शनिवार, 12 अप्रैल 2014

रामायण की वो रोचक बातें, जो न कभी बताई गर्इं न दिखाई गईं

भगवान श्रीराम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और राक्षसराज रावण के जीवन का वर्णन यूं तो कई ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन सभी में वाल्मीकि रामायण में लिखे गए तथ्यों ko ही सबसे सटीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण में कुछ ऐसी रोचक बातें बताई गई हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम हमको कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जो शायद अब तक आप नहीं जानते थे। जानिए कौन सी हैं वो बातें-


1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था, उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी।

2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली, तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए।

4- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।

भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे।

5- गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।

रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

6- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया, तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।

10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

12- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

13- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

14- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने जब लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

15- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र था और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।

16- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)

17- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

18- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया, तब माता पार्वती भयभीत हो गई थीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

19- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।

20- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा, तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

21- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला, तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।

22- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा, लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

23- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।

24- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।

वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

25- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा।

उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया।


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बात की दुनिया में लात का क्या काम ?






 हमें सबसे ज्यादा घृणा उस आदमी से है जो तर्क छोड़ कर ''सोटा'' उठा लेता है । बेचारे

 केजरीवाल, नन्हीं-सी जान।आखिर खता क्या है उनकी ?

 बदलाव की बात ही तो कर रहे हैं। ईमानदारी का परचम फहराने में जुटे हैं लेकिन जिसे देखिए वही थप्पड़-घूंसा चला रहा है।

 क्यों भई क्यों?

 आज थप्पड़ चला। कल लात चलेगी। परसों लाठी और इसके बाद तो कोई सीमा ही नहीं। लेकिन एक सवाल हमारे मन में बार-बार उठता है कि ऎसा क्या है जो लोग केजरीवाल से इतने नाराज हैं।

राजनीति में नाराजगी चलती रहती है। यहां जब एक दल वाले ही परस्पर राजी नहीं रहते तो विपक्ष वालों से उम्मीद करना बेकार है। हमें तो नाराजगी का एकमात्र कारण नजर आता है उम्मीदों का टूटना। नेतागण जनता के सामने वादों की इतनी बड़ी पोटली रख देते हैं कि वह बावली हो जाती है। लेकिन जब पोटली खोलने पर चीथड़े और फटे पुराने गाबे निकलते हैं तो आदमी मायूस हो जाता है। अरविन्द भाई के मामले में भी यही नजर आ रहा है। एक बात और, कभी भी अपने विरोधी को पिटता देख तालियां नहीं बजानी चाहिए। हमें याद है कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में जब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चल रहा था तो एक सिरफिरे ने शरद पवार के तमाचा जड़ दिया था और तब यह खबर सुनते ही केजरीवाल के गुरू अन्ना हजारे ने तुरंत कहा था कि क्या एक ही तमाचा मारा।

इस तमाचे पर केजरीवाल ने प्रतिक्रिया की थी कि यह जनता के असंतोष की अभिव्यक्ति है। भाई जब पवार के गाल पर पड़ा तमाचा किसी का असंतोष हो सकता है तो फिर केजरीवाल के गाल पर पड़ा थप्पड़ भी ऎसा ही कुछ हो सकता है। आप हमारे इस तर्क से यह न मान लेना कि हम अरविन्द भाई के गाल पर पड़े तमाचे को जायज मान रहे हैं। कदापि नहीं। भगवान  ने आदमी को दिमाग दिया है, तर्कशक्ति दी है। लोकतंत्र संवाद और विचार से चलता है। मारपीट करके हम बेवजह अपनी डेमोक्रेसी को दबंगई की तरफ धकेल रहे हैं। इतनी अर्ज नेताओं से जरूर करेंगे कि भैया उतने ही वादे उछालो जो पूरे कर सको । और यह बात सभी नेताओ पर  लागू होती है ।

नरेंद्र मोदी कोई ब्यक्ति नहीं बल्कि एक सोच है ।

सुप्रभात मित्रो । जय जय श्री राम । जय श्री कृष्णा ।

मित्रो जब  से चुनाव की हलचल सुरु हुई , जव से सत्ता जाने का भय सताने लगा  सत्ताधीशो को तो सत्ताधीशो ये सभी सहयोगी नरेंद्र  मोदी  पर कोई भी ज़ुबानी  हमला करने से नहीं चूक रहे है । बहुत दिन तक गुजरात दंगो के नाम पर , फिर महिला जासूसी के नाम पर और  अब उनकी पत्नी के नाम पर विलाप सुरु है । पर जब एक खानदान विशेष  और उनकी 
वयोवृद्ध पार्टी किसी महिला को लेकर चिंता  जाहिर करता है तो मुझे वयोवृद्ध पार्टी के नेताओ की संस्कृत और वयोवृद्ध पार्टी के पितामह नेता की महिलाओ के साथ  कई अश्लील तस्वीर घूमने लगती है ।



खैर छोड़िये मुख्या मुद्दे पर आता हु । जहा तक मेरा सोचना है ''नरेंद्र मोदी '' कोई ब्यक्ति या गुजरात का मुख्यमंत्री नहीं है बल्कि ये तो एक सोच एक नेतृत्व है ।

मैं  यहाँ स्पस्ट कर दू की मैं  ना तो मैं  बीजेपी  का प्रचार कर रहा हु  न  ही मोदी  का और  न ही बीजेपी का  पिट्ठू न समझिएगा मुझे  न ही उस चश्मे से मुझे देखने का प्रयास करिएगा ।


   आज ,निहायत आम और त्रस्त जनता, भयभीत  ,ठगी गई और उलझी हुई जनता । संवाद भी जनता से ही है ,संशय  भी जनता के ही हैं; तो चलिये शुरू करते हैं –



हाँ भाई तो बताइये मोदी ही क्यूँ –?

 आप /काँग्रेस/सपा /बसपा —क्यों नही ?

आइये क्यों नही से शुरुआत करें जिस से आगे ये हमारी बातों में व्यवधान न डालें –आप –मतलब केजरी वाल जी अच्छे आदमी हैं /लगते थे –शुरुआत अच्छी की अन्ना  जी के साथ –महत्वाकांक्षी हैं ,मगर कन्फ़्यूज्ड  हैं; कहीं टिक नही सकते, अदर्शवाद की बातें करते हैं, भ्रष्टाचार खत्म करने की बातें करते हैं ; मगर जब भी हाथ कोई मौका आता है सुधार का ,तंत्र में कोई न कोई कमी बता कर वहाँ से निकल लेते हैं ,अगले  बड़े  लक्ष्य के सपने दिखा कर -कितने लोग आईएएस /आईपीएस/आईएफ़एस बनने का सपना लिए रहते हैं- नही बन पाते –आप बने –छोड़ा कि  भ्रष्टाचार है –अरे भाई तंत्र को सुधारो ,तंत्र में रह कर; प्रयास तो करो –अन्ना  जी को पकड़ा, फिर छोड़ा क्यों  कि  बनी नही ,सामंजस्य नही बैठा –अलग पार्टी बनाई ;शुरुआत अच्छी की ;इतनी अच्छी, जितनी खुद को उम्मीद नही थी- गले पड़ा ढ़ोल न बजाते बने न उतारते ,यथार्थ से दूर, किए गए वादों को पूरा करने की झलक भी दिखाई और फिर भाग छूटे  क्यों कि  सत्ता में कुछ करने की गुंजाइश नही थी।  अब आप की नज़र है केंद्र के चुनावों पर ; अब आप ही बताएं जो व्यक्ति इन जिम्मेदारियों को नही सम्हाल सका, जहां भी थोड़ा सा मुश्किल देखी और भाग छूटा वो देश के पीएम पद की ज़िम्मेदारी क्या सम्हालेगा ?  जहां आप सुधार कर सकते हो, जितना सुधार कर सकते हो ,उतना तो करो- ये क्या की जुबानी सब्ज बाग दिखाओऔर  जैसे पहला रास्ता दिखे  भाग लो अपने समर्थकों, अनुयायियों को नीचा दिखा कर; ये कमजोरी है व्यक्तित्व की- ऐसे लोग सिर्फ सपनों में जीते हैं और कठिनाइयाँ सामने आते ही मुंह चुराने लगते हैं, जिम्मेदारियों से ;स्वप्न द्रष्टा कह लीजिये या स्वप्ञ्जीवा -ऐसे लोग सदैव दूसरों में कमियाँ निकालते रहते हैं खुद आगे बढ़ कर कुछ नही कर सकते । और क्या आपको लगता है की हमारे देश की स्थिति इस समय ऐसी है कि  हम एक भी और एक्सपरिमेंट कर सकें –थैंक्स टु  हमारी वयोवृद्ध पार्टी जिसने हमें स्वतंत्र कराया जिसके पुराने नेताओं के ढ़ोल वो अब भी बजाते रहते हैं क्यों कि  नया क्या सुनाएँगे –घोटालों की बाढ़ –सीमा की असुरक्षाएँ ,विदेश नीतियों की विफलताएँ ,अर्थव्यवस्था का बिगड़ता गणित ,प्रधानमंत्री का कमजोर व्यक्तित्व ,और राजनीति  और देश को एक परिवार के हाथों का खिलौना बनाने की साजिश जैसा की आज ही प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की हालिया किताब 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग ऐंड अनमेंकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' को एक कमजोर प्रधान मंत्री बताया यहाँ तक की मनमोहन सिंह को कुर्शी तो दे दिया पर ताकत  लिया आज  सीमा पर मारे जाते जवान और आपकी चुप्पी ,देशद्रोहियों की वकालत ,धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ,विदेशी बैंकों  में जमा काला धन ,किस किस चीज का जवाब देंगे आप -तो अच्छा है चलो ,गांधी बाबा की चादर में मुंह छुपा लेते हैं ,नेहरू जी की टोपी पहन लेते हैं -आखिर तो ये सब कोंग्रेसी थे न पता नही ये सब आज होते तो शायद इन भ्रष्टाचारियों की जमात को देख या तो राजनीति छोड़ देते या फिर दुनिया -बहर हाल तो चलें बात करें अपनी सपा /बसपा पर वैसे बात क्या करनी है इनका सुशासन तो यूपी की जनता देख हे रही है -एक जातियों में जहर घोलती है तो दूसरी धर्म के नाम पर विष  बीज बोती  है -इनकी तो बात करना ही समय व्यर्थ करना है ;वैसे भी इन्हें तो मोल तोल करना है -अपनी कुछ एक सीटों का जो इनके हिस्से आजाएंगी धर्म और जाति  की शतरंजी बिसात बिछा कर और विष वमन कर के । 




क्रमसः ------