016

हम वीर सावरकर के भक्त क्यों है ?



परम पूज्य वीर सावरकर


1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ...
3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी...
4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी...
5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया...
6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया... इसके विरोध में हड़ताल हुई... स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया...
8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया...
9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे '1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था...
10. '1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी...
11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे...
12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया...
13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी...
14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया."
15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला...
16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..
17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा...
18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-
'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..
19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था...
20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...
21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था....
22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया...
23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..


24. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया...
पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है।

विनायक दामोदर सावरकर जी की जीवन यात्रा...


महाराष्ट्र के भगूर गाँव जिला नासिक में २८ मई , १८८३ को जन्मे विनायक दामोदर सावरकर की माता राधा बाई और पिता दामोदर पन्त सावरकर थे। बहन नैना बाई तथा बड़े भाई गणेश बाबा राव और छोटे भाई नारायण राव सहित विनायक दामोदर सावरकर सभी राष्ट्रवादी प्रवृति के थे।
नासिक से ही १९०१ में मैट्रिक पास करने वाले विनायक राव ने मित्र मेला संगठन का गठन स्वाधीनता प्राप्ति के उद्देश्य से किया था। माता-पिता दोनों के देहांत के पश्चात् घर की जिम्मेदारी का भार बड़े भाई गणेश राव ने अपने कंधो पर लिया और अपने होनहार भाई विनायक को उच्च शिक्षा हेतु फग्युसन कॉलेज - पूना में जनवरी १९०२ में दाखिला दिला दिया।
इसी दौरान रामचंद्र त्रयम्बक चिपलूनकर की पुत्री यमुना बाई आपकी जीवन संगिनी बनी। स्नातक की शिक्षा फग्युसन कॉलेज - पूना से ही विनायक ने पास करी। इसी समय बंगाल विभाजन के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन शुरु हुआ था। दशहरे के दिन विनायक दामोदर सावरकर ने भी विदेशी वस्त्रो की होली जलाई तथा सार्वजनिक सभा आयोजित करके जबरदस्त भाषण दिया। इसके परिणाम स्वरुप कॉलेज से आपको दंड भी मिला।
स्नातक की शिक्षा ग्रहण के पश्चात् कानून की शिक्षा ग्रहण करने हेतु विनायक मुंबई गये। अपने मन के भावो को लेखनी के माध्यम से कागज़ पर उकेरते हुये मुंबई में बिनायक ने मराठी के साप्ताहिक पत्रों में लिखना प्रारंभ किया। मुंबई में मित्र मेला संगठन का नाम बदल कर अभिनव भारत कर दिया।
उधर इंग्लैंड में १८ फ़रवरी , १९०५ को बीस भारतीयों ने श्याम जी कृष्ण वर्मा की अध्यक्षता में इंडियन होम रुल सोसायटी की स्थापना भारतीयों द्वारा भारतीयों के लिए भारतीय सरकार की स्थापना के उद्देश्य के साथ की थी।मई , १९०५ में इंडिया हाउस खोलकर भारतीय क्रांतिकारियों को लन्दन में ठहराने की व्यवस्था हुई। इंग्लैंड में इण्डिया हाउस की स्थापना कर भारतीय होनहार युवको को उच्च शिक्षा व छात्र वृत्ति प्रदान करने का महती काम श्याम जी कृष्ण वर्मा आदि ने किया।
विनायक दामोदर सावरकर भी इसी छात्रवृत्ति पर इंग्लैंड गये। जुलाई , १९०६ को लन्दन पहुँच कर विनायक दामोदर सावरकर ने बैरिस्टरी में प्रवेश लिया और इण्डिया हाउस में ही रहने लगे। विनायक ने यहाँ भी अभिनव भारत का काम शुरु कर दिया। ब्रिटेन में इण्डिया हाउस वह स्थान बन गया था जहा भारत की आजादी के क्रांतिकारी आन्दोलन की जमीन तैयार की गयी।
इण्डिया हाउस में भारत में घटित घटनाओ पर , समस्याओ पर विचार-विमर्श होता रहता था। खुदीराम बोस-प्रफुल्ल चाकी प्रकरण में मुखबिरी करने वाले नरेन्द्र गोस्वामी को कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र बोस ने जेल के अस्पताल में मौत के घात उतार दिया था , इस हत्या कांड में विनायक दामोदर सावरकर संदेह के घेरे में आये। ४ मई १९०६ को इण्डिया हाउस की सभा में विठ्ठल भाई पटेल और भाई परमानन्द की मौजूदगी में बारीसाल में बंगाल प्रादेशिक सम्मेलन को भंग करने तथा सुरेन्द्र नाथ बनर्जी को गिरफ्तार करने की भारत सरकार की कार्यवाहियों की भर्त्सना की गयी।
इंडिया हाउस में हर १० मई को ग़दर दिवस मनाया जाता था। ग़दर दिवस मनाने का विचार कैसे उत्पन्न हुआ , यह चित्रगुप्त रचित बैरिस्टर सावरकर का जीवन की इन पंक्तियों से समझा जा सकता है ------ " १९०७ में अंग्रेजो ने विचार किया की १८५७ के गदरियों पर जीत हासिल की पचासवीं वर्षगांठ मनानी चाहिए।
१८५७ की याद ताज़ा करने के लिए हिंदुस्तान और इंग्लॅण्ड के प्रसिद्ध अंग्रेजी के अखबारों ने अपने-अपने विशेषांक निकले , ड्रामे किये गये और लैक्चर दिये गये और हर तरह से इन कथित गदरियों को बुरी तरह से कोसा गया। यहाँ तक कि जो कुछ भी इनके मन में आया , सब उल-जुलूल इन्होने गदरियों के खिलाफ कहा और कई कुफ्र किये। इन गालियों और बदनाम करने वाली कार्यवाहियों के विपरीत सावरकर ने १८५७ के हिन्दुस्तानी नेताओ - नाना साहेब , महारानी झाँसी , तात्या टोपे , कुंवर सिंह , मौलवी अहमद साहिब की याद मनाने के लिए काम शुरु कर दिया , ताकि राष्ट्रीय जंग के सच्चे सच्चे हालात बताये जा सके।
यह बड़ी बहादुरी का काम था और शुरु भी अंग्रेजो की राजधानी में किया गया। आम अंग्रेज नाना साहेब और तात्या टोपे को शैतान के वर्ग में समझते थे , इसलिए लगभग सभी हिन्दुस्तानी नेताओ ने इस आज़ादी की जंग को मनाने वाले दिन में कोई हिस्सा ना लिया। लेकिन मि ० सावरकर के साथ सभी नौजवान थे।
हिन्दुस्तानी घर में एक बड़ी भारी यादगारी मीटिंग बुलाई गयी। उपवास किये गये और कसमे ली गयी कि उन बुजुर्गो की याद में एक हफ्ते तक कोई एयाशी की चीज इस्तेमाल नहीं कि जाएगी। छोटे-छोटे पम्पलेट ओह शहीदों के नाम से इंग्लॅण्ड और हिंदुस्तान में बांटे गये। छात्रों ने ऑक्सफोर्ड , कैम्ब्रिज और उच्च कोटि के कालेजो में छातियों पर बड़े-बड़े , सुन्दर सुन्दर बैज लगाये जिन पर लिखा था , १८५७ के शहीदों की इज्ज़त के लिए।
गलियों-बाजारों में कई जगह झगडे हो गये। एक कॉलेज में एक प्रोफ़ेसर आपे से बाहर हो गया और हिन्दुस्तानी विद्यार्थियों ने मांग की कि वह माफ़ी मांगे , क्यूँ कि उसने उन विद्यार्थियों के राष्ट्रीय नेताओ का अपमान किया है और विरोध में सारे के सारे विद्यार्थी कॉलेज से निकल आये। कई की छात्रवृत्ति मारी गयी , कईयों ने इन्हें खुद ही छोड़ दिया। कईयों को उनके माँ-बाप ने बुलवा लिया। इंगलिस्तान में राजनीतिक वायुमंडल बड़ा गरम हो गया और हिन्दुस्तानी सरकार हैरान और बैचैन हो गयी।
अप्रैल ,१९२८ में कीर्ति के १८५७ के ग़दर सम्बन्धी अंक में १० मई को शुभ दिन शीर्षक से छपे लेख में विनायक दामोदर सावरकर द्वारा लिखित १८५७ की आज़ादी की जंग का इतिहास प्रशंसा की गयी और यह लेख भगत सिंह के विश्वस्त सहयोगी रहे क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा द्वारा ही लिखा माना जाता है।
विनायक दामोदर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को नासिक के मजिस्ट्रेट जैक्सन ने क्रांतिकारी सामग्री संग्रह करने , लिखने तथा प्रकाशित करने के अपराध में आजन्म काले पानी की सजा दी तथा संपत्ति जब्त करने का आदेश भी २८ फ़रवरी, १९०९ को दे दिया। रोष की लहर सर्वथा फैलने लगी। २० जून , १९०९ की एक सभा में विनायक दामोदर सावरकर ने एलान किया कि दमन और आतंक पर उतरी सरकार का जवाब दिया जायेगा।
पहली जुलाई १९०९ के ही दिन कर्जन वायली को एक साथ पाँच गोलियां चला कर मदन लाल धींगरा ने उसकी जीवन लीला की इति श्री कर दी। वहीँ गणेश दामोदर सावरकर को आजन्म काले पानी की सजा देने वाले मैजिस्ट्रेट जैक्सन को भी नासिक के क्रांतिकारियों के कर्वे गुट ने मौत के घात उतार दिया और गणेश सावरकर के निर्वासन का बदला चुकाया।
जैक्सन के हत्या के अभियोग में अनंत लक्ष्मण कन्हारे , कृष्ण जी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देश पाण्डेय को १९ अप्रैल ,१९११ को फांसी की सजा दी गयी। नासिक षड्यंत्र केस में ही विनायक दामोदर सावरकर को लन्दन से गिरफ्तार करके नासिक लाया गया था । दिसम्बर १९१० में विनायक को आजीवन निर्वासन , २६ को छह महीने से लेकर १५ साल तक की सजा सुने गयी। कनिष्ठ भाई नारायण दामोदर सावरकर को पर्याप्त सबूतों के अभाव में सिर्फ छह माह की सजा दी गई।
विनायक दामोदर सावरकर की संगठन व नेतृत्व छमता अद्भुत थी। लन्दन से विनायक दामोदर सावरकर ने क्रांति कार्य हेतु ना जाने कितनी ब्राउनिंग पिस्तौलें मिर्ज़ा अब्बास , सिकंदर हयात के जरिये भारत के क्रांतिकारियों को भेजी।
चतुर्भुज के जरिये एक साथ २० पिस्तौलें विनायक सावरकर ने सफलता पूर्वक भेजी थी। भारत में ब्रिटिश सरकार ने एक साथ तीन मुक़दमे वीर सावरकर पर चलाये थे। पहला अंग्रेज अधिकारियों की हत्या का , दूसरा वायली की हत्या में मदन लाल धींगरा को हथियार उपलब्ध करने के आरोप का और तीसरा मैजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या के लिए चतुर्भुज अमीन द्वारा ब्राउनिंग पिस्तौले भेजने का आरोप। दो मुकदमो में दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाये जाने पर वीर सावरकर ने कहा -- मैं प्रसन्न हूँ कि मुझे दो जन्म की काले पानी की सजा देकर ब्रिटिश सरकार ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म का सिद्धांत मान लिया।
क्रांति के इस सेनानी की सारी संपत्ति ब्रिटिश हुकूमत ने जब्त करके डोंगरी, भायखला की जेल में रखने के पश्चात् अंडमान की सेलुलर जेल में भेज दिया। यहाँ विनायक दामोदर सावरकर को नारकीय यातना दी गयी। पुरे दिन कोल्हू चलवाना , आधा पेट जानवरों जैसा खाना देना ब्रितानिया हुकूमत का शगल था। सावरकर की कारावास की यात्रा एक जीवटमयी संघर्ष शील क्रांतिकारी की दास्ताँ है। जेल में सावरकर ने हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारो ने वीर सावरकर के माफीनामा पर देश को गुमराह किया है
अपनी रिहाई के लिए सरकार को चिट्ठी लिखकर सात माफीनामों का उल्लेख खुद सावरकर ने अपनी आत्मकथा "माझी जन्मठेप' में किया है। सावरकर ने इन माफीनामों को अपनी रणनीति का हिस्सा माना है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि उन्हें रिहाई नहीं मिली। उस समय के गृहसचिव सर क्रैडिक ने खुद अंदमान में सावरकर से भेंट करने के बाद अपनी टिप्पणी में लिखा कि उनका कोई हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है, वे उसी तरह जलते हुए अंगार हैं जैसा अंदमान भेजे जाने से पहले थे। उनका माफीनामा केवल धोखा है। इस तथ्य को वामपंथी इतिहासकारों ने क्यों सामने नहीं रखा? इसका उत्तर उन्हें देना पड़ेगा। माक्र्सवादी कम्युनिस्टों का सावरकर पर माफी मांगने का आरोप लगाना हास्यास्पद है। उनका तो इतिहास ही देशद्रोह और माफीनामों से भरा पड़ा है। यह जानना जरूरी है कि 1942 के स्वतंत्रता संघर्ष में माफी मांगकर रिहा हो जाना, मुखबिरी करके स्वतंत्रता-सेनानियों को गिरफ्तार कराना और अंग्रेज सरकार का साथ देना कम्युनिस्टों के इतिहास की सत्य कथा है। छूटने वाले कामरेडों में एस.ए.डांगे, बी.टी. रणदिवे, मिराजकर, पाटकर, राहुल सांकृत्यायन, सज्जाद जहीर, ए.के. घोष, सुनील मुखर्जी, हर्षदेव मालवीय, एस.वी घाटे जैसे बड़े नेता शामिल हैं। कुछ वर्ष पहले जब पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने स्वतंत्रता संग्राम में कम्युनिस्टों के योगदान का उल्लेख किया था, तो उनको फटकारते हुए मधु लिमये ने इनके कारनामों का पूरा चिट्ठा और सूची अपने लेख में दी थी। इसलिए सावरकर पर कम्युनिस्टों के आरोपों को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उन्होंने सुभाषचंद्र बोस को "तोजो का कुत्ता' कहा था और अब उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी मानने लगे हैं। सावरकर को लेकर अपनी क्षमा याचना के लिए वे कितना समय लेंगे, इसका निर्धारण तो वे ही कर सकते हैं। 
४ जुलाई , १९२१ तक सावरकर पोर्ट ब्लेयर की जेल में ही रहे। १९२१ में स्वदेश लौटने के पश्चात ३ वर्ष और कारावास में काटने पड़े। ६ जनवरी , १९२५ को वीर सावरकर को सुपुत्री प्रभात के जन्म की खुश खबरी प्राप्त हुई। १६ मार्च , १९२८ को सुपुत्र विश्वास का जन्म हुआ। फ़रवरी १९३० में सभी के लिए पतित पवन मंदिर की स्थापना वीर सावरकर के प्रयास से ही हुई। २५ फ़रवरी , १९३१ को वीर सावरकर ने बम्बई प्रेसिडेंसी में हुये अस्पर्श्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की।

मुझे कांग्रेस से नफरत क्यों है ?

स्वतंत्रता संग्राम के दो कैदी में से एक ''तथाकथित'' कैदी के किताब लिखने की इच्छा पर अंग्रेजो ने कॉपी,पेन स्याही,प्रकाश की ब्यवस्था कर दिया ओ कैदी था जवाहरलाल नेहरू और दूसरे कैदी के क्रांतिकारी लेखन को दबाने के लिए काल कोठरी में डाल दिया तो उस कैदी ने अपने नाखुनो को कलम और जेल की दीवाल को कॉपी बना दिया और लेखन किया ओ कैदी थे विनायक दामोदर सावरकर !

असल में विनायक दामोदर सावरकर नेहरु की आँखों में किसी रेत की कण की तरह चुभते थे क्योकि सावरकर जी को ''हिन्दू राष्ट्रवाद'' पसंद था जिसे ओ आगे बढ़ाना चाहते थे ! जबकि नेहरू अपने वंसजों का मजहब मुस्लिम राष्ट्रवाद (इस्लामिक कटटरवाद)' बहुत पसंद थे जिसे नेहरू आगे बढ़ाना चाहता था ! सावरकर जी Ka ''हिन्दू राष्ट्रवाद'' नेहरू ( इलाहबाद के मीरगंज में नाहर वाली कोठी में जन्म लेने से ''उपनाम नेहरू'' मिला, आपको बता दें की मीरगंज क्षेत्र प्रसिद्ध वेश्याओ का कोठ था और आज भी है) को बिलकुल भी पसंद नहीं था इसलिए नेहरु के इशारे पर कांग्रेस सावरकर जी को बदनाम करती आ रही है !
सावरकर जी को अंडमान की सेलुलर जेल में दो जन्म काले पानी की सजा मिली थी जो इतिहास में पहली बार है ! अंग्रेज उन्हें फांसी से भी भयानक सजा देना चाहते थे इसलिए उन्हें दो जन्मो की कालेपानी की सजा दी थी उन्हें दस किलो तेल भी निकलना होता था ! बैल की जगह खुद सावरकर जी अपने हाथो से कोल्हू चालाकर रोज 10 किलो तेल निकालते थे !
जब सावरकर जी की धर्मपत्नी बेहद गम्भीर बीमार थी तब उन्होंने पेरोल के लिए आवेदन दिया ! अंग्रेजी कानून के मुताबिक जब भी कोई सेनानी पेरोल के लिए आवेदन देता था तो उसे अपने अच्छे चाल चलन की गारंटी देनी होती थी ये प्रथा आज भी है ! लेकिन धूर्त इतिहासकार सिर्फ उनके पेरोल आवेदन को ही दिखाकर कहते है की सावरकर डर गये थे जबकि सच्चाई ये है की जब जेलर ने उन्हें कहा की मजिस्ट्रेट के सामने यूनियन जैक [अंग्रेजी झंडा] के सामने शपथ लेनी होगी ..सावरकर जी ने साफ़ मना कर दिया और कहा की भले ही मै अपनी मरती पत्नी को न देख सकूं ..लेकिन मै अंग्रेजी झंडे की शपथ नही ले सकता और पेरोल का आवेदन वापस ले लिया !
जेल में सावरकर जी ने दिवालो पर नाख़ून और कोयले से कई किताबे लिखी जो देश आजाद होने के बाद छापी गयी !
ये सावरकर जी ही थे जिन्होंने लन्दन के इण्डिया हाउस में अंग्रेजो के नाक के नीचे ही सेनानियों को तैयार करते थे ''मदन लाल धिगरा'' जैसे शहीदों को उन्होंने ही तैयार किया था .! लन्दन में जब अंग्रेजो ने ऊन्हे गिरफ्तार किया तब वो शीप (पानी वाले जहाज) से कूदकर फरार हो गये और कई दिनों तक समुद्र में तैरने के बाद फ्रांस पहुंच गये !
आप भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढिये आपको यकीन हो जायेगा की नेहरु और गाँधी असल में सेनानी नही बल्कि अंग्रेजो के दलाल थे एक तरफ अंगेरजी सरकार सेनानियों को फांसी से लेकर कालेपानी की सजा देती थी ..लेकिन इन दोनों दलालों को कभी तीन सालो से ज्यादा जेल में नही रखा .. गाँधी को तो अंग्रेज जेल में नही बल्कि पुणे के आलिशान आगा खान के पैलेस में रखते थे जहाँ वो सूरा सुन्दरी का जमकर मजा ले सकते थे !
 आगा ख़ाँ पैलेस मैंने देखा है ! इस पैलेश का वाथरूम ही 10 बाय 10 फिट में बेहतरीन संगमरमर लगे पथ्थरों से निर्मित है जो आज भी है !
कांग्रेस की ऑफिसियल ट्वीटर अकॉउंट से सव्रक्कर जी को एक आतंकी बताया गया है ! यही कांग्रेस भगत सिंह जी को की किताबों में आतंकी बताया है ! अब बताये इस कांग्रेस और इनकी इटालियन राजमाता को गाली नहीं दू तो क्या करू ?!

#‎भारत_माता_की_जय‬ !