बुधवार, 22 मई 2013

!! मेरी सादी की सालगिरह !!


दोस्तों आज मेरी सादी की सालगिरह है ! 22 मई 1989 के दिन हम दोनों की सादी हुई थी इलाहाबाद (UP)में ! आज पुरे 24 साल हो गए हमारी सादी के ....ये 24 साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला ..जब पीछे पलट कर देखता हु तो ओ सभी सुखमय -दुखमय छड याद आते है .., और हर समय साए के तरह कभी आगे तो कभी पीछे मैंने मेरी पत्नी Renu Singh Baghel जी को पाया है ! मैंने लोगो से सुना है किताबो में पढ़ा है की किसी पुरुष की सफलता में पत्नी का योगदान बहुत होता है ..ये बात अक्षरश : सत्य है ! रेनू जी में बहुत विशेषताए है ..सभी विशेषताओं  की बखान नहीं करुगा ..पर उनकी सबसे बड़ी जो विशेषता है ..ओ है   "मिताब्ययता " ....एक रुपये भी खर्च करना हो तो 10 बार सोचती है है की खर्च करू या नहीं ..! बस उनकी यही आदत आज हमें भौतिक रूप से बहुत सुखी कर दिया है ! बस अब ज्यादा कुछ नहीं लिखते हुए यही कहुगा की "जनम जनम का साथ है तुम्हारा हमारा, तुम्हारा हमारा, अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दुबारा.........." https://www.youtube.com/watch?feature=player_detailpage&v=lCEKNiV5GDw

शनिवार, 18 मई 2013

!! प्राचीन समाज में यौन व्यवहार !!

 
मनुष्य के यौन व्यवहार में एक से एक विचित्रताएं मिलती हैं। आदिम युग में मनुष्य पशुओं की तरह स्वच्छंद एवं उन्मुक्त संभोग करता था। उस ज़माने में न तो परिवार था और न ही सेक्स को लेकर किसी प्रकार की नैतिक अवधारणा का विकास हो पाया था।
 
सेक्स सिर्फ जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति भर था। समूह का कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री के साथ यौन संबंध कायम कर लेता था। किसी के साथ संबंध बनाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। यह अलग बात है कि शारीरिक रूप से ताकतवर लोग ही मनचाही औरतों के साथ संबंध बना पाते थे, वहीं कमजोर औरतों को हासिल कर पाने में असफल हो जाते थे।
 
सभ्यता के विकास के साथ यौन शुचिता और सेक्स व्यवहार के संबंध में नैतिक मानदंड विकसित हुए। पर सभ्यता के विकास के साथ ही, मनुष्य के सेक्स व्यवहार में कई तरह की विकृतियां भी सामने आने लगी। देखा जाये तो पहले जो स्वाभाविक था, सांस्कृतिक विकास के क्रम में वह अस्वाभाविक हो गया। 
 
 मानव मन सेक्स के संबंध में बहुत ही कल्पनाशील होता है। उसकी कल्पनाएं एक से बढ़ कर एक और अजीबोगरीब होती हैं, पर वह उन्हें व्यवहारिक रूप नहीं देता, क्योंकि उस पर सामाजिक नैतिकता का बंधन होता है।  
          जहां यह बंधन ढीला होता है अथवा व्यक्ति को अपनी गोपनीय सेक्स कल्पनाओं-फैंटेसी को पूरा करने का मौका मिलता है, वह सामान्य सेक्स व्यवहार से हट कर विकृत सेक्स व्यवहार का प्रदर्शन करने लगता है।
 
इतिहास में एक ऐसी भी अवस्था थी, जब स्त्री-पुरुष के बीच यौन संबंध के सामाजिक नियम नहीं बने थे और न ही यौन शुचिता और नैतिकता का बोध विकसित हुआ था। यौन क्रिया में रिश्ते-नाते नहीं देखे जाते थे, क्योंकि ऐसे संबंध उन दिनों बने ही नहीं थे। किसी भी स्त्री के साथ सेक्स करना, पशुओं की तरह कहीं भी खुले में संबंध बनाना, अल्पवयस्क बालिकाओं को साथ संभोग करना और यहां तक कि पशुओं के साथ यौन क्रीड़ा करना आम बात थी। सेक्स स्वच्छंद एवं निर्बंध था। 
 
 सभ्यता के विकास के साथ सेक्स के संबंध में सामाजिक रीतियां विकसित हुईं और नैतिक मानदंड स्थापित हुए। इसे हम ऐतिहासिक समाजशास्त्रीय संदर्भ में  समझ सकते हैं।
 
महाभारत के 'आदिपर्व' के 63वें अध्याय में पाराशर ऋषि और मत्स्यगंधा सत्यवती के बीच खुले में संभोग का वर्णन मिलता है। 'आदिपर्व' के 104वें अध्याय में यह वर्णन मिलता है कि उत्थत के पुत्र दीर्घतमा ने सब लोगों के सामने ही स्त्री के साथ संभोग शुरू कर दिया। इसी पर्व के 83वें अध्याय में गुरु-पत्नी के साथ संभोग करने, पशुओं के समान यौन क्रीड़ा करने वाले मलेच्छ लोगों का वर्णन भी मिलता है।


आधुनिक इतिहास में यह वर्णन मिलता है कि महाराजा रणजीत सिंह हाथी के हौदे में सबके सामने संभोग किया करते थे। पुणे में बाजीराव के जमाने में 'घटकंचुकी' नाम का एक खेल खेला जाता था। अभिजात वर्ग के चुने हुए स्त्री-पुरुष रंगमहल में जुटते थे। वहां औरतों की कंचुकियां (चोली) एक घड़े में डाली जाती थी और फिर जिस पुरुष को जिस स्त्री की कंचुकी हाथ लगती थी, वो सबके सामने उस स्त्री के साथ संभोग करता था।
इस प्रथा का प्रचलन कर्नाटक प्रदेश में आजादी मिलने के कुछ पहले तक था। सामूहिक संभोग (ग्रुप सेक्स) के ऐसे आयोजनों में उम्र अथवा रिश्ते-नाते का कोई विचार नहीं किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में तमिल लोग भी खुले में सबके सामने संभोग किया करते थे। इतिहास के जनक कहे जाने वाले हेरोडेट्स ने लिखा है कि शक लोगों को जब संभोग की इच्छा होती थी, तो वे रथ से अपना तरकश लटका खुले में काम-क्रीड़ा करते थे। वेदों में यज्ञभूमि पर सामूहिक रूप से संभोग करने के वर्णन मिलते हैं। 


कौटंबिक सेक्स (Incest) का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में काफी मिलता है। 'हरिवंश' में यह उल्लेख मिलता है कि महर्षि वशिष्ठ की पुत्री शतरूपा ने उन्हें पति माना और उनके साथ यौन संबंध बनाए। इसी ग्रंथ में यह उल्लेख है कि दक्ष ने अपनी कन्या अपने पिता ब्रह्मदेव को दी, जिससे नारद का जन्म हुआ। 'हरिभविष्य पर्व' के अनुसार इंद्र ने अपने पड़पोते जनमेजय की पत्नी वपुष्टमा के साथ संभोग किया। 'हरिवंश' में ही यह उल्लेख मिलता है कि सोम के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्यायें पिता को दी। जब जनमेजय ने इसे अनैतिक कृत्य बताया तो महर्षि वैंशपायन ने कहा कि यह प्राचीन रीति है।

महाभारत के 'आदिपर्व' में कहा गया है कि कामातुर स्त्री यदि एकांत में यौन संबंध बनाने की इच्छा प्रकट करे तो उसे पूरा किया जाना चाहिए, नहीं तो धर्म की दृष्टि से यह भ्रूण हत्या होगी। उलूपी अर्जुन से स्पष्ट कहती है कि स्त्री की इच्छा पूर्ति लिए एक रात संभोग करना अधर्म नहीं।


पौरव वंश की जननी उर्वशी अर्जुन पर कामासक्त हुई। उसने अर्जुन से कहा कि पुरु वंश के जो पुत्र या पौत्र इंद्रलोक में आते हैं, वे हमसे रति-क्रीड़ा करते हैं। यह अधर्म नहीं है। अर्जुन ने उसकी याचना स्वीकार नहीं की, तब उर्वशी ने उसे नपुंसक होने का शाप दिया। 'वनपर्व' में यह भी उल्लेख मिलता है कि महर्षि अगस्त्य ने अपनी कन्या को विदर्भ के राजा के पास रखा और जब वह विवाह-योग्य हुई तो स्वयं उसके साथ विवाह किया।


ऋग्वेद के दसवें मंडल में यम-यमी संवाद उस समय प्रचलित यौन संबंधों की परिपाटी को समझने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यमी अपने भाई से यौन संबंध बनाने की इच्छा प्रकट करती है। यम के इनकार करने पर वह फिर आग्रह करती है और कहती है कि भाई के रहते बहन अनाथ रहे और उसे दुख भोगना पड़े तो भाई किस काम का? 
 
'किं भ्राता सद्यदानार्थ भवाति।
किमु स्वसा यन्निर्ऋति र्नि गच्छात।।'
स्पष्ट है, उस काल में भाई-बहन के रिश्ते पूरी तरह निर्धारित नहीं हुए थे। भ्रातृ शब्द भृ से निकला है, जिसका अर्थ है पालन करने वाला, भरण-पोषण करने वाला। बाद में इसी से अपभ्रंश भर्तार और भतार शब्द निकला, जिसका प्रयोग पति के लिए किया जाता है।


प्राचीन काल में यौन संबंधों के बारे में इतिहासकार लेर्तुनो ने लिखा है कि चिपेवे कभी-कभी अपनी माताओं, बहनों और पुत्रियों के साथ सेक्स संबंध बनाया  करते थे। कादिएकों में भाई-बहनों और पिता-पुत्रियों के बीच खुलेआम यौन संबंध प्रचलित थे। कारिब मां और बेटियों के साथ सेक्स किया करते थे। प्राचीन आयरलैंड में भी मां एवं बहनों के साथ यौन संबंधों का प्रचलन था।



 महाभारत के 'आदिपर्व' में उल्लेख है कि यौन संबंधों की सीमाओं का निर्धारण उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु करता है। एक ब्राह्मण जब संभोग करने के लिए उसकी माता का हाथ पकड़ता है तो वह क्रोधित हो जाता है, लेकिन उद्दालक कहता है कि स्त्रियों द्वारा उन्मुक्त संभोग करना धर्म यानी मान्य व्यवहार है।



समय के साथ, जैसे-जैसे सभ्यता विकसित होती है, यौन संबंधों का स्पष्ट निर्धारण और सीमांकन होने लगता है, पर महाभारत काल तक पूरी तरह ऐसा नहीं हो पाता। कर्ण शल्य की निंदा करते हुए मद्र देश (पंजाब) की औरतों के बारे में कहता है कि वहां की स्त्रियां किसी भी पुरुष से स्वेच्छा से संभोग करती हैं, चाहे वे उनके परिचित हों या नहीं। वे बेहूदा गाने गाती हैं, शराब पीती हैं और नग्न होकर नाचती हैं। वे वैवाहिक विधियों से नियंत्रित नहीं हैं। मद्र देश की कुमारियां निर्लज्ज और विलासिनी होती हैं। 
दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का शासक बनाया था, इसलिए शल्य कहता है किअंगदेश में औरतों और बच्चों की बिक्री होती है।

                जाहिर है, यौन संबंधों का नियमन सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ क्रमिक रूप में हुआ। पर सेक्स की आदिम इच्छा समय-समय पर मनुष्य में बलवती हो जाती है। यही कारण है कि आज भी हम ऐसे यौन संबंधों के बारे में सुनते हैं, जिन्हें अवैध एवं अनैतिक कहा जाता है। कौटंबिक व्यभिचार की न जाने कितनी घटनाएं प्रकाश में आती हैं। सभ्य मनुष्य के लिए ऐसे संबंध गर्हित हैं, पर भूलना न होगा कि सेक्स एक आदिम प्रवृत्ति है। समाज जहां अति आधुनिक होता चला जा रहा है, वहीं सेक्स संबंधों का पूरी तरह नियमन हो चुका है। पर आदिम प्रवृत्तियां जब-तब सिर उठाती ही रहती हैं।

शुक्रवार, 17 मई 2013

!! चमचो ,चाटुकारों और चापलूसों से सावधान !!

मैं आपको एक कहानी सुनता हु " चापलूस मंडली " की ...यह कहानी खासकर उन लोगो के लिए है जो अपनी निजी जिंदगी में चापलुशो से घिरे रहते है ,यहाँ तक की सोसल नेट्वर्किं साइटों में भी चपलुश मंडली सक्रीय है .ये " चापलूस मंडली " आपका जैकारा लगाएगी  आपके के नाम पर जैकारा लगाएगी .." जय  हो राजा साहब की ,जय हो पंडित जी की "  आदि कई प्रकार से सब्दो का प्रयोग करेगे आपको खुस करने के लिए ! चापलूस, चाटुकार या चमचे ऐसे प्राणी होते हैं जिनके लिए हिन्दी में एक लोकोक्ति बड़ा सटीक है – ‘जिहि की खाई, तिहि की गाई" (हलाकि सोसल नेट्वर्किंग साइटों में कोई किसी का दिया हुआ नहीं खाता है ,पर स्वार्थ यहाँ भी है )
और हमारा मानव स्वभाव है, जैसा मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘We despise no source that can pay us a pleasing attention.’ अर्थात्‌ हम ऐसे किसी स्रोत से घृणा नहीं करते जो हम पर सुखद ध्यान दे सकता है। लोग समझते हैं वह तो हमारी सेवा कर रहा है, और उसे अपने आस-पास रखे रहते हैं। 


      पर अगर महात्मा गांधी के शब्दों में कहा जाए तो – ‘ख़ुशामद और शुद्ध सेवा में उतना अन्तर है जो झूठ और सच में है।’
     लौहपुरुष सरदार पटेल ने कहा था, ‘इस दुनिया में सत्ता के पीछे लगा हुआ सबसे बड़ा रोग कोई हो सकता है, तो वह ख़ुशामद है।’
    
एक कहानी कहीं पढी थी। प्रसंगवश उसे कहता चलूं। 

 
 जंगल में एक शेर रहता था। उसके चार सेवक थे चील, भेडिया, लोमडी और चीता। चील दूर-दूर तक उडकर समाचार लाती। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। लोमडी शेर की सैक्रेटरी थी। भेडिया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था। इस काम में चारों माहिर थे। इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें चापलूस मंडली कहकर पुकारते थे। शेर शिकार करता। जितना खा सकता वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड जाया करता था। उससे मजे में चारों का पेट भर जाता। एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी 'भाईयो! सडक के किनारे एक ऊंट बैठा हैं।'
              
                 भेडिया चौंका 'ऊंट! किसी काफिले से बिछुड गया होगा।'
चीते ने जीभ चटकाई 'हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उडा सकते हैं।' लोमडी ने घोषणा की 'यह मेरा काम रहा।' लोमडी शेर राजा के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली 'महाराज, दूत ने खबर दी हैं कि एक ऊंट सडक किनारे बैठा हैं। मैंने सुना हैं कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता हैं। बिल्कुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?'


      शेर लोमडी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमज़ोर-सा ऊंट सडक किनारे निढाल बैठा था। उसकी आंखें पीली पड चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा 'क्यों भाई तुम्हारी यह हालात कैसे हुई?'
ऊंट कराहता हुआ बोला 'जंगल के राजा! आपको नहीं पता इंसान कितना निर्दयी होता हैं। मैं एक ऊंटों के काफिले में एक व्यापार माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड गया। माल ढोने लायक़ नहीं रहा तो उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।'
      
                  ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। अचानक उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की जोरदार इच्छा हुई। शेर ने कहा 'ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा। मैं तुम्हें अभय देता हूं। तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।'
चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए। भेडिया फुसफुसाया 'ठीक हैं। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे। फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई हैं।'
          इस प्रकार ऊंट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आराम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर राजा के प्रति वह ऊंट बहुत कॄतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊंट का निस्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगडा होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी। वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता।

एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं।
शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता ? कई दिन न शेर ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं ? लोमडी बोली 'हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊंट हैं और हम भूखे मर रहे हैं।'
चीते ने ठंडी सांस भरी 'क्या करें ? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा हैं। देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड कितना बडा हो गया हैं। चर्बी ही चर्बी भरी हैं इसमें।' भेडिए के मुंह से लार टपकने लगी 'ऊंट को मरवाने का यही मौक़ा हैं दिमाग लडाकर कोई तरकीब सोचो।'


लोमडी ने धूर्त स्वर में सूचना दी 'तरकीब तो मैंने सोच रखी हैं। हमें एक नाटक करना पडेगा।'
सब लोमडी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोली 'महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।'
लोमडी ने उसे धक्का दिया 'चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह जाएगा। महाराज, आप मुझे खाइए।' भेडिया बीच में कूदा 'तेरे शरीर में बालों के सिवा हैं ही क्या? महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएंगे।' अब चीता बोला 'नहीं! भेडिए का मांस खाने लायक़ नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।'
    चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊंट को तो कहना ही पडा 'नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ हैं। मेरे रहते आप भूखों मरें, यह नहीं होगा।' चापलूस मंडली तो यहीं चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले 'यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट खुद ही कह रहा है। चीता बोला 'महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार दें ?  चीता व भेडिया एक साथ ऊंट पर टूट पडे और ऊंट मारा गया।    (कहानी गूगल से साभार   )



       हमें सभ्यता, शिष्टाचार और ख़ुशामद में फ़र्क़ करने की आदत डालनी चाहिए। सरदार पटेल ने कहा था, ‘जिन्हें ख़ुशामद प्रिय होती है, उन्हें सच्ची बात मीठी भाषा में कही जाय तो भी कड़वी लगती है।’
!! चमचो ,चाटुकारों और चापलूसों से सावधान !!
जिन्हें ख़ुशामद पसंद है ऐसे लोगों के लिए तो यही कहा जा सकता है कि
बार पचै माछी पचै पाथर हू पचि जाय  
जाहि ख़ुशामद पचि गई ताते कछु न बसाय  

 जार्ज चैपमैन की बायरन्स कांस्पिरेसी में कही बात ध्यान में रखें कि ‘Flatterers look like friends as wolves like dogs.’ अर्थात्‌ जैसे भेड़िये,  कुत्तों जैसे लगते हैं, वैसे ही चापलूस लोग मित्रों जैसे लगते हैं
चापलूसी न सिर्फ़ दिखावटी मित्रता के समान है बल्कि अत्यंत निकृष्ट प्रकार का शत्रु है । इस तरह के सत्रु आपके उअप्र तब वार करते है जब ये आपके पास से आपके विस्वश्नीय मित्रो को दूर करके कमजोर  कर देते है 
            अतः दोस्तों आप अपने निजी जीवन में चाटुकारों और चापलुशो   से सावधान रहे  

नोट-- ये सब लिखने की प्रेरणा मुझे एक " महान चाटुकार " से मिली है
मैं उस चाटुकार का दिल से आभारी हु

बुधवार, 15 मई 2013

अब क्या होगा तथाकथित मंदिर के ठेकेदारों का ?

गुजरात के कुछ इलाकों में जहां दलितों को अभी भी मंदिरों में प्रवेश
नहीं दिया जाता वहीं नरेंद्र मोदी सरकार ने एक परिवर्तनकारी फैसला किया है। राज्य सरकार ने सर परमैला ढोनेवालों को मंदिरों में पुजारी बनाने का निर्णय लिया है।इसके लिए उन्हें हिंदू रीति- रिवाज के तहत विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे वह सभी कर्मकाण्ड विधिवत करा सकें। एक अंग्रेजी समाचार पत्र के अनुसार, सामाजिक न्याय विभाग ने सफाई कामदारों के प्रशिक्षण के लिए 2013-14 के बजट में 22.50 लाख रुपये निर्धारित की है। इन्हें सोला भागवत पीठ और सोमनाथ संस्कृत विद्यापीठ जैसे संस्थानों में विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। सरकार के इस फैसले का दलित समुदाय ने स्वागत किया है। दलित अधिकार संगठन नवसृजन की मंजुला प्रदीप ने इस फैसले के लिए सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक परिवर्तनकारी कदम है। गुजरात के कुछ इलाकों में जहां दलितों को अभी भी मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता वहीं नरेंद्र मोदी सरकार ने एक परिवर्तनकारी फैसला किया है। राज्य सरकार ने सर परमैला ढोनेवालों को मंदिरों में पुजारी बनाने का निर्णय लिया है।इसके लिए उन्हें हिंदू रीति- रिवाज के तहत विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे वह सभी कर्मकाण्ड विधिवत करा सकें। एक अंग्रेजी समाचार पत्र के अनुसार, सामाजिक न्याय विभाग ने सफाई कामदारों के प्रशिक्षण के लिए 2013-14 के बजट में 22.50 लाख रुपये निर्धारित की है। इन्हें सोला भागवत पीठ और सोमनाथ संस्कृत विद्यापीठ जैसे संस्थानों में विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। सरकार के इस फैसले का दलित समुदाय ने स्वागत किया है। दलित अधिकार संगठन नवसृजन की मंजुला प्रदीप ने इस फैसले के लिए सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक परिवर्तनकारी कदम है।
http://antafanda.in/news.asp?newsid=77#.UZLxckosMsY
 


मंगलवार, 14 मई 2013

!! 5,000 साल पुराना विमान !!

गर्व करो अपने भारतीय होने पर, 5,000 साल पुराना विमान मिला, जैसा की मैं पहले भी साबित कर चूका हूँ, की भरतवंशी हजारों साल पहले ही विमान बना चुके थे, अब इसकी कई और अधिकारिक रिपोर्ट्स आई हैं, नीचे लिंक दिए हैं, अफगानिस्तान में अमेरिका का मिलट्री केम्प जहाँ से अमेरिकी सैनिकों के गायब होने की लगातार खबरे आ रहीं थीं, इसकी खोजबीन करते अमेरिकी एक गुफा थक पहुंचे, जहाँ उन्हें एक विमान के अवशेष मिले, जब वो उसेको निकालने प्रयास कर रहे थे। तभी वो अचानक गायब हो गए। इस बारे में Russian Foreign Intelligence Service (SVR) report द्वारा 21 December 2010 को एक रिपोर्ट पेश की गयी की जिसमे बताया ये विमान द्वारा उत्पन्न एक रहस्यमयी Time Well क्षेत्र है जिसकी खतरनाक electromagnetic shockwave से ये जवान मारे गये या गायब हो गये। इसी की वजह से कोई गुफा में नहीं जा पा रहा। US Military scientists ने इसकी ने बताया की ये विमान ५००० हज़ार पुराना है और जब कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तो ये सक्रिय हो गया जिससे इसके चारों और Time Well क्षेत्र उत्पन्न हो गया यही क्षेत्र विमान को पकडे हुए थे। इसी क्षेत्र के सक्रिय होने के बाद 8 सील कमांडो गायब हो गए। Time Well क्षेत्र विद्युत चुम्बकीये क्षेत्र होता है जो सर्पिलाकार होता है हमारी आकाशगंगा की तरह। Russian Foreign Intelligence ने साफ़ साफ़ बताया की ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है। और जब इसका इंजन शुरू होता है तो बड़ी मात्र में प्रकाश का उत्सर्जन होता है। SVR report का कहना है यह क्षेत्र 5 August को फिर सक्रिय हुआ था electromagnetic shockwave यानि खतरनाक किरणें उत्पन्न हुई ये इतनी खतरनाक थी की इससे 40 सिपाही तथा trained German Shepherd dogs इसकी चपेट में आ गए। US Army CH-47F Chinook हेलीकाप्टर जो ओसामा बिन लादेन को मरने के बाद बापस लौट रहा था ये हेलीकाप्टर इसी विमान की shockwaves चपेट में आ गया था। प्रस्तुति:-नीरज कौशिक
http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache%3Ahttp%3A%2F%2Freinep.wordpress.com%2F2011%2F10%2F09%2F5000-year-old-viamana-craft-was-found-in-afghanistan%2F
http://www.whatdoesitmean.com/index1510.htm
http://www.wired.com/dangerroom/2011/05/aviation-geeks-scramble-to-i-d-osama-raids-mystery-copter/
गर्व करो अपने भारतीय होने पर, 5,000 साल पुराना विमान मिला, जैसा की मैं पहले भी साबित कर चूका हूँ, की भरतवंशी हजारों साल पहले ही विमान बना चुके थे, अब इसकी कई और अधिकारिक रिपोर्ट्स आई हैं, नीचे लिंक दिए हैं, अफगानिस्तान में अमेरिका का मिलट्री केम्प जहाँ से अमेरिकी सैनिकों के गायब होने की लगातार खबरे आ रहीं थीं, इसकी खोजबीन करते अमेरिकी एक गुफा थक पहुंचे, जहाँ उन्हें एक विमान के अवशेष मिले, जब वो उसेको निकालने प्रयास कर रहे थे। तभी वो अचानक गायब हो गए। इस बारे में Russian Foreign Intelligence Service (SVR) report द्वारा 21 December 2010 को एक रिपोर्ट पेश की गयी की जिसमे बताया ये विमान द्वारा उत्पन्न एक रहस्यमयी Time Well क्षेत्र है जिसकी खतरनाक electromagnetic shockwave से ये जवान मारे गये या गायब हो गये। इसी की वजह से कोई गुफा में नहीं जा पा रहा। US Military scientists ने इसकी ने बताया की ये विमान ५००० हज़ार पुराना है और जब कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तो ये सक्रिय हो गया जिससे इसके चारों और Time Well क्षेत्र उत्पन्न हो गया यही क्षेत्र विमान को पकडे हुए थे। इसी क्षेत्र के सक्रिय होने के बाद 8 सील कमांडो गायब हो गए। Time Well क्षेत्र विद्युत चुम्बकीये क्षेत्र होता है जो सर्पिलाकार होता है हमारी आकाशगंगा की तरह। Russian Foreign Intelligence ने साफ़ साफ़ बताया की ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है। और जब इसका इंजन शुरू होता है तो बड़ी मात्र में प्रकाश का उत्सर्जन होता है। SVR report का कहना है यह क्षेत्र 5 August को फिर सक्रिय हुआ था electromagnetic shockwave यानि खतरनाक किरणें उत्पन्न हुई ये इतनी खतरनाक थी की इससे 40 सिपाही तथा trained German Shepherd dogs इसकी चपेट में आ गए। US Army CH-47F Chinook हेलीकाप्टर जो ओसामा बिन लादेन को मरने के बाद बापस लौट रहा था ये हेलीकाप्टर इसी विमान की shockwaves चपेट में आ गया था। प्रस्तुति:-नीरज कौशिक 
http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache%3Ahttp%3A%2F%2Freinep.wordpress.com%2F2011%2F10%2F09%2F5000-year-old-viamana-craft-was-found-in-afghanistan%2F
http://www.whatdoesitmean.com/index1510.htm
http://www.wired.com/dangerroom/2011/05/aviation-geeks-scramble-to-i-d-osama-raids-mystery-copter/

द्वारा --नीरज कौशक साहब ..!

शुक्रवार, 10 मई 2013

आखिर वंदे मातरम क्यों ?

लोकसभा में "वंदे मातरम्" का  Shafiq-ur-Rehman Burq ( बासपा सासंद ) द्वारा अपमान किया गया इस पर लोकसभा अध्यक्षा ने कड़ी आपत्ति जताई (कड़ी आपत्ति क्या होती है ये तो कोई कंग्रेशी ही जाने ) और भविष्य में ऐसा नहीं करे इसके हिदायत भी दिया (मतलब कांग्रेश ने घडियाली आसू बहाया ) अब प्रश्न ये है की आखिर मुसलमान इस "वंदे मातरम्" को क्यों गाये ? तो भाई आप सुन लो  ऑस्कर विजेता एआर रहमान जैसे फनकार  1997 में आई उनकी एल्बम 'वन्दे मातरम' आज भी सबसे अधिक बिकने वाली गैर फिल्मी एल्बम्स में शुमार की जाती है। गीत 'माँ तुझे सलाम' सुनने पर भी आपके मन में देश प्रेम की लहर न उठती हो तो शायद खुद को भारतीय मानना ही नहीं चाहिए।  " खींची हैं लकीरें इस जमीन पर न खींचो देखो बीच में दो दिलों के ये दीवारें " गीत देश में अमन का पैगाम  देता  है
 " वंदे मातरम् " तो मातृप्रेम का गीत है {अब जिसे अपनी माँ से प्यार नहीं है ओ तो मनुष्य क्या जानवर भी कहलाने का हक़ नहीं रखते है } लेकिन विश्‍व के अनेक देशों के   राष्‍ट्रगीत तो ऐसे हैं जिनसे दूसरे देशों की जनता को काफी ठेस पहुंचती है। ये देश दूसरे देश के अपमान या मानहानि के बजाय स्‍वयं के देश की प्रजा के स्‍वाभिमान, अभिमान और गुमान की ही पहली चिंता करते हैं। लेकिन हमारी बात अलग है। भारत ने सदैव विश्‍वशांति को प्राथमिकता दी है।
              देश के पहले राष्‍ट्रपति डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद भीचाहते थे कि संसद की कार्यवाही वंदे मातरम् के गायन से हो, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब वंदे मातरम् एक बार फिर चर्चा में है लेकिन कांग्रेसियों, भाजपाइयों, सपा और बसपा वालों सभी से अनुरोध हैं कि यह गीत किसी की जागीर नहीं है, यह देश की जागीर है और इस पर विवाद मत छेड़ना। जान लो....दूसरे देशों के राष्‍ट्रगीत जिनसे बेहतर है मेरा वंदे मातरम्

            छोटे छोटे देशों के राष्‍ट्रगीत भी अनेक बार क्रूर और हिंसक होते हैं। इन्‍हें आततायियों और शत्रु को फटकार लगाने के लिए लिखा गया है। छोटे से देश डेनमार्क का उदाहरण लें। डेनमार्क के राष्‍ट्रगीत में एक लाइन है जो राजा क्रिश्‍टीएन के वीरत्‍व को उकसाती है। उनकी तलवार इतनी तेज चलती थी, शत्रु के कलेजे और सिर को एक साथ काट फेंकती थी....। मध्‍य अमरीकी देश ग्‍वाटेमाला के राष्‍ट्रगीत में एक लाइन है-किसी आततायी को तेरे चेहरे पर नहीं थूकने दूंगा ... बल्‍गारिया के राष्‍ट्रगीत में भी आहूति की बात कही गई है....। बेशुमार योद्धाओं को बहादुरी से मारा है-जनता के पवित्र उद्देश्‍य के लिए....। चीन के राष्‍ट्रगीत में खून से सनी एक लाइन है -हमारे मांस और खून का ढ़ेर लगा देंगे-फिर से एक नई महान चीन की दीवार बनाने के लिए....

               अमरीका में मेरीलैंड नामक एक राज्‍य है...। इस राज्‍य का भी राज्‍यगीत या राष्‍ट्रगीत है, जो वीरत्‍व से भरा पड़ा है, इसमें शब्‍द हैं कि- बाल्टिमोर की सड़कों पर फैला हुआ है देशभक्‍तों का नुचा हुआ मांस- इसका बदला लेना है साथियों.... इन सभी की तुलना में सुजलां, सुफलां मलयज शीतलाम् अथवा मीठे जल, मीठे फल और ठंडी हवा की धरती जैसे विचारों का विरोध हो रहा है....। यह कितना साम्‍प्रदायिक लग रहा है?

ब्रिटेन का राष्‍ट्रगीत ‘गॉड सेव द क्विन (या किंग)’ को 19वीं सदी की शुरूआत में स्‍वीकृति मिली....। वर्ष 1745 में इसे पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाया गया, लेकिन इसकी रचना किसने की, किसने संगीत दिया इस विषय में जरा अस्‍पष्‍टता है....। लेकिन इससे पूर्व जिस गीत ने राष्‍ट्रगीत का दर्जा पाया, वह कैसे भाव व्‍यक्‍त करता है ? रुल ब्रिटानिया, रुल दि वेव्‍ज/ब्रिटंस नेवर शेल बी स्‍लेव्‍ज (देवी ब्रिटानिया राज करेगी, समुद्रों पर राज करेगी, ब्रिटिश कभी गुलाम नहीं बनेंगे) इस गीत में आगे है- तेरे नगर व्‍यापार से चमकेंगे/हरेक किनारे पर तेरी शोभा होगी....।

वंदे मातरम्...वंदे मातरम्...मातरम वन्दे ...



बेल्जियम का राष्‍ट्रगीत ‘ब्रेबेनकॉन’ था...। जिसे एक फ्रेंच कामेडियन ने लिखा था। इस गीत में डच प्रजा के खिलाफ विष उगला गया था। इसके शब्‍दों में तीन बार संशोधन करना पड़ा...। वर्ष 1984 में आस्‍ट्रेलिया ने ‘एडवांस आस्‍ट्रेलिया फॉर’ राष्‍ट्रगीत निश्चित किया...। रुस का राष्‍ट्रगीत ‘जिन सोवियत स्‍कोगो सोयूजा’ (सोवियत संघ की प्रार्थना) 1944 में स्‍वीकार किया गया और 1814 में अमरीका ने फ्रांसीस स्‍कॉट नामक कवि के ‘स्‍टार स्‍पेंगल्‍ड बेनर’ राष्‍ट्रगीत के रुप में स्‍वीकार किया...। इससे पूर्व रुस ने ‘इंटरनेशनल’ को राष्‍ट्रगीत माना था....।

इजरायल का राष्‍ट्रगीत ‘हा-निकवा’ केवल इतना ही है....। दिल के अंदर गहरे गहरे तक/ यहूदी की आत्‍मा को प्‍यास है/ पूर्व की दिशा/ एक आखं जायोन देख रही है/ अभी हमारी आशाएं बुझी नहीं हैं/ दो हजार वर्ष पुरानी हमारी आशा/ हमारी धरती पर आजाद प्रजा होने की आशा/ जायोन की धरती और येरुश्‍लम...। फ्रांस का राष्‍ट्रगीत ‘लॉ मार्सेस’ विश्‍व के सर्वाधिक प्रसद्धि राष्‍ट्रगीतों में एक है....। वर्ष 1792 में फौज के इंजीनियर कैप्‍टन कलोड जोजफ रुज दि लिजले ने अप्रैल महीने की एक रात यह गीत लिखा और इसके बाद इतिहास में हजारों फ्रांसीसियों ने इस गीत के पीछे अपने को शहीद कर दिया....। बहुचर्चित इस राष्‍ट्रगीत की दो लाइनें इस प्रकार है अपने ऊपर जुल्‍मगारों का रक्‍तरंजित खंजर लहरहा है....। तुम्‍हें सुनाई देता है अपनी भूमि पर से कूच करके आते भयानक सैनिकों की गर्जनाएं..?...साथी नागरिकों ...उठाओं शस्‍त्र, बनाओं सेना/ मार्च ऑन, मार्च ऑन/ दुशमनों के कलुषित रक्‍त से अपनी धरती को गीली कर दो...। फ्रांस के इस राष्‍ट्रगीत की इन दो पक्तिंयों की चर्चा समय असयम फ्रांस और उसके पड़ौसी देशों में होती रहती है....। अभी इन दो पक्तियों की बजाय जो नई दो पंक्तियां सुझाई गई है वे थीं स्‍वाधीनता, प्रियतम स्‍वाधीनता/ शत्रु के किले टूट गए हैं/फ्रेंच बना, अहा, क्‍या किस्‍मत है/ अपने ध्‍वज पर गर्व है.../ नागरिकों, साथियों/ हाथ मिलाकर हम मार्च करें/ गाओं, गाते रहो/ कि जिसने अपनी गीत/ सभी तोपों को शांत कर दें..लेकिन फ्रांस की जनता ने इस संशोधन को स्‍वीकार नहीं किया...। मूल पंक्तियों मे जो खुन्‍नस थी, जो कुर्बानी भाव था वह इनमें नहीं था...। आज भी पुरानी पंक्तियां ज्‍यों की त्‍यों हैं और फ्रांसीसी फौजी टुकडि़यां इन्‍हें गाते गाते कूच करती हैं...।



शायद सर्वाधिक विवादास्‍पद राष्‍ट्रगीत जर्मनी का ‘डोईशलैंड युबर एलिस’ है....। जर्मनी के कितने ही राज्‍य पूरे गीत को राष्‍ट्रगीत के रुप में मानते थे...। हिटलर के जमाने में भी यही राष्‍ट्रगीत था...। लेकिन 1952 से जर्मनी ने तय किया कि केवल तीसरा पैरा ही राष्‍ट्रगीत रहेगा....। जर्मनी के राष्‍ट्रगीत का पहला पैरा इस प्रकार है जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर/ रक्षा और प्रतिरक्षा की बात आए तब/ कंधे मिलाकर खड़े रहना साथियों/मियुज से मेमेल तक/ एडीज से बेल्‍ट तक/जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर... यह गीत जबरदस्‍त चर्चा का विषय बने यह स्‍वाभाविक है, आज मियुज नदी फ्रांस और बेल्जियम में बहती है....। बेल्‍ट डेनमार्क में है और एडीज इटली में है....। जर्मनी के इस राष्‍ट्रगीत में पूरे जर्मनी की सीमाओं के विषय में बताया गया है...। कितने ही लोगों के अनुसार यह ग्रेटर जर्मनी है और इसमें से उपनिवेशवाद की बू आती है जबकि जर्मनी की ऐसी कोई दूषित भावना नहीं है....। जहां फ्रांस में पंक्तियां बदलने की चर्चा होती है, वहां जर्मनी में ऐसा कुछ नहीं है....। केवल जर्मनी ने ही राष्‍ट्रगीत के रुप में अहिंसक तीसरे पैरे को राष्‍ट्रगीत राष्‍ट्रगीत में स्‍वीकार किया है....। इटली में भी 1986 में एक आंदोलन हुआ था...। वहां राष्‍ट्रगीत जरा कमजोर महसूस किया जा रहा था....। जनमत का कहना था कि संगीतज्ञ बर्डी के बजाय तेजतर्रार देशभक्ति वाले का गीत राष्‍ट्रगीत होना चाहिए...। राष्‍ट्रगीत चर्चा में आए इससे चिंता नहीं करनी चाहिए....। 

           प्रत्‍येक देश के राष्‍ट्रगीत में स्‍वाभिमान, गर्व होता है, राष्‍ट्रध्‍वज और राष्‍ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढि़यां सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर देती हैं....। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्‍द होते थे ‘वंदे मातरम्...
     अंत में इस ब्लॉग के माध्यम से मेरे देश भक्त मुस्लिम बहादुरों से अनुरोध है की,  धर्म से ऊपर देश है, देश नहीं तो धर्म को क्या अचार डालेगे ? 

          तो चलिए बोलिए वन्देमातरम ....मुझे पता है की आपके मन ने कह दिया वन्देमातरम । जय हिन्द ..जय भारत

मंगलवार, 7 मई 2013

।। बौद्ध मेँ चमत्कार-अंधविश्वास-विरोधाभाष ।।


हिन्दु धर्म के कुछ नीच समझी जाने बाली जातियाँ मानती हैँ कि बौद्ध अवैग्यानिकता और अंधविश्वास जैसी अशुद्धियोँ से मुक्त है ।पहली बात तो ये समझ नहिँ आती कि बिना भगवान का कैसा धर्म कैसी आस्था। बौद्ध एक ढोँगी पाखंडी धर्म है इनके अवधारणा को देखा जाये तो इसमेँ अंर्त्तविरोध भरा पडा है । जो कहते कुछ हैँ और करते कुछ और।इसमेँ जो विज्ञान जैसा कुछ भी है वो हिन्दु साहित्य कि चोरी से बाकी सारा ढकोसला मात्र है जिसे छद्म बुद्धिमता बोला जा सकता है ।इनके किताबोँ से एक बात तो साफ हो जाती है कि ये लोग या तो वेद को समझ नहिँ पाये थे या फिर उस समय का विग्यान वेद को समझाने मेँ पुर्ण सक्षम नहिँ था।अंर्त्तविरोध कि कुछ बातेँ ।
*ये आत्मा परमात्मा को नहिँ मानते फिर भी तपस्या साधना पुजा मेँ मगन रहते हैँ क्या जाने किसकि।
*बिना आत्मा का पुनर्जन्म भी करवा देते हैँ।
*एक दिन मेँ अचानक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैँ फिर भी दुनिया मेँ अशिक्षा फैला हुआ है।
*दुःख का कारण खोजने मेँ हि सारा जीवन दुःखी रहते हैँ ।ये अपने सुख कि चाहत मेँ ज्यादा लगे दिखते हैँ समाज कल्याण कि अपेक्षा ।
~संसार दुःख का कारण है इसे छौड़ दो बोलकर आत्महत्या को बढाबा देते है ।
~इस जीवन से इतना डरे हुए होते हैँ कि दुसरा जन्म नहि चाहते।
~पाप पुण्य कि अवधारणा नहिँ मानते लेकिन पाप का दंड देने के लिए खुद आत्महत्या कर लेते हैँ ।
~इनके अन्य लोग इनकी लाश को मुर्ति कि शक्ल देकर लाश कि पुजा करते हैँ ।
*ये ब्राह्मण कर्मकांडो के विरोधी होते हैँ खुद उल जुलुल कर्मकाँड करते फिरते हैँ कभी सिर मुँडबा लेते हैँ,भिक्षा माँगते हैँ ,पहिया घुमाते हैँ,अगरबती घुमाते है बुद्ध के सामने और उन्हेँ भगबान भी नहि मानते।
*कर्मकांड ब्राह्मणोँ जैसे करते हैँ फिर भी ब्राह्मण कर्मकांडोँ का विरोध करते हैँ।वेद का विरोध करते हैँ लेकिन तत्बग्यान वेतांत,उपनिषद,न्याय दर्शन और योगदर्शन से ही चोरी करते है।
*इनका ब्रह्मचर्य का ढोँग का भांडा तब फुट जाता है जब विदेशोँ से नाबालिग लडकियाँ वज्रयान के संभोग योगा के लिए मंगाया जाता है ।
*बौद्ध अवतारबाद पुर्नजन्म को नहिँ मानता लेकिन...गौतम बुद्धा सुमेधा नामक ब्राह्मण के पुर्नजन्म माने जाते हैँ जो पिछले जन्म मेँ उडने कि क्षमता भी रखते थे।बुद्ध के पहले भी 27 बुद्धा हो चुके हैँ ।
*इनके 27 बुद्धा अजीब अजीब हैँ जिसे कतई सच्चाई नहिँ कहा जा सकता दीपंकर ,मैत्रेय जैसे पुराने बुद्धा हैँ जो 35-40 फीट के होते हैँ और हजारोँ लाखोँ साल जीवन जीते हैँ ।
तेनजिन ग्यात्सो दलाइलामा के 14बेँ अवतार माने जाते हैँ!
*इनके जातक कथाओँ मेँ पौराणिक ,जादुइ ,रहस्यमयी ,अविश्वशनीय कथाओँ का संग्रह है ।इन जातक कथाओँ मेँ बुद्ध के 554 पुर्नजन्मोँ का उल्लेख मिलता है ।
*ये अहिँसा शाकाहारी का झुठा प्रचार करते हैँ और खुद दलाइलामा समेत अधिकांश भिक्षु मांसाहारी होते हैँ ।खुद बुद्ध शुक्रमडवा नामक सुअर का व्यंजन खाने से मरे थे।
।। बुद्धा के चमत्कार के और नमुने ।।
*सपने मेँ बुद्ध कि माता के पेट सफेद हाथी घुस जाने के बाद बुद्ध पैदा होते हैँ जो पैदा होते ही चलने और बोलने लगते हैँ और जहाँ जहाँ पैर रखते हैँ वहाँ कमल का फुल उग जाता था ।
*जब बुद्धा अपने राज्य लौटते हैँ तो पिता से मिलते वक्त उनके शरीर से आग और पानी निकलने लगता है ।उसके बाद मात्र 3 कदमोँ से मीलोँ दुर तवस्तीमा नामक जगह पहुँचते हैँ जहाँ बुद्ध कि माता का अगला जन्म होता है ।बुद्ध अगले जन्म कि संत्तुस्सीता नामक माता को अभिधम्मा बताते हैँ ।
*एक दिन बुद्धा ब्रह्मा के लोक मेँ पहुँच जाते हैँ लेकिन तपस्या से खुद को छुपा लेते हैँ ऑर ब्रह्मा बुद्ध को खोज नहिँ पाते ।
*बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्ता ने बुद्ध के सामने पागल हाथी छोड देता है ।रास्ते मेँ एक औरत का बच्चा जमीन पर छुट जाता है हाथी जैसे हि बच्चे के ऊपर पैर देने बाला था कि बुद्धा ने हाथी के माथे पर अपना हाथ रख कर उसे शांत कर दिया ।
*बुद्धा एक बार आनंद से पानी मांगते हैँ लेकिन आनँद बुद्धा को कुँआ घास फुस से भरा गंदा बताते हैँ लेकिन अगली बार कुँआ खुद साफ हो जाता है ।
*महावग्गा IV मेँ बुद्धा बाढ के पानी को बोलकर वापस लौटा देते हैँ ।
*अंगुत्रा निकाय के अनुसार
¤बुद्धा पानी के ऊपर चल सकते हैँ।
¤बुद्ध लाखोँ मेँ मल्टीपलाय होकर फिर एक हो सकते हैँ ।
¤बुद्धा अंतरिक्ष मेँ जा सकते हैँ ।
¤बुद्धा खुद को बडे से बडा सकते हैँ और चीँटी से छोटा भी बन सकते हैँ ।
¤बुद्धा पर्वतोँ को भी लांघ सकते हैँ ।
¤ बुद्धा धरती कि गहराइयोँ तक जा सकते हैँ ।
¤बुद्धा परलोक तक जा कर धरती पर फिर वापस आ सकते हैँ ।
*इतिबुताका के अनुसार बुद्धा अमर हैँ वो ना तो पैदा होते हैँ और ना ही मरते हैँ ।
*शीलाबत्ती नामक भिक्षुणी के नेवल को बुद्धा सपने मेँ छु देते हैँ तो भिक्षुणी गर्भवती हो जाती है ।
*यशोधरा बुद्धा के सिमेन को 6 साल तक अपने गर्भ मेँ छुपा कर रखती है उसके बाद राहुल पैदा होता है ।
*महसिहंदा सुत्ता के अनुसार बुद्धा मेँ दुरदृष्टि थी उनमेँ ,टेलिपैथी,भुतकाल मेँ देखने कि क्षमता,आधयात्मिक दृष्टि कि क्षमता थी ।वो किसी दुसरे का दिमाग भी पढ सकते थे ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Miracles_of_Gautama_Buddha
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सोमवार, 6 मई 2013

!! राजपूतो में सिंह सब्द का प्रचलन !!


नोट --हलाकि विद्वान् इस विषय पर एक मत नहीं है ..फिर भी मेरा मत येही है !

नोट---लेख का शेष भाग ..आती शीघ्र !