शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

धर्म या मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना…?????

क्या हम इस प्रकार से एक दुसरे की धार्मिक भावनाओं का ख्याल नहीं रख सकते ?
क्या हम इस तरह प्रेम से नहीं रह सकते ?
बेकुसूर लोगो को इस तरह से खात्मा करने का हक़ किसने दिया इन्हें ?
किसी का घर  उजाड़ने का हक़ किसने दिया इन्हें ?
आग लगाकर यू तमासा देख रहे है दंगाई क्या हक़ बनता है किसी का जीवन छीनने का ?
अब बताये इसमें इन शहीदों का क्या दोष था ?
शायद मैं लीग से हटकर ये बात कह रहा हूँ इसलिए हो सकता है की ये बात लोगों के गले न उतरे लेकिन केवल इसी कारण हम उन समस्याओं पे विचार करना  नहीं छोड़ सकते जो हमारे दैनिक जीवन का अंग बन गयीं हैं और इनके मूल में किसी न किसी तरह और कहीं न कहीं धर्म या मज़हब है ! मज़हबी फसादों या दंगो के कारण न जाने कितने ही लोगों को कहाँ-कहाँ और कब-कब जान-माल से हाथ धोना पड़ता है इसकी चर्चा करना अति आवश्यक है ! हा, सब  जानते हैं की कानपुर, अलीगढ, मेरठ, अहमदाबाद में साल दो साल में जो कुछ भी घटता है वो क्या है ?? आसाम में जो घट रहा है ओ क्या है ....? फिर इन दंगो के बिरोध में मुंबई में क्या हो रहा है क्या है ? सबको पता है  अक्षरधाम पे हमला होता है , गोधरा में रेल के डिब्बों में आग लगे जाती है और फिर पूरा गुजरात जलने लगता है इस सब के पीछे क्या कारण है ?? निश्चित ही मज़हब या साम्प्रदायिकता ! हद् तो तब हो जाती है जब दुर्गापूजा के बाद विसर्जन के लिए मूर्तियाँ ले जाते समय या मुहर्रम के समय रास्ते के लिए विवाद साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लेता है और कितने ही घरों को बर्बाद कर देती है…नेता आते हैं और मगरमच्छी आसू बहा कर वही करते हैं जो सदियों से चला आ रहा है – गंगा गए तो गंगादास और यमुना गए तो यमुनादास यानी जिस सम्प्रदाय में जाना उसी को साफ़ पाक बताना और उसी की श्रेष्ठता का राग अलापना ! ये राजनीति की मजबूरी है ! धर्म वो ताकत है जो इंसान को बुराई से हटाकर अच्छाई की तरफ ले जाती है तो फिर जो हो रहा है उसका क्या कारण है ?? कहा गई धर्म की अच्छाई ? निरपेक्ष दृष्टी से देखें तो मज़हब को एक हथियार बनाया जा रहा है! मज़हब या धर्म एक जूनून है जिसका सम्बन्ध मनुष्य के मस्तिष्क या तर्कशक्ति के साथ बल्कि ह्रदय एवम भावना के साथ है !जब हम कुछ बातों को अंतिम सत्य मान कर उसके पालन को ही सब कुछ मान लेते हैं तो परिणाम बहुत ही भयंकर होते हैं ! समझदार लोग तो फिर भी भावना के साथ बुद्धि और कर्त्तव्य का समन्वय बना लेते हैं परन्तु आम आदमी …. वो तो मज़हब के नाम पर मरने-मारने को उतारू हो जाता है जबकि ऐसा करने से किसी को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला ! धर्म के नाम पर जान कुर्बान करने वालो को शायद ये समझ ही नहीं होती वे किसी के उकसावे पर अपनी जान पर खेल जाने का जो जोखिम उठाते हैं वो  किसी के लिए लाभदायक नहीं है ! लोगों को यह बात तब समझ में आती है जब बहुत देर हो चुकी होती है ....इतिहास गवाह है की मज़हब एक जूनून की तरह आदमी के दिलो दिमाग पर छा कर उसे विध्वंश की ओर ले जा रहा है! बहुत पीछे जाने की जरुरत नहीं है- स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत जब दो राष्ट्रों में बँट गया तो साम्प्रदायिकता की आग में ऐसे जला की विश्व इतिहास में एक भीषण नरसंघार के रूप में दर्ज हो गया ! उस टकराव का क्या कारण है ?? उत्तर है- मज़हब ! फूट डालो और राज करो की नीति सिर्फ अंग्रेजो की रही हो ऐसा नहीं है, हर देश हर समाज में इसे समय समय पर आजमाया जाता रहा है ! फूट डालने का सबसे आसान और कारगर जरिया है- मज़हब,... ये कहना की “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” एक छलावे के सिवा और कुछ नहीं... अगर ये सच होता तो क्यूँ इस गीत के रचयिता अपनी ही बात से पीछे हट गए और भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए ?? भारत और पकिस्तान का यह बटवारा कृत्रिम है..इस बटवारे के पीछे मज़हब के सिवा कोई और कारण हो तो बताइए ?? और सिर्फ भारत और पकिस्तान ही क्यूँ, हर देश का बटवारा सांप्रदायिक आधार पर ही हुआ है  ! ..एक प्रसीद्ध शायर ने कहा है -
” खुदा ने तो इंसान को बस इंसान बनाया,
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया..!!
मालिक ने तो बक्शी थी हमें एक ही धरती,
हमने तो कहीं भारत तो कहीं इरान बनाया !!
ये सच है की संप्रदाय के आधार पर राष्ट्र बटें हैं लेकिन यही मज़हब आदमी को आदमी से जोड़ता भी है  ! हमारे दिलों में इंसानियत के लिए दर्द और आदर्शों के लिए बलिदान का जज्बा भी कहीं न कहीं मज़हब की ही देन है ! मज़हब के बिना समाज या राष्ट्र की कल्पना भी बेमानी है, लेकिन जो बदरंग तस्वीर सामने आ रही है वह ये मानने पर मजबूर कर रही है की मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना….

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