शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

सनातन धर्म की पवित्र पुस्तके काल्पनिक कहानी नहीं है ।




सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र से आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट और ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने एक पर्वत खोज निकाला है। यह ठीक उस मन्दराचल पर्वत की तरह है, जिससे समुद्रमंथन किया गया था और इस दौरान निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था। इस पर्वत के बीचों-बीच नाग आकृति भी मिली है। प्राथमिक जांच के बाद ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने अपनी वेबसाइट पर इस पर्वत से संबंधित जानकारियों की एक लिंक भी अपनी वेबसाइट पर डाली है।
 

बिहार और गुजरात में मिले ये दोनों पर्वत एक ही हैं :


आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी विभाग के अधिकारियों के अनुसार बिहार में भागलपुर के पास स्थित भी एक मन्दराचल पर्वत है और गुजरात के समुद्र से निकला यह पर्वत भी मन्दराचल पर्वत ही है। आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के बताए अनुसार बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है। इस तरह यह दोनों पर्वत एक ही हैं। जबकि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते। इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय है।


किस तरह मिला यह पर्वत:


सन् 1988 में पिंजरात गांव के समुद्र से द्वारका नगरी के अवशेष मिले थे। डॉ. एस.आर.राव के साथ सूरत के आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी भी एक स्पेशल कैप्सूल में समुद्र में 800 फीट की गहराई में गए थे। इस दौरान उन्हें एक यहां एक विशाल पर्वत दिखाई दिया था। तबसे इसकी जांच की जा रही थी।


पर्वत के बीचों-बीच नाग के शरीर की आकृति भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। विभाग द्वारा बारीकी से इस पर्वत की जांच की गई तो पता चला कि यह पर्वत मन्दराचल पर्वत ही है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान मन्दराचल पर्वत को ही मथा गया था।


 
अनेकों टेस्ट के बाद किया समर्थन :
 

पर्वत पर नागों की आकृतियां थीं। इसलिए आर्कियोलॉजिस्ट विभाग ने पहले यह सोचा कि शायद यह निशान लहरों से बने होंगे। इसकी पुष्टि के लिए पर्वत के अनेकों हिस्सों पर कार्बन टेस्ट किए गए। सभी टेस्ट में यही बात सामने आई कि ये निशान लहरों से नहीं बनें हैं, प्राकृतिक हैं। इसके बाद आर्कियोलॉजिस्ट ने एब्स्युलूट मैथड, रिलेटिव मैथड, रिटन मार्क्‍स, ऐइज इक्वीवेलंट स्ट्रेटग्राफिक मार्क्‍स, स्ट्रेटीग्राफिक रिलेशनशिप मैथड, लिटरेचर का उपयोग करते हुए दावा किया है कि यह वही मन्दराचल पर्वत है, जिसका उपयोग समुद्र मंथन के लिए किया गया था।

विभाग ने कर दी है पुष्टि :

आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के बताए अनुसार यू-ट्यूब पर ओशनोलॉजिस्ट विभाग ने 50 मिनट का एक वीडियो अपलोड किया है। इसमें विभाग ने पिंजरत के पास 125 किमी दूर समुद्र में 800 फुट नीचे द्वारका नगरी के अवशेषों के साथ मन्दराचल पर्वत की भी खोज की है। ओशनोलॉजिस्ट वेबसाइट पर आर्टिकल में विभाग द्वारा इस बात की पुष्टि कर दी गई है।


मितुल त्रिवेदी 42 भाषएं और 9 लिपि जानते हैं:


आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी 42 भाषाएं और 8 लिपियों के जानकार हैं। वे नासा, आर्कियोलॉजिस्ट विभाग और इसरो से भी जुड़े हुए हैं। हडप्पा-मोहेंजोदडो की भाषा का उन्हीं ने अनुवाद किया था।