बुधवार, 11 सितंबर 2013

18 महीने की अखिलेश सरकार में हुए 28 दंगे क्यों ?

मुजफ्फरनगर में भडकी हिंसा  जिसमे अभी तक 41  से ज्यादा मौते हो चुकी है इन मौतों ने  एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सपा और सांप्रदायिक दंगों का चोली-दामन का साथ है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के लिए यह विडम्बना ही कही जाएगी कि उनक पार्टी के शासन काल में ही उत्तर प्रदेश ने सबसे ज्यादा दंगे देखे है। 
 
यहां तक कि कांग्रेस के नेताओं ने सपा और बसपा के शासनकाल की तुलना कर बसपा को इस मामले में बेहतर बता कर एक नयी सियासी बहस छेड़ दी है।
 
सपा के सत्ता में आते ही वर्ष 2013 से जो सांप्रदायिक हिंसा का तांडव शुरू हुआ है, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। हर तरफ से आलोचना झेल रहे मुख्यमंत्री के लिए इन दंगों को लेकर जवाब देना मुश्किल हो रहा है। 
 

      मुलायम सिंह को खुद न याद हो कि प्रदेश में हुए दंगों में तीन बार सेना बुलानी पड़ी है और तीनो बार ही प्रदेश की बागडोर सपा के हाथों में थी। 
 
बीती मार्च में विधान सभा के सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद मान चुके हैं कि 15 मार्च 2012 से 31 दिसंबर 2012 के बीच 27 दंगे हुए थे।
 
15 मार्च, 2012 वह तारिख है जब अखिलेश यादव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। खुद प्रदेश के आंकड़ों को देखने तो मार्च 2012 से लेकर अगस्त 2013 तक प्रदेश में कुल 38 दंगे हो चुके हैं यानि कि औसतन हर महीने प्रदेश का कोई न कोई कोना सांप्रदायिक आग में झुलसा है । देखिये दंगो के कुछ नमूने ---
 
मथुरा कोसी कलां 
 
पिछले साल 1 जून, 2012 की दोपहर करीब दो बजे मथुरा के कोसीकलां में सराय शाही इलाके में पीने के पानी वाले ड्रम में एक संप्रदाय के युवक द्वारा हाथ डालने को लेकर जो विवाद हुआ वह ने देखते ही देखते साम्प्रदायिक दंगे में बदल गया। इस घटना में चार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और दर्जनों घायल हुए। सांप्रदायिक उन्माद में भीड़ ने ने दर्जनों वाहनों और दुकानों में आग लगा दी। हिंसा रोकने के लिए जब वहां पुलिस बल पहुंचा तो भीड़ ने उस पर भी भारी पथराव और फायरिंग कर दी। इस घटना पर विधानसभा में सरकार की किरकिरी के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस घटना में जिला प्रशासन के ढीले-ढाले रवैये से काफी नाराज दिखे।
 
आस्थान, प्रतापगढ़
 
मथुरा के कोसीकलां दंगों के तीन हफ्ते बाद 23 जून 2012 को प्रतापगढ़ के आस्थान गांव में दलित लड़की दुष्कर्म और हत्या की घटना से गुस्साई भीड़ ने गांव के दुष्कर्म के आरोपी व्यक्तियों सहित गांव के करीब 46 मकानों को आग लगा दी। रात भर चले इस हिंसक तांडव के शिकार लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने इस मामले में कुछ भी नहीं किया। इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की गई और 68 लोगों के नाम सामने आए, लेकिन इनके खिलाफ गिरफतारी की कार्रवाई भी नहीं हुयी।
  
बरेली
 
इस ठीक एक महीने बाद ही 23 जुलाई को बरेली में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। यह हिंसा कांवरियों और चाय की दुकान वालों के बीच विवाद के बाद भडकी। इस विवाद ने धीरे-धीरे साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लिया और पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। यहाँ तीन जिंदगियां इस हिंसा की भेंट चढ़ गयीं। इसके बाद शहर के कई इलाकों में बेमियादी कर्फ्यू लगाना पड़ा।अभी 11 अगस्त को बरेली में कर्फ्यू हटाया ही गया था कि चार दिन बाद ही यहां फि‍र दो समुदाय आपस में भिड़ गए। जमकर पत्थर बाजी हुई और गोलियां चलीं। प्रशासन को दोबारा कर्फ्यू लगाना पड़ा। इन दोनों दंगों में पुलिस ने कुल 38 एफआईआर दर्ज की ओर 293 लोगों को गिरफ्तार किया।
 
लखनऊ-इलाहाबाद 
 
17 अगस्त को असम में हुई हिंसा का हवाला देकर अलविदा की नमाज के बाद कुछ अराजकतत्वों ने लखनऊ शहर में जमकर उत्पात मचाया। पुलिस के सामने उपद्रवियों ने राजधानी की सड़कों पर जमकर बवाल काटा। दुकानें लूटी गईं, पुलिस की बाइक फूंक दी गयी, कई वाहनों में तोडफ़ोड़ की और राहगीरों से अभद्रता की। कवरेज कर रहे मीडियाकमिर्यों को भी जमकर पीटा गया। बाद में मीडियाकमिर्यों ने उत्पीडऩ के विरोध में हजरतगंज चौराहे पर जाम लगा दिया। प्रमुख सचिव गृह ने कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन देकर मीडिया को शांत कराया।इसी दिन असम में हुई हिंसा का हवाला देकर अलविदा की नमाज के बाद इलाहाबाद में करीब 5000 लोगों की भीड़ ने करीब 200 गाड़ियों को तोड़ डाला और दुकानें लूट लीं। इस हिंसा के बाद प्रशासन को इलाहाबाद में कर्फ्यू लगाना पड़ा।
 
गाजियाबाद 
 
फि‍र 14 सितम्‍बर को गाजियाबाद में किसी शरारती तत्व ने एक धार्मिक ग्रन्थ के पन्ने पर अपशब्द लिखकर मसूरी के आध्यात्मिक नगर रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया। इससे लोग भड़क उठे। आक्रोशित लोगों ने मसूरी थाने में घुसकर पुलिसकर्मियों से हाथापाई की और वहां खड़े वाहनों को फूंक डाला। करीब 50 वाहन क्षतिग्रस्त हुए। खुद सीएम अखिलेश यादव ने कहा की प्रदेश का पुलिस महकमा बहुत बिगड़ा हुआ है, इसे सुधारने में वक्त लगेगा।इसे सुधारने में वक्त लगेगा। उन्होंने ने माना की पुलिस में काफी समय से प्रमोशन ना होने से असंतोष है। जल्दी ही प्रमोशन किये जाएंगे। अखिलेश ने कहा की मृतकों के परिवार को पांच-पांच लाख रूपये की सहायता और घायलों को एक- एक लाख रुपये दिए जायेंगे।
  
फैजाबाद 
 
इसके अगले ही महीने 24 अक्टूबर को फैजाबाद में मूर्ति विसर्जन के दौरान हुई मारपीट ने साम्प्रदायिक रंग ले लिया और देखते ही देखते गुस्साई भीड़ ने पुलिस की कई गाड़ियों और दर्जनों दुकानों में आग लगा दी। चौक और भदरसा में हुयी हिंसक वारदतों के चलते कई दिनों तक फैजाबाद में कर्फ्यू लगाना पड़ा तब जाकर माहौल शांत हुआ। आज भी इन दंगों का दर्द वहां देखा जा सकता है।
 
अम्‍बेडकरनगर
 
इसके बाद अम्‍बेडकरनगर के टांडा में हिंदू युवा वाहिनी के  नेता रामबाबू गुप्ता की हत्‍या कर दी गई, जिसके बाद पूरा टांडा साम्‍प्रदायिक दंगे की आग में जल उठा। यहाँ पांच दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा , तब कहीं जाकर प्रशासन शांति बना पाया।
 
2013 में हुए हिंसक और सांप्रदायिक बवाल 
 
26 जुलाई को मुरठ के नंगलामल मंदिर में लाउडस्पीकर बजाने को लेकर दो समुदायों में झड़प।
31 जुलाई को मेरठ में रमजान का जुलूस के दौरान पथराव।
3 अगस्त को एटा के अम्मापुर कस्बे में छात्राओं से छेड़छाड़ के विरोध में मारपीट के बाद बवाल।
  
6 अगस्त को रामपुर के बहादुरगंज में भी नमाज के दौरान लाउडस्पीकर बजाने को लेकर बवाल।
9 अगस्त को अमरोहा में ईद की नमाज पढ़ने जा रहे युवकों द्वारा हिंसा और तोड़फोड़।
9 अगस्त को ही मेरठ के जानी थाना क्षेत्र के रसूलपुर धौलड़ी गांव में सोशल मीडिया पर इस्लाम पर टिप्पणी को लेकर लोग सड़कों पर उतर पड़े।
 
 
12 अगस्त को जौनपुर के मछलीशहर में कुत्ते की मौत ने सांप्रदायिक बवाल का रूप ले लिया।
16 अगस्त को बुलंदशहर में एक युवती के साथ सामुहिक बलात्कार के बाद सांप्रदायिक उन्माद और गोलीबारी।
22 अगस्त को अलीगढ़ के खैर में लड़की भगाने के मामले में जाट समाज ने 450 मुस्लिम परिवारों का बहिष्कार किया जिसके चलते स्थिति तनावपूर्ण हो गयी।
 
25 अगस्त को झांसी में सांप्रदायिक तनाव।
27 अगस्त को कन्नौज के बैंक ऑफ इंडिया में खाता खुलवानें को लेकर बवाल।
27 अगस्त को कवाल में सांप्रदायिक तनाव में तीन युवकों की हत्या के बाद शुरू हुआ बवाल।
 
1 सितंबर को सुल्तानपुर के देहली मुबारकपुर में दलित की हत्या और दलित बस्ती जलाने पर बवाल।
 

 18 महीने की अखिलेश सरकार में हुए 28 दंगे क्यों ? 
 
क्योकि अखिलेश हो या मुलायम इनकी पार्टी सपा (दंगा पार्टी ,गुंडा पार्टी ) जब भी शासन में  आती है मुस्लिमो को संरक्षण देती है । टीक है देना भी चाहिए संक्षरण क्योकि मुस्लिमो में बहुत बड़ा तबका गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहा पर मुस्लिमो का दुर्भाग्य ही कहुगा की ये लोग इस संरक्षण का फायदा अपने विकास के लिए नहीं उठा पाते बल्कि समाज में गुंडागर्दी और अपनी धौस जमाने के लिए उपयोग करते है परिणाम क्या निकलता है ऊपर स्पस्ट है । मैं तो इस देश के खासकर उत्तरप्रदेश के मुस्लिम भाइयो से निवेदन करुगा की देश के और स्वेम के विकास के लिए संरक्षण का फायदा उठाये । नहीं तो मुलायम और अखलेश जैसे आपके इस लड़ाकूपन  का फायदा उठाते रहेगे क्योकि मुसलमानों की अशिक्षा , अज्ञानता और गरीबी का फायदा  छद्म सेकुलर पार्टिया ६६ साल से उठाती आ रही है और आगे भी उठायेगी मुस्लिम भाइयो अभी  भी वक्त है आप सम्हल जाये नहीं तो आपका विकास नहीं होगा , हा विनास की ओर  जरुर बढ़ रहे है आप लोग जैसे  ईराक ,अफगानिस्तान ,पकिस्तान ,सीरिया आदि  कितने नाम गिनाऊ  ?