बुधवार, 30 जनवरी 2013

मुझे गाँधी जी पसंद नहीं है क्यों ?

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इस लिंक को डाउनलोड करे और पढ़े  की गाँधी जी की हत्या क्यों हुई ?

आज महात्मा गाँधी जी की पुन्य तिथि है ! मैं बारम्बार नमन करता हु गाँधी जी को पर आज तक कुछ प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला मुझे ..कौन देगा इस प्रश्नों का उत्तर ?

1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता.|
                                            कुछ तथ्य –
1 - एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू ओरतों के बलात्कार हुए) और यह सब हुआ गाँधी के खिलाफत आन्दोलन के कारण |

2 – 1920... तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर आन्तरिक विरोध के बाद भी एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला

3 - गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन रहे।”
”उत्तर में यह कहना शुरू कर दिया कि - मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया सिर्फ मारा गया जबकि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।

4 – इतने बड़े दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोगली नीत पर कोई फर्क नहीं पड़ा मुसलमानों को खुश करने के लिए इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। “
5 - गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम किया |
6 - श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए |
7 - महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ एनी नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ ‘ |

8 - महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्त करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी ‘

9 – खिलाफत आन्दोलन का समर्थ कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था |

10 - डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था था – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी था कुछ कंग्रेस्सी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया | एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे की हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुस्त करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए ”

11 - डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘भारत का बिभाजन ‘ के प्रष्ठ १८७ पर गाँधी जी पर प्रहार करते हुए लिखा था :
‘गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने मैं चुकते नहीं थे किन्तु गाँधी जी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया | उन्होंने चुप्पी साढ़े राखी | ऐसी मानसिकता का केवल इस तर्क पर ही विश्लेषित की जा सकती है की गाँधी जी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए कुछ हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था (उसी पुस्तक के प्रष्ठ १५७ पर )

12 - मालाबार और मुल्तान के बाद सितेम्बर १९२४ मैं कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीसाद अत्याचार ढाए | कोहाट के इस दंगे मैं गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रिधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था ‘ खिलाफत आन्दोलन मैं मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुसह्परिणाम सामने आ रहे हैं की जगह जगह मुस्लमान घोर पस्विकता का प्रदर्शन कर रहे हैं ‘

महात्मा गाँधी ने 1919 ई. में 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया। खिलाफत के प्रश्न को भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाकर गांधी जी ने उलेमा वर्ग को प्रतिष्ठा प्रदान की और विशाल मुस्लिम समाज की मजहबी कट्टरता को संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर बढ़ने का अवसर प्रदान किया।
अगर खिलाफत आन्दोलन नहीं होता तो मुस्लिम लीग का वजूद एक क्षेत्रिय्र दल जैसा ही रहता और कभी बटवारा न हुआ होता
हम कह सकते हैं की मोपला और खिलाफत आन्दोलन के कारण ही मुस्लिम नेताओं को आधार मिला देश के बटवारे का हिन्दुओं के कत्लेआम का |
खिलाफत आंदोलन ने आम मुस्लिम समाज में राजनीतिक जागृति पैदा की और अपनी शक्ति का अहसास कराया।
गांधी जी के नेतृत्व में हिन्दू समाज समझ रहा था कि हम राष्ट्रीय एकता और स्वराज्य की दिशा में बढ़ रहे हैं और मुस्लिम समाज की सोच थी कि खिलाफत की रक्षा का अर्थ है इस्लाम के वर्चस्व की वापसी।
यह सोच खिलाफत आंदोलन के प्रारंभ होने के कुछ ही महीनों के भीतर अगस्त 1921 में केरल के मलाबार क्षेत्र में वहां के हिन्दुओं पर मोपला मुसलमानों के आक्रमण के रूप में सामने आयी। हिन्दुओं के सामने "इस्लाम या मौत" का विकल्प प्रस्तुत किया गया।
एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू ओरतों के बलात्कार हुए) सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में "टाइम्स आफ इंडिया" में जो खबर छपी वह इस प्रकार है-
"विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया। उन्हें अल्पकालिक पत्नी के रूप में इस्तेमाल किया। हिन्दू महिलाओं को डराकर उनके साथ बलात्कार किया। हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया।"

जबकि मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के अमदाबाद अधिवेशन में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा-

"मोपला प्रदेश दारुल अमन नहीं रह गया था, वह दारुल हरब में तब्दील हो गया था। मोपलाओं को संदेह था कि हिन्दू अंग्रेजों से मिले हुए हैं, जबकि अंग्रेज मुसलमानों के दुश्मन थे। मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने कुरान और तलवार का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह स्वैच्छिक मतान्तरण है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।"
(राम गोपाल-इंडियन मुस्लिम-ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157)

यद्यपि इस आंदोलन की पहली मांग खलीफा पद की पुनस्र्थापना तथा दूसरी मांग भारत की स्वतंत्रता थी। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा0 हेडगेवार इसे ‘अखिल आफत आंदोलन’ तथा हिन्दू महासभा के डा0 मुंजे ‘खिला-खिलाकर आफत बुलाना’ कहते थे; पर इन देशभक्तों की बात को गांधी जी ने नहीं सुना।

कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण का जो देशघाती मार्ग उस समय अपनाया था, उसी पर आज भारत के अधिकांश राजनीतिक दल चल रहे हैं।

इस आंदोलन के दौरान ही मो0 अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया। इसी बीच खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद अंग्रेजों की शरण में आकर माल्टा चले गये। आधुनिक विचारों के समर्थक कमाल अता तुर्क नये शासक बने। देशभक्त जनता ने भी उनका साथ दिया। इस प्रकार खिलाफत आंदोलन अपने घर में ही मर गया; पर भारत में इसके नाम पर अली भाइयों ने अपनी रोटियां अच्छी तरह सेंक लीं।
अब अली भाई एक शिष्टमंडल लेकर सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज से खलीफा बनने की प्रार्थना करने गये। शाह ने तीन दिन तक मिलने का समय ही नहीं दिया और चैथे दिन दरबार में सबके सामने उन्हें दुत्कार कर बाहर निकाल दिया।

भारत आकर मो0 अली ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये। इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी; पर वहां उनके मजहबी भाइयों ने उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली। वापस लौटते हुए उन्होंने भी देश भर में दंगे और लूटपाट की।

कभी कभी इतिहास अपने आप को दोहराता है | क्या कांग्रेस ने तुस्टीकरण की नीति महात्मा गाँधी से सीखी थी | इसके लिए मैं इतिहास के पन्नों के कुछ अंश आपके सामने रखना चाहता हूँ |

क्या महात्मा गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम नहीं किया था ?

प्रथम विश्व युद्ध मैं जब स्थिति बदली तो तुर्की अंग्रेजों के विरुद्ध और जर्मनी के पछ मैं हो गया | विश्व युद्ध मैं जर्मनी की पराजय के पश्चात अंग्रेजों ने तुर्की को मजा चखने के लिए तुर्की को विघटित कर दिया | अंग्रेज तुर्की के खलीफा के विरोद मैं सामने आ गए | मुसलमान खलीफा को अपना नेता मानते थे | उनमे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की लहर दौड़ गई |

भारत के मुस्लिम नेताओं ने इस मामले को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध सन १९२१ मैं “खिलाफत आन्दोलन” शुरू किया | मुस्लिम नेताओं तथा भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए गाँधी जी ने मोतीलाल नेहरु के सुझाव पर कांग्रेस की ओर से खिलाफत आन्दोलन के समर्थन की घोषणा की |

श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए | गाँधी जी खिलाफत आन्दोलन के खलीफा ही बन गए | मुसलमानों व कांग्रेस ने जगह जगह प्रदर्शन किये | ‘अल्लाह हो अकबर’ जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी|

महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ एनी नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्वा देता हूँ ‘
भले ही भारतीय मुसलमान खिलाफत आन्दोलन करने के वावजूद अंगेजों का बाल बांका नहीं कर पाए किन्तु उन्होंने पुरे भारत मैं मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ को जहरीले सर्प की तरह जिन्दा कर डाला |

खिलाफा आन्दोलन की की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश मैं दंगे करने शुरू कर दिए |

केरल मैं मालावार छेत्र मैं मुस्लिम मोपलाओं ने वहां के हिन्दुओं पे जो अत्याचार ढाए, उनकी जिस बर्बरता से हत्या की उसे पढ़कर हरदे दहल जाता है | हिन्दू महासभा के नेता स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने आगे चलकर मालावार छेत्र का भर्मद कर वहां के अत्याचारों व हत्याकांड की प्रस्थ्भूमि पर ‘मोपला’ नामक उपन्यास लिखा था |

खिलाफा आन्दोलन का समर्थ कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था | मोपलाओं द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्या का जब आर्य समाज तथा हिन्दू महासभा ने विरोध किया तब भी गाँधी जी मोपलाओं को ‘शांति का दूत’ बताने से नहीं चुके | महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्त करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी ‘

अ. भा. कांग्रेस की अध्याछा रही परम विदुषी डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था था – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी था कुछ कंग्रेस्सी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया | एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे तेही की हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुस्त करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए ”

महात्मा गाँधी कांग्रेसी मुसलमानों को तुस्त करने के लिए मोपला विद्रोह को अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह बताकर आततायिओं को स्वाधीनता सेनानी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे जबकि मोपला मैं लाखों हिन्दुओं की नश्रंस हत्या की गयी और २०, ००० हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर मुस्लिम बनया गया |

मोपलाओं द्वारा किये गए जघन्य अत्याचारों पर डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘भारत का बिभाजन ‘ के प्रष्ठ १८७ पर गाँधी जी पर प्रहार करते हुए लिखा था :
‘गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने मैं चुकते नहीं थे किन्तु गाँधी जी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया | उन्होंने चुप्पी साढ़े राखी | ऐसी मानसिकता का केवल इस तर्क पर ही विश्लेषित की जा सकती है की गाँधी जी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए कुछ हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था (उसी पुस्तक के प्रष्ठ १५७ पर )
मालाबार और मुल्तान के बाद सितेम्बर १९२४ मैं कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीसाद अत्याचार ढाए | कोहाट के इस दंगे मैं गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रिधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था ‘ खिलाफत आन्दोलन मैं मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुसह्परिणाम सामने आ रहे हैं की जगह जगह मुस्लमान घोर पस्विकता का प्रदर्शन कर रहे हैं ‘

दिसम्बर १९२४ मैं बेलगाँव मैं प. मदनमोहन मालवीय जी की अध्याछ्ता मैं हुए हिन्दू महासभा के अधिवेशन मैं कांग्रेस की मुस्लिम पोषक नीति पर कड़े प्रहार कर हिन्दुओं को राजनीतिक द्रस्ती से संगठित करने पर बल दिया गया |

इतिहासकार शिवकुमार गोयल ने अपनी पुस्तक मैं कांग्रेस की भूमिका का उल्लेख किया है |यह देश का दुर्भाग्य रहा है की कांग्रेस ने इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं बोला | जब आर्य समाज, हिन्दू महासभा और अन्य हिन्दू संगठनो ने सुधिकरण अभियान चलाया तो यह लोग कट्टरपंथियों की नजरों मैं काँटा बन गए| स्वामी श्रधानंद जी शिक्षाविद तथा आर्य प्रचारक के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी थे | वह कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी थे |

स्वामी जी ने और लाला लाजपत राय ने यह महसूस किया की अगर मुस्लिमो और इसाईओं को हिन्दुओं के निर्बाध धर्मान्तरण की छूट मिलती रही तो यह हिंदुस्तान की एकता के लिए भरी खतरा सिद्ध होगा | स्वामी श्रधानंद जी , लाला लाजपत राय जी और महात्मा हंसराज जी ने धरम परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को पुन: वैदिक धरम मैं शैल करने का अभियान शुरू किया |

कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने इनके द्वारा चलाये जा रहे शुधि आन्दोलन का विरोध शुरू कर दिया | कहा गया की यह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर कर रहा है . गाँधी जी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया की वे इस अभियान मैं भाग ना लें | स्वामी श्रधानंद जी ने उत्तर दिया, ‘मुस्लिम मौलवी’ तबलीग’ हिन्दुओं के धरमांतरण का अभियान चला रहे हैं ! क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी ? कांग्रेस मुस्लिमों को तुस्त करने के लिए शुधि अभियान का विरोध करती रही लेकिन गांधीजी और कांग्रेस ने ‘तबलीग अभियान ‘ के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा | स्वामी श्रधानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया |

स्वामी श्रधानंद जी शुधि अभियान मैं पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए | ६० मलकाने मुसलमानों को वैदिक (हिन्दू) धरम मैं दीक्षित किया गया | उन्मादी मुसलमान शुधि अभियान को सहन नहीं कर पाए | पहले तो उन्हें धमकियां दी गयीं, अंत मैं २२ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली मैं अब्दुल रशीद नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली |

स्वामी श्रधानंद जी की इस निर्संस हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला परन्तु गाँधी जी ने यौंग इंडिया मैं लिखा , ” मैं भिया अब्दुल रशीद नामक मुसलमान, जिसने श्रधानंद जी की हत्या की है , का पछ लेकर कहना चाहता हूँ , की इस हत्या का दोष हमारा है | अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसका उत्तरदायित्व हम लोगों पर है | देशाग्नी भड़काने के लिए केबल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं | ”
स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों २० जनवरी १९२७ के ‘श्रधानंद’ के अंक मैं अपने लेख मैं गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा – गाँधी जी ने अपने को सुधा हर्दय , ‘महात्मा’ तथा निस्पछ सिद्ध करने के लिए एक मजहवी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है | मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं |

गाँधी जी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों मैं लेख लिखकर स्वामी श्रधानंद जी तथा आर्य समाज के ‘शुधि आन्दोलन ” की कड़ी निंदा की | दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के बलात धरमांतरण के विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया |

मोपला कांड के चश्मदीद गवाह रहे केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी माधवन नॉयर अपनी किताब 'मालाबार कलपमÓ में लिखते हैं कि मोपलाकांड में हिन्दुओं का सिर कलम कर थूवूर के कुओं में फेंक दिया गया।

क्या ऊपर की लाइन पढ़ के थोड़ी तकलीफ हुई तो एक बात याद रखो “मुस्लिम करें तो अल्लाह अल्लाह हिन्दू करें तो बहुत बुरा बहुत बुरा “ ये गांधी का सिद्धांत था | आज कांग्रेस तथा अन्य दलों का है कल भी होगा ऊपर लिखे अन्य महापुरुषों के विचार पढ़े सत्य अंधेरे को चीर के बाहर निकलता दिखाई देगा |

"जिगर मैंने छुपाया लाख अपना दर्दे-गम लेकिन।
बयाँ कर दी मेरी सूरत ने सारी कैफियत दिल की।।"
नोट - जिसे दर्द हो इतिहास की किताबे पढ़े सभी तथ्य किताबों से ही निकाले हैं और ये सब बोलने और लिखने वाले बिके हुए नहीं थे | सभी का स्वतंत्रता में योगदान है और सभी अभिनंदनीय हैं |

तिलक,तराजू और तलवार – इनको मारो जूते चार ???

तिलक,तराजू और तलवार – इनको मारो जूते चार ..इस से बढ़कर घटिया बयानबाजी क्या हो सकती है ...?
अगर आप ये लिख कर गूगल देवता पे खोज करोगे तो आपके सामना कांशी राम जी और मायावती जी के चित्र भी आ जायेंगे क्योंकि ये नारा देने वाले यही थे।
और ऐसे ही कई सारे बयान और नेतागण भी देते रहते हैं लेकिन किसी पे आज तक केस दर्ज नहीं हुया वहीँ अगर कोई अन्य व्यक्ति ऐसा कुछ कह दे तो तुरंत उस पर केस दर्ज कर दिए जाते हैं। सब जानते और मानते हैं की भर्ष्टाचार कोई विशेष समुदाय नहीं करता,,लगभग सब इसमें लिप्त हैं लेकिन
क्या हर चीज की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बस इसी राजनीतिज्ञ वर्ग को रह गई है ..?
जब हम किसी जाती के ख़ास को कुछ कह देते है गलती से भे तो हमारे ऊपर SC ST एक्ट लागू कर दिया जाता है और हमें जेल भेजने के लिए दबाब बना देते है ये सेकुलर नेता ....उस समय पर मायावाती जी या कासीराम जी पर कोई केस क्यों नह...ीं चलाया गया था ? जबकि आज आशीष नंदी जी के उपर sc st एक्ट के अंतर्गत केस दायर कर दिया .....

मायावती जी आज भी खुलेआम घूम रही है क्यों ?

क्या सभी नियम हम सवर्णों को सताने के लिए ही बनाए गए ?

क्या ये बदले की राजनीती नहीं है ?