बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

क्या बाबासाहब ने कभी मायावती जी को आशीर्वाद दिया था ?

गौरतलब है लखनऊ में मायावती की डेढ़ करोड़ रुपये की लागत वाली 24 फीट की मूर्ति प्रतिबिंब स्थल में, वहीं की गैलरी में 47.25 लाख रुपये की लागत से 18 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा, परिवर्तन स्थल में ही 20.25 लाख रुपये की लागत से 12 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा, नौ लाख की लागत वाली सात फीट उंची प्रतीमा, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल पर 47 लाख की लागत वाली 18 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा, डॉ. बी आर अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर पौन करोड़ की लागत वाली तीन प्रतिमायें, कानपुर रोड योजना में 47.25 लाख रुपये की लागत से 15 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा लगी हुई हैं. राज्य के अलग-अलग इलाकों में मायावती की मूर्तियों की संख्या हजारों में है. ......
"गलत समझे यह बुद्धिमान गौतम की बसारत को, बलाए-बुत-परस्ती ने किया बर्बाद भारत को".- हफिज जालंधरी. धम्म यानि अनीश्वर, अनात्मा, अनित्य, प्रतीत्य सम्मुत्पाद, सम्यक अष्टांगिक मार्ग और जनतंत्र है, यही बुद्ध की देशना है.

बाबासाहब आम्बेडकर ने इन्ही बिचारों के रास्ते को आगे जानेवाला कल्याणकारी रास्ता समझा. इसमें कही पर बुत=पुतले का उल्लेख नहीं है. पुतले बनाकर उनकी पूजा सुरु करने की बात नहीं है. अब अगर पुतले बनाए गए है तो कल उन्हें पूजनेवाले मिलेंगे. क्या पूजापाठ से भुख मिट जायेगी? क्या इसे बुद्ध का कल्याणकारी मार्ग कहेंगे?

सम्राट अशोक ने बुद्ध की मुर्तिया और बुद्ध उपदेशों के शिलालेख बनवाए थे लेकिन पूजने के लिए नहीं. उन्होंने खुद की मुर्तिया बनाने का मोह नहीं किया.वह पुतले पूजने के लिए नहीं थे, यादों के लिए थे. फिर भी लोगों ने उन्हें पूजना सुरु किया.उसका क्या फायदा हुआ? सद्दाम हुसैन और गद्दाफी ...नामक तानाशाह ने अपने पुतले बनवाए थे, क्या अब वे है?

क्या बाबासाहब ने कभी मायावती को आशीर्वाद दिया था? बाबासाहब ने कभी भी मायावती के तानाशाही का समर्थन नहीं किया था, मगर तानाशाह मायावती के सर पर आशीर्वाद देनेवाला बाबासाहब आम्बेडकर का पुतला क्यों बनवाया गया? क्या आशीर्वाद देनेवाले बाबासाहब आम्बेडकर के पुतले कही पर देखे गए है? यह तो बाबासाहब को ईश्वर बनाकर उनके विचारों पर ताला लगाने का प्रयास है.

यह बाबासाहब ने बनाए क्रन्तिकारी इतिहास को बदलने का कपटी प्रयास है. कांशीराम और मायावती कोई मिया-बीबी नहीं थे, मगर जोड़ी से ही पुतले क्यों बनवाए? जैसे की सावित्रीबाई-जोतिराव फुले और रमाबाई-बाबासाहब आम्बेडकर के पुतले जोड़ी से इस "दलित स्मारक पार्क" में जोड़ी से है. हफिज जालंधरी के अनुसार पुतले पूजनेवाली परंपरा से बुद्धिमान तथागत बुद्ध के भी विचार लोग भूल गए और भारतीय लोगों को बर्बादी का मुहं देखना पड़ा. वे हमेशा गुलाम बनते गए और उन्हें दूसरों द्वारा लुटा गया.

क्या पूजापाठ से नए जनकल्याणकारी क्रांति की अपेक्षा की जा सकती है? फिर क्यों माने की पुतले बनाने का कार्य बाबासाहब के मिशन का महान कार्य है? सिद्धार्थ पाटिल भी बीएसपी के महान कार्यकर्ता है तो उनका भी एक पुतला उस दलित पार्क में क्यों नहीं बनवाया? क्या बुद्ध-आम्बेडकर मूर्ति पूजक थे? लोगों के पेट की फिकिर नहीं, महंगाई से निपटने की फिकिर नहीं और पुतले बनवाने और उन्हें पुजवाने की जरुरत आ गिरी. मेरे नजरों में यह बाबासाहब आम्बेडकर के मिशन का कार्य कदापि नहीं हो सकता, यह सिर्फ तानाशाह कांशीराम के मनुवादी मिशन का कार्य है..........