मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

!! मुझसे बुरा न कोय ---प्रदीप नाग्देवो जी !!

अगर आज के समाज पर द्र्ष्टिपात करें तो जहाँ देखो अशांति का बातावरण है और तो और अपनों के बीच तक नफरत की दीवारें खड़ी हो चुकी हैं ! शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसे अपने आस-पड़ोस, ऑफिस, नाते -रिश्तेदार या मित्रों से शिकायत न होगी ! इसका कारण भी बहुत बड़ा नहीं है बस लोग दूसरों की जिन्दगी में ताक- झाँक और व्यंगबाजी करना छोड़ दें तो माहौल एकदम उलट हो जाएगा ! आज- कल लोग अपने दुःख से दुखी नहीं होते लेकिन दूसरों के जरा से  सुख से भी उनको कष्ट होता रहता है ! वे अपने दुखों को दूर करने के बजाए इस जुगत में लगे रहते हैं कि दूसरा कैसे परेशान हो ,स्वयं के जरा से स्वार्थपूर्ती हेतु दूसरे का बड़े से बड़ा नुकसान करने से भी गुरेज नही करते ! आज इंसान का मकसद बस इतना सा रह गया है कि वो जो कर रहा है वह ही सही है बाकी सब गलत है, भले ही वो खुद गलत हैं लेकिन सब उसी की बात को ध्यान से सुनें ,मानें और प्रशंसा करें जैसे हमारे मित्र श्री मान प्रदीप नाग्देवो जी  फेसबुक में है !आत्मप्रशंसा करने से उन्हें  इतनी फुर्सत नहीं होती कि दूसरे की बात  भी सुन सके , बेशर्मी की हद तो यह हो गई कि कुछ लोगों ने यह दृढ -प्रतिज्ञा कर ली है और अभ्यास भी ,कि अपनी बात ही करुगा दुसरे की बात नहीं सुनुगा श्री मान प्रदीप नाग्देवो जी आप आत्मप्रशंसा में बस बोले जाओ सामने वाले को कुछ बोलने का मौका मत ही दो , अगर सामने वाला भी उन्ही जैसा है तो कहने ही क्या ! और सामने अगर समझदार व्यक्ति होगा तो चुप रहना ही बेहतर समझता है और ऐसे लोंगो से बचने की कोशिश करता है !
 आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अहंकारी व्यक्ति होते ही ऐसे हैं फिर उनके
मानसिक दिवालियेपन का ही पता चलता है ! जमाना कितना भी बदल गया हो लेकिन आज भी सौ प्रतिशत सच्चाई इसी में है की भरा हुआ घड़ा कभी नहीं छलकता ,अपने बड़- बोलेपन से इंसान कुछ देर के लिए बड़ा बन सकता है आखिर दूसरो की नजरो में उसे गिरना ही होता है !
इस प्रकार के लोग  गलती निकालने और शिकायत करने का कोई मौका नहीं चूकते! खुद को सुधारक की तरह पेश करना उनकी आदत है फेसबुक में  प्रदीप नाग्देवो जैसे ! अक्सर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की उनकी आदत को लेकर चर्चा होती है ! दरअसल शिकायत करना, गलतियां निकालना और जगह-जगह अपनी प्रतिक्रिया देना अहं का ही एक रुप है। यह ‘जियो और जीने दो’ दर्शन के प्रतिकूल है !
जो अपने चिंतन को नियंत्रित नहीं कर पाता, वह हर आदमी में बुराई खोज निकालता है!इसक उलट चिंतन को नियंत्रित करना सीख जाएं तो हर आदमी में अच्छाई भी खोजी जा सकती है! मन का स्वाभाव है कि वह खुद के सही होने और दूसरे के गलत होने को लेकर गोलबंदी करता रहता है ! मसला यह है कि आप इसे कितना नियंत्रित कर पाते हैं!
अहं को कोई इतनी मजबूती नहीं देता जितना सही होने का अहसास! व्यवसायी और चिंतक एंड्रयू कारनेगी कहते कि सामने वाला क्या है इससे अधिक जरुरी प्रश्न यह है कि आपकी तलाश क्या है ? सोने की खुदाई में टनों मिट्टी को हटाना होता है! अब अगर आप मिट्टी को देखने लगे तो सारा काम बेमोल लगेगा, लेकिन सोने का देखें तो जान पाएंगे कि आपने मिट्टी के बीच क्या पाया है! आप वही पाते हैं जो आप पाना चाहते हैं! आप बात-बात पर शिकायतें करते हैं क्योंकि आपमें इतना नैतिक बल नहीं कि सुधार कर सकें!वॉरेन बफेट कहते हैं कि " वैसे प्रतिभाशाली लोगों का असफल होना एक सामान्य सी बात है" जो ‘इंसानों के इंजीनियर’ नहीं होते! इंसानों के इंजीनियर होने का यह मतलब है कि आप इंसान रुपी मशीन के किसी नट-वोल्ट के घिसे होने पर टीका टिप्पणी न कर उसे कसने में मदद करें! यह भी कि अपने भीतर देखते रहें कि कहीं कोई पुर्जा घिस तो नहीं गया! बुद्घ-महावीर ने भी कईं बरस खुद में झांका! उसके बाद ही उन्होंने दूसरों के पुर्जे दुरुस्त किए!
 कबीरदास जी ने सही ही कहा था -बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय जो मन खोजा आपना ,मुझसे  बुरा न कोय !

!!! श्री मान प्रदीप नाग्देवो जी समाज-सेवा जैसा कठिन काम सबके बस का नहीं है यदि हम दूसरों के प्रति सही सोच ही रखने लगें तो यही सबसे बड़ी समाज–सेवा होगी !!!

नोट --ब्लॉग की सभी बाते लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे मित्र श्री मान प्रदीप नाग्देवो जी से मिली है अतःश्री मान प्रदीप नाग्देवो जी को बहुत बहुत धन्यवाद ..........