बुधवार, 1 अगस्त 2012

!! सानिया मिर्ज़ा को तिरंगे से परहेज क्यों ?

सबके हाथ मेँ तिरंगा है मगर इसके हाथ मेँ तिरंगा क्योँ नही ???

भारत सरकार इसके नाज नखरे उठाती है और नाराज होने पर इसकी अम्मी तक को मुफ्त मेँ लन्दन कि सैर करवाती है मगर ये कितना मान दे रही है हमको??

और वैसे इसने आज तक कोई बडी जीत दर्ज नही की और ना कोई पदक तो भी इसके नखरे क्योँ उठाये जाते है ??

क्योँ ?? क्योँ ?? क्योँ ?? क्योँ ??क्योँ ?? क्योँ ??क्योँ ?? क्योँ ??
सबके हाथ मेँ तिरंगा है मगर इसके हाथ मेँ तिरंगा क्योँ नही ??? भारत सरकार इसके नाज नखरे उठाती है और नाराज होने पर इसकी अम्मी तक को मुफ्त मेँ लन्दन कि सैर करवाती है मगर ये कितना मान दे रही है हमको?? और वैसे इसने आज तक कोई बडी जीत दर्ज नही की और ना कोई पदक तो भी इसके नखरे क्योँ उठाये जाते है ?? क्योँ ?? क्योँ ?? क्योँ ?? क्योँ ??क्योँ ?? क्योँ ??क्योँ ?? क्योँ ??

!! क्रांति और परिवर्तन !!

वर्तमान परिस्थिति  जन्य कारण से आज हम क्रान्ति शब्द से ही डरने लगे है ,ओर इसी कारण हम आज भी अन्ना के आन्दोलन को पूर्ण समर्थन नहीं कर पा रहे है ! एक समय था जब क्रान्ति से लोग बहुत प्यार करते थे ,क्रान्तिकारि कहने मात्र से लोगों का मस्तक झुक जाया करता था ,आजादी के समय तो जान जोखिम में डालकर भी क्रांतिकारिओं  को मदद के लिए जनता बढ-चढ कर आगे आते रहे है..पर आज ? उस समय पर लोग समझते थे कि क्रान्तिकाररियों का साथ देना एक पवीत्र कार्य हैं .......पर आज हमारी बिचार्धारा क्यों बदल रही है ?


बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं  का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा  -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित  युवा वर्गों  द्वारा परिवर्तणकारी विशेष  करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का  साहस ही क्रांतिकारिओं  का पहचान हुआ करता था......पर आज के युवा  वर्ग निष्क्रिय हो रहे है देश के प्रति ?

एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई  में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने  क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र  रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों  निर्दोष  देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को  दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई  भी होती ,तो भी इतनी बड़ी  संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़  कर सामने रखने का मैकाली  षड़यंत्र  जारी है........

मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं !  मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ  –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर  बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा .......

हर समय परिवर्तन   की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों  पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे  तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी  है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।

परिवर्तन का ही नाम क्रान्ति है,जो आअज अन्ना टीम कर रही है , परिवर्तन  कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तन के लिए समझा जाता हैं.....

मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती  है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं .........

तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि  ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है,,और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है.........

परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति  टिक नही सकती  ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ...........

भारतवर्ष  में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती  है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात परिवर्तन आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तन  की रूप कैसे हो .?..किस दिशा मे परिवर्तन की  रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन  के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है........

कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा .......अब मेरा एक ही प्रश्न है मेरे पाठको से की क्या अन्ना टीम के साथ हम सभी को क्रांति का एक नया पाठ लिखना चाहिए ? क्या आज हम सभी को खुनी क्रांति को लेकर विचार करना चाहिए ?

आप सभी के जबाब की प्रतीक्षा है ......