शुक्रवार, 30 मार्च 2012

!! देश की रक्षा तैयारियों को लेकर उपजी चिंता का जबाब देश वासियों को क्यों नहीं मिल रहा है प्रधानमंत्रीजी की ओर से ?


देश की रक्षा तैयारियों के बारे में 12 मार्च को आर्मी चीफ जनरल वी. के. सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को जो चिट्ठी लिखी है, वह विस्फोटक और चिंतित करने वाला है। लीक हुई चिट्ठी में बहुत से मुद्दों को उठाया गया है। कुछ अहम मुद्दे निम्न हैं...

1. दुश्मन को शिकस्त देने के लिए टैंक के बेड़े के पास गोला-बारूद का भारी अभाव।
2. हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और बेकार हो गए हैं, हवाई हमले से बचाने का भरोसा नहीं दे सकते।
3. पैदल सेना के पास पर्याप्त हथियारों का अभाव, रात में लडऩे की क्षमता की भारी कमी है।
4. आर्मी की एलीट स्पेशल फोर्स के पास के पास चिंताजनक रूप से जरूरी हथियारों की कमी है।
5. सेना की निगरानी क्षमता में बड़े स्तर पर खामियां मौजूद हैं।

सरकार के साथ टाली जा सकने वाली जुबानी जंग में उलझे जनरल द्वारा उठाए गए पॉइंट्स को पढ़ने के बाद कोई भी समझ सकता है कि वह किस ओर इशारा कर रहे हैं। वह रक्षा सौदों की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, जिसने हमारी तैयारियों को अपंग बना दिया है। वह यह भी बता रहे हैं कैसे पूरा सिस्टम करप्ट हो चुका है।

घूस स्कैंडल सामने आने के बाद इस बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है, पर एक बात साफ है। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि चीन को पीछे छोड़कर भारत हथियार का सबसे बड़ा आयातक देश बन चुका है और दुनिया के कुल हथियार आयात में उसकी हिस्सेदारी 10 फीसदी हो गई है। द स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच भारत के हथियारों की खरीद में आश्चर्यजनक रूप से 38% की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत अगले 15 सालों में हथियारों पर 100 अरब डॉलर खर्च कर सकता है।

क्या यह खबर किसी बड़ी चीज की ओर इशारा नहीं कर रही है? जो जनरल कह रहे हैं, क्या यह उसके उलट नहीं है? अगर हम दुनिया में हथियार के सबसे बड़े आयातक हैं, तो क्यों और कैसे रक्षा तैयारियों में इतने पिछड़े हुए हैं? इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला, हम अभी जितना खर्च कर रहे हैं, उससे काफी ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। जिस तरह से जनरल ने डरावनी तस्वीर पेश की है कि एयर डिफेंस के मामले में 97% उपकरण पुराने पड़ चुके हैं, इससे तो लग रहा है कि हथियार खरीद के मामले में खाई को पाटने के लिए हमें हथियार आयात में हिस्सेदारी बढ़ाकर 20 फीसदी करनी होगी। दूसरा कारण यह हो सकता है कि हथियार-उपकरण खरीदने के लिए इस्तेमाल होने वाली राशि कहीं और जा रही है।

अब यह फैसला मैं आपकी समझ पर छोड़ता हूं कि दोनों में सही कारण कौन-सा है।

हालांकि, इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं। लोग आर्मी चीफ पर पिले पड़े हैं। कुछ सांसद तो उन्हें बर्खास्त करने तक की मांग तक कर रहे हैं। मेरा उनसे कहना है कि संदेशवाहक को गोली नहीं मारी जाती। ऐसा पहली बार हो रहा है कि रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है। इसका श्रेय आर्मी चीफ को ही जाता है। नहीं तो अब तक तो इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर दबा दिया जाता था।

आम आदमी सरकारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। उसकी सहनशक्ति दिन पर दिन कम हो रही है। और, समझ लीजिए कि जिस दिन हमारे सुरक्षा साजोसामान में भ्रष्टाचार का असर सबको दिखने लगेगा, लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। तब उसे संभाल पाना संभव नहीं होगा। बहुत अच्छा होगा कि हमारे सांसद, जिनकी अपनी ही विश्वसनीयता गर्त में है, इस मौके का इस्तेमाल सिस्टम की सफाई में करें न कि साहस दिखाने वाले जनरल पर निशाने साधने में क्योंकि उनके निजी हितों पर भी खतरा मंडरा रहा है।

बुधवार, 28 मार्च 2012

!!जातिवाद सिर्फ़ हिंदू धर्म में है क्या ?

वैदिक समाज को श्रम विभाजन के निमित्त चार वर्णों में विभक्त किया गया था। किन्तु कालान्तर में इससे लाखों जातियाँ बन गयीं। जाति के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव या पक्षपात करना जातिवाद कहलाता है। एक जाति स्वयं अनेक उपजातियों तथा समूहों में विभक्त रहती है। उच्च हिंदू जातियों में गोत्रीय विभाजन भी विद्यमान हैं। एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे जाते हैं। कभी कभी जब किसी जाति का एक अंग अपने परंपरागत पेशे के स्थान पर दूसरा पेशा अपना लेता है तो कालक्रम में वह एक पृथक्‌ जाति बन जाता है, किंतु उसका गोत्र वो ही रहता है| इस प्रकार एक गोत्र अनेक जातियों में विभक्त हो जाता है| इन उपजातियों में भी ऊँच नीच का एक मर्यादाक्रम रहता है। उपजातियाँ भी अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है और इनमें भी उच्चता तथा निम्नता का एक क्रम होता है जो विशेष रूप से विवाह संबंधों में व्यक्त होता है|


क्या जातियाँ, छुआ-छूट सिर्फ़ हिंदू धर्म में हैं?

ईसाइयों, मुसलमानों, जैनों और सिखों में भी जातियाँ हैं और उनमें भी उच्च, निम्न तथा शुद्ध अशुद्ध जातियों का भेद विद्यमान है| ईसा की 12 वीं शती में दक्षिण में वीर शैव संप्रदाय का उदय जाति के विरोध में हुआ था। किंतु कालक्रम में उसके अनुयायिओं की एक पृथक्‌ जाति बन गई जिसके अंदर स्वयं अनेक जातिभेद हैं। सिखों में भी जातीय समूह बने हुए हैं और यही दशा कबीरपंथियों की है। गुजरात की मुसलिम बोहरा जाति की मस्जिदों में यदि अन्य मुसलमान नमाज पढ़े तो वे स्थान को धोकर शुद्ध करते हैं। बिहार राज्य में सरकार ने 27 मुसलमान जातियों को पिछड़े वर्गो की सूची में रखा है। मुसलमानों और सिक्खों की भाँति ईसाइयों में अछूत समूह हैं जिनके गिरजाघर अलग हैं अथवा जिनके लिये सामान्य गिरजाघरों में पृथक्‌ स्थान निश्चित कर दिया गया है। किंतु मुसलमानों और सिखों के जातिभेद हिंदुओं के जातिभेद से अधिक मिलते जुलते हैं जिसका कारण यह हे कि हिंदू धर्मं के अनुयायी जब जब इस्लाम या सिख धर्म स्वीकार करते हें तो वहाँ भी अपने जातीय समूहों को बहुत कुछ सुरक्षित रखते हैं और इस प्रकार सिखों या मुसलमानों की एक पृथक्‌ जाति बन जाती है।


घर के ना घाट के

मुगल काल में औरंगज़ेब के समय में सब ज़्यादा हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया| किसी ने मजबूरी में तो किसी ने अपनी इच्छा से लालच के कारण धर्म परिवर्तन किया|

ईसाई मिशनरियों ने जाति हिंदू व्यवस्था को तोड़ने के लिए इसे ब्राह्मणवाद की रचना कहना प्रारंभ किया| देवेन्द्र स्वरूप जी बताते हैं कि "जाति प्रथा से छुटकारा दिलाने के नाम पर उन्होंने अपने धर्मांतरण के प्रयास निचली और निर्धन जातियों पर केन्द्रित कर दिये|" इसके लिए बाईबल के जिस वाक्य को आधार बनाया गया वह है कि "हे (जाति) बोझ से दबे और थके (दलित) लोगों, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा." जो लोग अपनी जाति से मुक्ति चाहते थे उन्होने ईसाईयत को मुक्ति का द्वार माना| जाति को बुरा बताने वाला चर्च अब दलित ईसाई की बात करता है| ईसाई संगठनों और चर्चों ने हमेशा यही कहा है कि अगर दलित और पिछड़े लोग छूआछूत की अभिशाप से मुक्ति चाहते है तो ईसाईयत का रास्ता पकड़ें| 2008 तक  देश में कुल दलितों में 1.5 करोड़ दलित ईसाई थे| जी लोगो ने सब्ज़ बात देख कर अपने धर्म परिवर्��न किया वो जिस स्थिति से गये थी उसी स्थिति में थे उससे बुरी स्थिति में पहुँच गये .......| भला या बुरा जैसा भी था अपना था किंतु अब तो ना घर के रहे और ना घाट के अपने लोग धर्म परिवर्तन के कारण हैय दृष्टि से देखते हैं और जिस धर्म में जाते हैं उनका समाज पूर्ण रूप से अपनाता नही ......


सामाजिक मर्यादा की दृष्टि से विभिन्न वर्गों का श्रेणीविभाजन तो सभी देशों में रहा है।

प्राचीन मिस्र में पुरोहित, सैनिक, लेखक, चरवाहे, सुअर पालनेवाले और व्यापारियों के पृथक्‌ पृथक्‌ वर्ग थे जिनके पेशे और पद वंशानुगत थे। कोई कारीगर अपना पैतृक धंधा छोड़कर दूसरा धंधा नहीं कर सकता था। सुअर पालने वाले अछूत माने जाते थे और उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।

जापान में सैनिक सामंतवाद (12वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के मध्य तक) के शासनकाल में अभिजात सैनिक समुराई वर्ग के अतिरिक्त कृषक, कारीगर, व्यापारी और दलित वर्ग थे। दलित वर्ग में एता और हिनिन दो समूह थे जो समाज के पतित अंग माने जाते थे और गंदे तथा हीन समझे जानेवाले कार्य उनके सपुर्द थे।

अफ्रीका में लोहारों का समूह प्राय: शेष समाज से पृथक्‌ रखा जाता है|

प्राचीन मिस्र, मध्यकालीन रोम और सामंती जापान में राज्य की ओर से अंतर्विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे और पेशों को वंशानुगत कर दिया गया था।


जातीय संघटन नए ढ़ग से अपने को संगठित कर रहे हैं

श्री भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में पहले दलित वर्गसंघ और बाद में रिपब्लिकन पार्टी बनी और दक्षिण भारत में पहले जस्टिस पार्टी और स्वतंत्रप्राप्ति के बाद द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम्‌ का संघटन हुआ। देश के लोकतांत्रिक निर्वाचनों में जातितत्व प्रमुख हो जाता है, सरकारी नौकरियों और सुविधाओं की प्राप्ति में भी जातीय पक्षपात प्रतिलक्षित होता है। इस प्रकार राजनीति में जाति का विशेष स्थान हो गया है।
जातिवाद तो सभी धर्मो में है ..सच्चाई देखें इस दकुमेंतरी फिल्म में जो एक सच्चाई बया करती है .




भारतीय संविधान और कानून की दृष्टि से छुआछूत का व्यवहार दंडनीय अपराध है।
!! इस्लाम में जातिवाद” के कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने !!

१. जबसे इस्लाम मज़हब बना है तभी से “शिया और सुन्नी” मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग आपस में लड़ते-मरते रहते हैं ...!!
२. अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया, पठान आदि मुस्लिमों की जातियां हैं, और हंसी की बात, यह एक ही अल्लाह को मानने वाले, एक ही मस्जिद में नमाज़ नहीं पढते!!! सभी जातियों के लिए अलग अलग मस्जिदें होती हैं .!!
३. सउदी अरब, अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि अन्य अरब राष्ट्रों के मुस्लिम पाकिस्तान, भारत और बंगलादेशी मुस्लिमों को फर्जी मुसलमान मानते हें और इनसे छुआछूत मानते हैं । सउदी अरब मे ऑफिसो मे भारत और पाक के मुसलमानों के लिए अलग पानी रखा रखता है |
४. शेख अपने आपको सबसे उपर मानते हैं और वे किसी अन्य जाति में निकाह नहीं करते.
५. इंडोनेशिया में १०० वर्षों पूर्व अनेकों बौद्ध और हिंदू परिवर्तित होकर मुस्लिम बने थे, इसी कारण से
सभी इस्लामिक राष्ट्र, इंडोनेशिया से घृणा की भावना रखते हैं..
६. क़ाज़ी मुस्लिम, ''भारतीय मुस्लिमों'' को मुस्लिम ही नहीं मानते... क्यूंकि उन का मानना है के यह सब भी हिंदूधर्म से परिवर्तित हैं !!!
७. अफ्रीका महाद्वीप के सभी इस्लामिक राष्ट्र जैसे मोरोक्को, मिस्र, अल्जीरिया, निजेर,लीबिया आदि राष्ट्रों के मुस्लिमों को तुर्की के मुस्लिम सबसे निम्न मानते हैं ।
८. सोमालिया जैसे गरीब इस्लामिक राष्ट्रों में अपने बुजुर्गों को ''जीवित'' समुद्र में बहाने की प्रथा चल रही है!!!
९. भारत के ही बोहरा मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नहीं जाते, वो मात्र मज़ारों पे जाते हैं... उनका विश्वास सूफियों पे है... अल्लाह पे नहीं !!

१०. मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-

१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ। अशरफ से तात्पर्य है 'कुलीन' और शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के मुसलमान शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है।
कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं।
उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा- जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ) मलिक और (अप) मिर्ज़ा।
२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान......
(A) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जोमूलतः हिन्दू थे, किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।
(B) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।
(C) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई,धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा,लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।
(D) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।

३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग भानार, हलालखोदर,हिजड़ा , कसंबी, लालबेगी, मोगता, मेहतर।

अल्लाह एक, एक कुरान, एक .... नबी ! और महान एकता......... बतलाते हैं स्वंय में ?
जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .
और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!
इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .
इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.
और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.
फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!
किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .
कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..
आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .
सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..
आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है .
अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...
पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है ।
और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं, जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.

!! अब आइये ... जरा हम अपने हिन्दू/सनातन धर्म को भी देखते हैं.!!

हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप-टिप्पणियों मौजूद हैं..!एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियों की विविधता,अनेकों आचार्य तथा हजारोंऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..
फिर भी, हम सभी मंदिरों में जाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .
और तो और.... पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में आपस में धर्म के नाम पर "कभी झगड़ा नहीं" हुआ .
इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ... और...."गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"...!


नोट --अंत में मैं यह निःसंकोच कह सकता हु की यह जातिप्रथा और छुआछुत निश्चय ही सनातन धर्म की देन हो सकती है !!

मंगलवार, 27 मार्च 2012

!! भारत में बौध्ध दर्शन का सफाया क्यों और कैसे ?

एक घटना जो बौद्ध दर्शन के भारत से सफाए का कारण बन गयी
भारत में हर इतिहास का जानकर आदमी ये तो जनता हँ की आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने भारत से बौद्ध धर्म का सफाया किया लेकिन ये कम लोग ही ये बात जानते हँ की भौद्धो के खिलाफ अभियान की शुरुआत शंकराचार्य ने नहीं बल्कि कुमारिल भट्ट नाम के एक विद्वान् ने की थी
जिन दिनों शंकराचार्य बारह वर्ष की अवस्था में गुरु आज्ञा से वेदांत सूत्र पर अपना विश्वविख्यात '' शारीरक भाष्य '' लिखने के लिए हिमालय की गुप्त कंदराओ में जाने पर विचार कर रहे थे उन्ही दिनों कुमारिल भट्ट नाम के एक वयोवृद्ध विद्वान् बौद्धों के खिलाफ बिगुल फूंक चुके थे और उन्हें उत्तर भारत से बौद्ध धर्म और जैन दर्शन का सफाया कर दिया था ( विशेषकर जेनियो से हुए उनके शास्त्रार्थ तो सर्वथा अलोकिक होते थे )
उन दिनों एक ऐसी घटना घट गयी थी जिसने अनायास ही कुमारिल भट्ट को हिन्दुओ का नायक बना दिया था
कुमारिल भट्ट एक बहुत उच्च स्तरीय विद्वान् थे और बौद्धों के बढ़ते पाखंड से बहुत चिंतित थे
बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उन्होंने बौद्धों से शास्त्रार्थ करने की ठानी लेकिन बौद्ध दर्शन के सिद्धांतो से अवगत हुए बिना ये संभव नहीं था उन्होंने युक्ति से काम लेते हुए एक बौद्ध भिक्षु को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया और ये शरत राखी की जो हार जायेगा वो दुसरे का धर्म स्वीकार करेगा फिर वे जानबूझकर उससे हार गए , फिर पहले तय हुई शर्त के मुताबिक़ उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया और नालंदा के बौद्ध विहार में आकर धरमपाल नाम के एक प्रख्यात बौद्ध आचार्य से बौद्ध न्यायशास्त्र का अध्यन करने लगे
एक दिन उपदेश देते समय आचार्य धरमपाल ने कुमारिल भट्ट आदि शिष्यों के सामने वेदों की निंदा की जिसे सुनकर कुमारिल भट्ट को बड़ा दुःख हुआ
वेह सर झुकाए चुपचाप आंसू बहाने लगे
पास के बौद्ध भिक्षुओ ने कुमारिल को रोते देखकर कारण पूछा , कुमारिल ने रोते हुए कहा - '' आचार्य वृथा ही वेदों की निंदा कर रहे हँ , उससे मुझे बड़ा कष्ट हो रहा हँ
बौद्ध श्रमणों के द्वारा आचार्य को ज्ञात कराते ही उन्होंने कुमारिल से पूंछा - ''तुम रोते क्यों हो ? क्या तुम अभी भी वैद विश्वासी प्रछन्न हिन्दू हो ? बौद्ध श्रमण बनकर क्या तुम हमे प्रताड़ित करने आये हो ?
कुमारिल ने विनीत भाव से कहा - '' आप बिना वैद को समझे अकारण ही वेदों की निंदा कर रहे हँ ''
बौद्ध आचार्य ने उत्तेजित कंठ से कहा - '' तो तुम मेरे कथन की असत्यता प्रमाणित करो ''

तब आचार्य और कुमारिल में शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ ! कुमारिल एक अत्यंत विद्वान पुरुष थे, उन्होंने वैद के प्राधान्य के प्रतिपादन में कटिबद्ध होकर जटिल तर्कजाल से आचार्य को जर्जरित करते हुए कहा - ''सर्वज्ञ की कृपा के बिना जीव सर्वज्ञ नहीं हो सकता , महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के लिए वैदिक धर्म मार्ग का ही आश्रय लिया , फिर वेद ज्ञान से ही ज्ञानी होकर वेद को ही अस्वीकार कर दिया, यह चोरी नहीं तो और क्या हँ ? '''
कुमारिल के कठोर मंतव्य से क्षुब्ध होकर बौद्ध आचार्य ने कहा -'' तुम भगवान् बुद्ध की निंदा करते हो ? इस अत्यंत ऊंचे महल से गिराकर तुम्हारा प्राण संहार करना ही इस पाप का एकमात्र प्रायश्चित हँ
आचार्य का इशारा पाकर अहिंसा ही जिसकी बुनियाद हँ, ऐसे उस बौद्ध धर्म के मानने वालो बौद्ध भिक्षुओ ने जो की इस समय काफी उत्तेजित थे, कुमारिल को पकड़ लिया और छत से नीचे फेंक दिया
कुमारिल वैद विहित सभी साधनाए पूर्ण कर चुके थे और कई सिद्धियों के स्वामी थे , वे योग मार्ग में काफी आगे तक पहुचे हुए थे उन्होंने पहले ही अपनी आत्मा को अपने ब्रह्मस्वरूप में आरुढ़ किया तो जोर से कहा -'' अगर वेद सत्य हँ तो मेरी भी मृत्यु नहीं होगी ''
कुमारिल इतनी ऊँचाई से गिरकर भी सुरक्षित बच गए , ये देखकर बौद्ध भिक्षुओ को बड़ा आश्चर्य हुआ
उधर हिन्दू लोग इस समाचार को सुनकर जोरदार कोलाहल करते हुए बौद्ध विहार में घुस गए और अत्यंत जोर से कोलाहल करते हुए कुमारिल को बौद्ध विहार से बहार ले आये
यद्यपि इतनी ऊंचाई से गिराए जाने पर भी कुमारिल के जीवित बचे रहने को हिन्दुओ ने अपनी जय मान ली
लेकिन इस एक घटना से हिन्दुओ और बौद्धों के बीच में एक महान विरोध का सूत्रपात हुआ
और इसी एक घटना ने आगे चलकर भारत से बौद्ध दर्शन के सफाए को सुनिश्चित किया
इससे हिन्दुओ और बौद्धों के मध्य काफी तनाव फेल गया था और उनके मध्य सशस्त्र संघर्ष के हालत पैदा हो गए थे
इस एक घटना ने जर्जर और शिथिल पड़े हिन्दू धर्म में फिर से प्राणों का संचार कर दिया और हिन्दू धर्म ने वापसी के लिए फिर से अंगडाई ली
लेकिन उन दिनों भारत बहुत से छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और अधिकांश राजसत्ता बौद्धों के ही पास थी
तब हिन्दुओ ने बहुत गहन विचार विमर्श के बाद कुमारिल भट्ट को सामने कर एक विशाल विचारसभा में शास्त्रार्थ करने के लिए धरमपाल को बुलाया ! प्रण यह रहा की जो हारेगा वो जीतने वाले का धर्म स्वीकार करेगा या फिर तुषानल (भूसे के ढेर में आग लगाकर) में प्रवेशपूर्वक प्राण त्याग करेगा
भारत के सभी प्रान्तों से बौद्ध भिक्षु और हिन्दू विद्वान् इस विचारसभा के लिए प्रस्तुत हो मगध में समवेत होने लगे
कुमारिल भट्ट की प्रतिभा के सामने बौद्धविद्वान हीनप्रभ हो गए, विशेष प्रयत्न करने पर भी आचार्य धर्मपाल ही पराजित हुए
कुमारिल ने अकाट्य तर्क देकर हिन्दू शास्त्रों से बौद्ध शास्त्रों को गलत साबित कर दिया और बौद्ध को एक चोर, नकलची और असत्य भाषण करने वाला साबित कर दिया
आचार्य धर्मपाल हार गए थे लेकिन फिर भी उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रहण नहीं किया, कहा -''मेरी पराजय का कारण कुमारिल की प्रतिभा हँ , किन्तु बौद्ध धर्म में मेरी श्रद्धा नष्ट नहीं हुई हँ ,में बुद्ध धर्म की शरणागति से विचलित नहीं हुआ हु , में हिन्दू धर्म में आने की बजाय प्राण त्यागना पसंद करूँगा
धर्मपाल पहले से तय हुई शर्त के अनुसार तुषानल में प्रविष्ट हुए
कुमारिल की इस विजय से हिन्दुओ के हर्ष का ठिकाना नहीं था हिन्दुओ ने कुमारिल को कंधे पर उठाकर जय घोष करना शुरू कर दिया और संध्या काल में कुमारिल को रथ में बिठाकर बड़ी धूमधाम से बड़े जोर शोर से हिन्दू धर्म की जय जय कार करते हुए सारे नगर में रथ से चक्कर लगाया
कुमारिल की इस विजय ने समस्त भारत के लोगो में वैदिक धर्म के नव जागरण की सृष्टि की
उस समय के मगधराज ( वर्तमान में बिहार ) आदित्यसेन ने बौद्धों पर हिन्दुओ की विजय को गौरवान्वित करने के लिए एक विशेष ठाठबाट से कुमारिल भट्ट को प्रधान पुरोहित रख लिया
गोड देश ( वर्तमान में बंगाल ) के हिन्दू राजा शशांक नरेन्द्र वर्धन ने हिन्दुओ के उत्साह को और बढाते हुए बौद्ध गया में आकर , जिस बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर महात्मा बुद्ध ने सिद्धि प्राप्त की थी उस बोधिद्रुम को काट डाला और बोद्ध मंदिर पर अधिकार स्थापित करते हुए महात्मा बुद्ध की मूर्ति के चारो और दीवाल खड़ी करते हुए बंद कर दिया , इतना ही नहीं उन्होंने तीन बार उस वृक्ष के मूल को खोदकर उसे समूल नष्ट कर दिया था
कुमारिल भट्ट ने भी अनेक शास्त्रार्थो में अकाट्य तर्कों से उत्तर भारत में बौद्ध और जैन धर्म के प्राधान्य को नष्ट कर दिया था
बौद्ध आचार्य धरमपाल की पराजय और उनके हश्र के अनंतर और कोई कुमारिल भट्ट से शास्त्रार्थ करने नहीं आते थे
लेकिन बाद में बौद्धों ने राजशक्ति की मदद से फिर से उत्तर भारत में अपनी स्थति मजबूत कर ली थी जिसे कालांतर में महान अद्वेताचार्य आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने जड़ से नष्ट कर दिया था
शंकराचार्य ने 16 बरस की उम्र से हिन्दू धर्म की पुनर्स्थापना की शुरुआत की थी और हिमालय से आकर उन्होंने सबसे पहला काम ये ही किया था की कुमारिल भट्ट को शास्त्रार्थ में परास्त करके उन्हें अद्वेत्वादी बनाकर अपने साथ भारत भ्रमण के लिए उन्हें लेने प्रयाग आये थे
अपनी ३२ वर्ष की आयु तक उन्होंने बौद्ध दर्शन का पूरी तरह विध्वंश कर दिया था
हलाकि बौद्ध धर्म को भारत से जड़ से समाप्त करने का श्रेय भले ही शंकर की अलोकिक प्रतिभा को जाता हो लेकिन बौद्धों के खिलाफ अभियान शुरू करने का श्रेय कुमारिल भट्ट को ही जाता हँ
नोट --यह पूरा लेख मेरे फेसबुक मित्र श्री आदित्य यादव जी का है ..मैंने सिर्फ यहाँ पर कॉपी पेस्ट किया है मेरे पाठको के लिए ..~!  आदित्य यादव जी कोटिशः धन्यवाद 

शनिवार, 24 मार्च 2012

!!दिल और दिमाग में अंतर्द्वंद क्यों ?

मन शरीर के भीतर का वह अदृश्य भाग है जिससे विचारों की उत्पत्ति होती है। यह मस्तिष्क की कार्यशक्ति का द्योतक है। यह कार्यशक्ति कई तरह की होती है, जैसे चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि....
दिन भर के काम के बाद थका हुआ मैं, आराम से बिस्तर में लेटा कोई फिल्म देख रहा था मैं । न जाने क्यूँ कोई खटका सा मन में महसूस हो रहा था...मन ही मन एक अंतर्द्वंद्व  चल रहा था ...फिल्म से ध्यान कब हटा पता ही नहीं चला ...
जरा सा ध्यान  दिया तो पता चला ये दिल और दिमाग के बीच की रस्साकसी है.... दिल अपने तर्क दे रहा है और दिमाग अपने ...दोनों काशी से आये हुए किन्ही विद्वानों की भांति शास्त्रार्थ करने में व्यस्त थे ...मेरा मानना था की हम अपने शरीर को अंगों को नियंत्रित करते हैं ... लेकिन ये दो अंग तो स्वचालित यन्त्र  की तरह ... अपने ही निर्णय पर विकासमान थे ... मन इन दोनों के बीच दोलन करता हुआ ... किसी राजा की तरह जो विषय से अनिभिज्ञ सिर्फ विद्वानों के तर्क के अनुसार एक को दूसरे से श्रेष्ठ समझता है और अगले ही क्षण दूसरे विद्वान द्वारा दिए गए तर्क से आश्चर्यचकित  होकर उसे श्रेष्ठ समझने लगता है ...दिल के द्वारा दिए गए तर्क बहुधा व्यहवारिकता की सीमा से उसी तरह परे होते हैं जैसे किसी निर्धन के लिए महल के सुख साधन ... दूसरी ओर दिमाग के तर्क उसी तरह संतुलित होते हैं जिस तरह किसी तुला के दोनों पलड़े ..

तथापि दिल का दिया एक क्षीण तर्क भी ..दिमाग के सबसे मजबूत दलील को दरकिनार करने की क्षमता रखता हैं ... ज्यादातर जीत दिल की ही होती है .... इसे ईश्वर का चमत्कार कहा जाए या मानव की दुर्बलता ...
लाख कोशिशो के बाद भी दिल, दिमाग पर हावी होता दीख पड़ता था ...और दिमाग युद्ध में घायल किसी महापराक्रमी योद्धा  की भांति प्रघात की प्रबलता को प्रचंड करता जाता था ..दिमाग द्वारा दिए गए हर तर्क से मन को एक क्षण की शान्ति मिलती थी और सौतिया डाह से ओतप्रोत  दिल अगले ही क्षण उस शान्ति को उसी प्रकार वाष्पीकृत कर देता था जैसे रेगिस्तान में गिरी जल की एक बूँद को तपती हुई रेत.... फिर भी वर्षो से चली आई रीत है कि दिल का कहा कभी झूठ नहीं होता ... परन्तु उसमे व्यावहारिकता नहीं होती ... दिल उसी प्रकार मूढ़ होता है जिस प्रकार चकोर पक्षी जो स्वाति नक्षत्र की चांदनी रात में ओस कि एक बूँद के लिए हर पल टकटकी लगाये चाँद कि ओर देखता रहता है ... मुझे तो यह प्रतीत होता है कि चकोर भी अपने निर्णय दिल से ही लेता होगा ...अगर दिमाग से लेता होता तो यहाँ उसकी उपमा न दी जाती ..

इसी उहापोह में मन विचलित होने लगा...दोनों ही सही प्रतीत होते हैं ...और दोनों ही हितों कि बात करते हैं बस एक बलिदान कि अपेक्षा रखता है तो दूसरा किसी भी परिस्थिति में लाभ के बारे में सोचता है ..

इस विषय पर कुछ लिखना अत्यंत कठिन है ..क्यूंकि दिल और दिमाग के बीच का वार्तालाप किसी भी भाषा कि सीमा से परे है ...दिल और दिमाग एक ही संयुक्त परिवार में रहने वाले उन दो भाइयों के सामान हैं जो न तो साथ रह सकते हैं और न ही अलग हो सकते हैं ..और मन इनके पिता के सामान है जो दोनों के तर्क सुनता तो अवश्य है परन्तु किसी एक को दूसरे से श्रेष्ठ नहीं कह सकता ....

इसी उधेड़बुन में पड़ा हुआ मैं न जाने कब निद्रा के आगोश में समां गया .... और मेरे साथ दिल और दिमाग भी मन का पीछा उसी भांति छोड़ उठे जैसे कोई बालक मिठाई मिलने के बाद माँ को छोड़ उसे खाने में मग्न हो जाता है ...
रात ही है जो मन के लिए उसकी अपनी है यही वो समय है जब मन, स्वप्न की संरचना करता है ...क्यूंकि सुबह होते ही दिल और दिमाग पुनः मन को किसी वृद्ध पिता की तरह अपने अपने तर्क से व्यस्त कर देंगे ....

गुरुवार, 22 मार्च 2012

!!रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून !!

"रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून" आज २२ मार्च को पूरे विश्व में जल दिवस मनाया जा रहा है. यानि जल बचाने के संकल्प का दिन. धरती पर जब तक जल नहीं था तब तक जीवन नहीं था और यदि आगे जल ही नहीं रहेगा तो जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती. वर्त्तमान समय में जल संकट एक विकराल समस्या बन गया है. नदियों का जल स्तर गिर रहा है. कुएं, बावडी, तालाब जैसे प्राकृतिक स्त्रोत सूख रहे हैं. घटते वन्य क्षेत्र के कारण भी वर्षा की कमी के चलते जल संकट बढ़ रहा है. वहीं उद्योगों का दूषित पानी की वजह से नदियों का पानी प्रदूषित होता चला गया. लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. आँकड़े बताते हैं कि विश्व के लगभग ८८ करोड लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है. ताज़े पानी के महत्त्व पर ध्यान केन्द्रित करने और ताज़े पानी के संसाधनों का प्रबंधन बनाये रखने के लिए राष्ट्र संघ प्रत्येक वर्ष २२ मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस के रूप में मनाता है. सुरक्षित पेय जल स्वस्थ्य जीवन की मूल भूत आवश्यकता है फिर भी एक अरब लोग इससे वंचित हैं. जीवन काल छोटे हो रहे हैं- बीमारियाँ फैल रही हैं. आठ में से एक व्यक्ति को और पूरी दुनियाँ में ८८ करोड़ ४० लाख लोगों को पीने के लिए साफ़ पानी नहीं मिल पा रहा. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष ३५ लाख ७५ हज़ार लोग गंदे पानी से फैलने वाली बीमारी से मर जाते हैं. मरने वालों में अधिकांश संख्या १४ साल से कम आयु के बच्चों की होती है जो विकासशील देशों में रहते हैं. इसे रोकने के लिए अमरीका विकास सहायता के तहत पूरी दुनियाँ में हर साल जल आपूर्ति और साफ़ पीने का पानी सुलभ कराने के लिए करोडों डॉलर खर्च कर रहा है.

जल बचाना ज़रूरी :- प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना. प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है. हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है. पानी हमारे जीवन की पहली प्राथमिकता है, इसके बिना तो जीवन संभव ही नहीं क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर पानी जिस तरह से लगातार गंदा हो रहा है और कम हो रहा है, अगर यही क्रम लगातार चलता रहा तो क्या हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा कितनी सारी आपदाओं का सामना करना पड़ेगा और सबकी जिन्दगी खतरे में पड़ जाएगी इस लिए हम सबको अभी से इन सब बातों को ध्यान में रख कर पानी की संभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी चाहिए यह दिवस तो २२ मार्च को मनाया जाता है और वैसे भी पानी की आवश्यकता तो हमें हर पल होती है फिर केवल एक दिन ही क्यों, हमें तो हर समय जीवनदायी पानी की संभाल के लिए उपाय करते रहना चाहिए, यह दिन तो बस हमें हमारी जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए मनाए जाते हैं.

दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में भारी गिरावट दर्ज - रिसर्च :- दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है एक अध्ययन में निकले निष्कर्षों के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की वजह से नदियों का जल स्तर जल स्तर घट रहा है और आगे इसके भयावह परिणाम सामने आएंगे अमेरिकन मीटियरॉलॉजिकल सोसाइटी की जलवायु से जुड़ी पत्रिका ने वर्ष २००४ तक, पिछले पचास वर्षों में दुनिया की ९०० नदियों के जल स्तर का विश्लेषण किया है. जिसमें यह तथ्य निकलकर आया है कि दुनिया की कुछ मुख्य नदियों का जल स्तर पिछले पचास वर्षों में गिर गया है. यह अध्ययन अमेरिका में किया गया है. अध्ययन के अनुसार इसकी प्रमुख वजह जलवायु परिवर्तन है. पूरी दुनिया में सिर्फ़ आर्कटिक क्षेत्र में ही ऐसा बचा है. जहाँ जल स्तर बढ़ा है. और उसकी वजह है. तेज़ी से बर्फ़ का पिघलना भारत में ब्रह्मपुत्र और चीन में यांगज़े नदियों का जल स्तर अभी भी काफ़ी ऊँचा है. मगर चिंता ये है कि वहाँ भी ऊँचा जल स्तर हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों की वजह से है. भारत की गंगा नदी भी गिरते जल स्तर से अछूती नहीं है. उत्तरी चीन की ह्वांग हे नदी या पीली नदी और अमरीका की कोलोरेडो नदी दुनिया की अधिकतर जनसंख्या को पानी पहुँचाने वाली इन नदियों का जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है. अध्ययन में यह भी पता चला है. कि दुनिया के समुद्रों में जो जल नदियों के माध्यम से पहुँच रहा है. उसकी मात्रा भी लगातार कम हो रही है. इसका मुख्य कारण नदियों पर बाँध बनाना तथा खेती के लिए नदियों का मुँह मोड़ना बताया जा रहा है. लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ और शोधकर्ता गिरते जल स्तर के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका मानना है कि बढ़ते तापमान की वजह से वर्षा के क्रम में बदलाव आ रहा है. और जल के भाप बनने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है. मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का भी जल स्तर काफी तेज़ी से गिर रहा है. जिसका मुख्य कारण नर्मदा के दोनों तटों पर घटते वन्य क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है. विशेषज्ञों ने प्राकृतिक जल स्रोतों की ऐसी क़मी पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है. कि दुनिया भर में लोगों को इसकी वजह से काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. उनका कहना है. कि जैसे जैसे भविष्य में ग्लेशियर या हिम पिघलकर ग़ायब होंगे इन नदियों का जल स्तर भी नीचे हो जाएगा.

जल है तो कल है :- जल बचाने के लिए आमजनमानस को स्वयं विचार करना होगा. क्योंकि जल है तो कल है. हमें स्वयं इस बात पर गौर करना होगा कि रोजाना बिना सोचे समझे हम कितना पानी उपयोग में लाते हैं. २२ मार्च “विश्व जल दिवस” है. पानी बचाने के संकल्प का दिन. पानी के महत्व को जानने का दिन और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन. समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें. बारिश की एक-एक बूँद कीमती है. इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है. यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा. पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं. कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता. नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है. पानी का महत्व भारत के लिए कितना है. यह हम इसी बात से जान सकते हैं. कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं. आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है. तो चलो हम सब संकल्प लें कि हर समय अपनी जिम्मेदारी को निभाएंगे इस तरह हम बहुत सारे जीवों का जीवन बचाने में अपना सहयोग दे सकते हैं.

!! नहीं रहा जल तो नहीं बचेगा कल !!

http://www.facebook.com/video/video.php?v=1841675573231

बूंद बूंद जल की बचत करके हम अपने कल को सुरक्षित रख सकते है इसलिए हमें हर हाल में जल बचाना होगा। आज जरूरत है कि हर व्यक्ति जल बचाओ मुहिम को समझे। अगर आज जल नहीं बचाया गया तो तीसरा विश्व युद्ध इसी कारण होगा। ये शब्द जल सरंक्षण कार्यकर्ता व वकील रमेश गोयल ने सिरसा के सामुदयिक रेडियो स्टेशन 90.4 एफएम पर कार्यक्रम हैलो सिरसा में सुरेंद्र कुमार से विषेश बातचीत के दौरान कहे। उन्होने कहा कि वे ‘‘जल बचाओं अभियान‘‘ से पिछले 11 सालों जुड़े हुए है। जल संरक्षण हेतू हर संभव प्रयास किए रहे है, इसके लिए वे अलग अलग जगहों पर विद्यार्थियों को सम्बोधित कर चुके है।
गोयल ने कहा कि पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग पर जल है लेकिन उसमें से 1 प्रतिशत से भी कम जल पीने योग्य है। जल कार्यकर्ता ने कहा जल बचाओं पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है और अनेक बैनर छपवा कर वे सिरसा शहर में बंटवा चुके हैं। उन्होंने कहा कि जल बचाओ अभियान में सिरसा शहर का उनको भरपूर सहयोग मिल रहा है। इस जल बचाओ अभियान की वजह से सिरसा की अनेक स्वयंसेवी संस्थायें उनको सम्मानित भी कर चुकी है। गोयल ने कहा कि किसानों को चाहिये कि वे खेत में ड्रिप सिस्टम से से सिंचाई करे तथा वर्षा जल को सरंक्षित करें।
उन्होने कहा कि लोग आज काफी मात्रा में जल बर्बाद कर रहे है इसका मुख्य कारण अनावश्यक सिंचाई करना , व्यर्थ पानी बहाना आदि है। यही कारण है कि प्रदेश में 119 में से 108 जोन डार्क जोन घोषित किए जा चुके है जो कि खतरनाक स्थिति है। अगर सरकार किसी व्यक्ति को एक लीटर साफ जल उपलब्ध करवाती है तो उस पर 6 से 7 रूपए खर्चा आता है।
गोयल ने कहा पेड़ों का काटा जाना भी जल की कमी का प्रमुख कारण है क्योंकि इसके कारण वर्ष की वार्षिक दर में बहुत गिरावट आई है। देश के 33 प्रतिषत भाग पर पेड़ होने चाहिये लेकिन आज मात्र 20 प्रतिषत भाग पर ही पेड़ है।

जल संरक्षण कार्यकर्ता ने कहा कि पेड़ों के काटे जाने का खामियाजा पूरे विश्व को भुगतना पड़ रहा है। जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है। अगर जल बचाना है तो हमें वाटर रिचार्जिंग सिस्टम अपनाना होगा तथा वर्षा का जल पृथ्वी में उतारना होगा। किसानों को भी चाहिये कि वे पानी बचाने के लिये साठी धान आदि की खेती न करे। क्योंकि एक किलो साठी धान के लिये हमें 45 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है। इसी के साथ ही जोहड़ों में जल को सुरक्षित रखना होगा। गोयल ने कहा कि जल प्रदूषण का मुख्य कार्य उद्योग धंधें भी है क्योंकि वे वाटर ट्रीटमेंट नहीं करते है तथा नदियों में खराब जल बहा देते। जिससे अनेक बीमारियां भी होने का खतरा रहता है। देश की महत्वपूर्ण नदियां गंगा व यमुना में लैंड की मात्रा बहुत ज्यादा है जो कि जीवन के लिये खतरनाक है। इस दौरान उन्होने जल संरक्षण से जुड़े श्रोताओं के सवालों का भी जवाब दिया और कहा कि हर आदमी को जल संरक्षण में अपना योगदान करना चाहिए और जहां तक संभव हो सके जल बचाएं।

बुधवार, 21 मार्च 2012

!! चीन क्या था, क्या बन गया और भारत क्या था और क्या बन रहा है ?

* बरसों पहेले चीन बहोत ही कंगाल था! भारतमे लोग जब मिलते है तो पूछते है,कैसे हो?कैसी तबियत है?लेकिन चीन में जब दो  लोग मिलते थे तब पूछते थे की चावल खाए  क्या?चावल खाने को भी नसीब नथी था|अगर चावल खाने मिल गए तो दिन सुधर गया!
     
                * वाया होंगकोंग अंग्रेज लोगोने चीन में अफीम का जबरदस्त व्यापार बढाया था|सारा चीन अफीम खाके  मदमस्त पड़ा रहता था|तब कहावत ही हो गई थी अफीमी चीन!एकदम आलसी प्रजा हो गई थी|कोई जहर बेचे कोई लड्डू क्या खरीदना है वो हमारी पसंद है~!
     
              * दो चार साल के वारिस को राजा घोषित किया गया था|सोने के कटोरे में वो मलत्याग करता  था और राजदरबारी वो मलकी कटोरी अपनी नासिका के पास रख कर पवित्र बदबू का आनंद उठाते थे १०,००० साल की पवित्र राजव्यवस्था,भगवान था राजा,बालराजा युवान हुआ तो रिवाज के मुताबिक एक साथ दो कन्याओसे विवाहित किया गया|फिर क्रांति हु,और राजा अपनी दो पत्नियो समेत भाग गया चीनके बाहर,एक पत्नी ने डिवोर्स ले लिया और दूसरी शराब में डूब गई|विश्वयुध्ध  हुआ,राजा ने जापान की सहायता से चीन का कब्ज़ा लेनेका ट्राय किया,पर जापान खुद ही हार गया विश्वयुध्ध  में|राजा पकड़ा गया और गया जेल में,माओ आये और सूत्र दिया “रिलिजन इज पोइज़न”,देखो आज चीन कहा है ?अमरीका से भी नहीं डरता...
        
                   राजकारण में किसी भी धर्म की दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए,कायदे कानून और राज्य व्यवस्था में किसी भी धर्म दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए,१७वि सदिमे जब हम अंग्रेजो के गुलाम बने उसी १७वि सदी में अमेरिका अन्ग्रेजोकी गुलामी से मुक्त हो गया,हमने सिर्फ महात्मा गांधीजी को ही राष्टपिता बनाया और दुसरे जिन्होंने बलिदान दिए थे सब गए भाडमे,अमरीका ने सिर्फ एक नहीं बहोत सारे लोगो को फाउंडर फाधर माना है,ज्योर्ज वोशिंगटन,जोंह एडम्स,बेंजामिन फ्रेंकलिन सब राष्ट्रपिता  है,सब ने तय किया था का अमरीका का भला चाहते है तो धर्म या चर्च की दखल नहीं चाहिए शासन में.............
     
                एक समय का कंगाल चीन आज कहा है ?और यहाँ भारत में बात बातमे लोगों की धार्मिक भावनाओको  ठेस पहुचती है,ना तो तो प्रशाशन रस्ते के बिच खड़ा मंदिर या दरगाह हटा सकता है,नातो कोई गुन्हेगार को सजा दिला सकते हो,न तो यहाँ गेर क़ानूनी फतवा जाहिर करनेवालों को सजा दे सकते हो,न तो कोई बच्चे का बलि चडाने वाले गुरु को पकड़ सकते हो,लोग रास्ते पर उतर आते है,पुलिस तक को मार पड़ती है,अभी गुजरात के पाट्नगर गांधीनगर में पुलिस को धार्मिक संगठन द्वारा  मार पड़ी थी तब जनता ने पुलिस की रक्षा  की थी,कैसे दिन आ गए है ?जनता को पुलिस की रखवाली करनी पड़ती है,और पुलिस को मारने वाले यही बहादुर लोग जब कोई आंतकवादी खून की होली खेलता है तब दुम दबाके भागते है,
      
                    हम दूसरो पे  दोष देने में माहिर है,अमरीका अच्छा नहीं,पाकिस्तान को मदद देता है,चीन ख़राब है,थेंक्स बोलो अमरीका को हेडली और राणा को ऍफ़.बी.आई ने पकड़ लिया,वरन २६/११ की बरसी पर कई निर्दोष लोगोने जान गंवाई होती,जर्मनीने राजरमत खेल कर म्युनिक ओलोम्पिक में इज़रायल के खिलाड़ियोको मारने वाले सभी अरब त्रासवादी ओको  छोड़ दिया था,सब अपने अपने देश में हीरो बन चुके थे,कोई फरियाद आंतरराष्ट्रिय स्तर पर किये बिना इजराएल की जासूसी संस्था ने सभी त्रासवादी ओको एक एक करके चुन चुन के मार दिया  था, कुछ तो लेटिन अमेरिका के छोटे छोटे देश में छिप गए थे,कुछ अफ्रीकन देश में छिप गए थे,किसीको भी बक्शा नहीं,ये खुमारी,जूनून चाहिए,ये इजराएल का प्रदेश क्षेत्रफल में किसी राज्य के एक या दो जिल्ले से ज्यादा नहीं है|
        
                   * हमें अपने दोष कभी दिखाई नहीं देते,हमारी कमज़ोरिया हम छिपाते है,अभी युध्ध होता है,तो चीन को हम हरा नहीं सकते,पाकिस्तान के पास हमसे ज्यादा परमाणु बोम्ब है,जो बलवान होता है इसीके पास सभी जाते है,कमजोर के पास कौन आएगा ? हमें बलवान होते किसने रोक रख्खा है ? चीन समज गया खुद ही बलवान होने लगा तो आज अमेरिका भी उसके पास जायेगा,चीन कमजोर होता तो कोई नहीं बोलता की तिबेट चीन का भाग है,”समर्थ को नहीं दोष गुंसाई”,आज हम भी समर्थ होते तो चीन या अमरीका भी बोलते के भी कश्मीर भारत का ही अंग है,चूँकि हम कमजोर है तो कोई नहीं बोलता|
     
                    मुसलमान  आए,अंग्रेज आए हमें किसीने रोक रख्खा था?भाई हम कमजोर थे तो हार गए|सर्वाइवल के युध्ध  में जो बलवान होंगा वही जीतेगा,वो नियम भारत के लिए कुछ अलग तो नहीं होता,कुदरत की नजर में सब  एक से है|लोग बोलते है एकता नहीं थी,भाई हम तो पूरी दुनिया सबसे ज्यादा वाइज़ पीपल है ,हमें एकता रखने को किसी ने ना बोला था? सारी दुनिया में अंगेरज फ़ैल गए थे,तो सब देशो में मेनेज कर नहीं पा रहे थे,अपने ही भार से,खुद  ही के वजन से अंग्रेज साम्राज्य टूटने लगा था की हमारी अहिंसा और सत्याग्रह की नीति काम कर गयी ....

मंगलवार, 20 मार्च 2012

!! खनन माफिया सभी जगह सक्रिय है !!

केन्द्रीय खनन मंत्रालय की वेबसाईट के मुताबिक देश के 20 राज्यों में करीब 30 अलग अलग खनिजों का खनन किया जाता है| जिनके नियंत्रण के लिए खान व खनिज (विनिमय व विकास) अधिनियम 1957 बनाया गया था| केंद्र सरकार ने वर्ष 1994 में इस खान व खनिज (विनिमय व विकास) अधिनियम 1957 में संशोधन किये थे| इस अधिनियम संशोधन के मुताबिक निजी व सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों को खनन पट्टे व खदानों में खनन की हिस्सेदारी व उसके विनिमय का अधिकार मिल सकता है, लेकिन कंपनियों को चुनने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया| इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य सीमित दायरे वाले खनन व्यवसाय को देश के विकास के लिए एक नए आयाम तक ले जाना था |

देश के 20 राज्य जिनमें खनन में होता है


भारत के 28 राज्यों में से इन 20 राज्यों में खनिजों का खनन होता है, जिसके लिए यहाँ की सरकारें खनन पट्टे आवंटित करतीं है|


आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल| इन राज्यों में मुख्य रूप से इस्पात, कोयला, पत्थर और रेत का खनन निजी कंपनियों के माध्यम से किया जाता है|


क्या है अवैध खनन-


राज्य सरकारों के माध्यम से आवंटित होने वाले खनन पट्टों में निजी कम्पनियों को कुछ नियम और निर्देश दिए जाते है जिनके तहत ही निजी कंपनियों को खनन का कार्य करवाना होता है| पिछले 20 सालों में इन राज्यों में खनन के पट्टे पाने वाली अधिकांश कंपनियों ने राज्य सरकार में अपनी पहुँच और पैसे की दम पर मनमाने तरीके से लाखों करोड़ का खनन किया है| जिसकी सबसे बड़ी वजह इन निजी कंपनियों में नेताओं और मंत्रियों के रिश्तेदारों और सम्बन्धियों की हिस्सेदारी ही रही है, जिसके लिए इन्होने खनन माफियाओं पर नकेल कसने के बजाय उनका साथ दिया है| जिसके पीछे व्यक्तिगत आर्थिक हित ही छुपा होता है|


अवैध खनन के तौर पर होने वाले खनिज उत्पादन को ये माफिया खुले बाज़ार में बेचकर अच्छा पैसा कमाते हैं और सरकारी दस्तावेजों में नियमों के मुताबिक खाना पूर्ति कर दी जाती है|


अवैध खनन के मामलों से विवादों में फंसे कई बड़े राजनेता नेता -


कर्नाटक का बेल्लारी जिला अवैध खनन की वजह से ही लम्बे समय से राज्य व देश की राजनीति का मुद्दा रहा है| बेल्लारी की इस्पात खदाने ही देश के इस्पात उद्योग को 25 फीसदी इस्पात खनिज की आपूर्ति करवातीं हैं| बेल्लारी में अवैध खनन के मध्यम से राजनीति में प्रवेश करने वाले रेड्डी भाइयों ( जनार्दन रेड्डी, करुनाकरा रेड्डी व सोमशेखर रेड्डी ) को कर्नाटक को खनन माफिया के तौर पर जाना जाता है| सामान्य जीवन यापन करने वाले रेड्डी बंधुओं ने मात्र एक दशक में ही हजारों करोड़ की संपत्ति और राजनैतिक प्रतिष्ठा अर्जित कर पुरे देश को चौंका दिया था, आज सीबीआई जाँच का सामना कर रहे रेड्डी भाइयों को कर्नाटक की राजनीती में बाहुबली के तौर पर भी जाना जाता है|


खनन खनिजों से धनी कर्नाटक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को भी अवैध खनन के आरोपों में ही अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी थी| मौजूदा केन्द्रीय विदेश मंत्री एसएम कृष्ण पर भी 1999 से 2004 तक कर्नाटक का मुख्यमंत्री होते हुए हजारों करोड़ के अवैध खनन में संलिप्त पाया गया था| जिसके सिलसिले में बैंगलोर हाईकोर्ट ने जनवरी 2012 में उन्हें नोटिस भी दिया था, हालांकि बाद में केंद्र सरकार के दवाब के बाद मामले को दावा दिया गया|


गोवा राज्य में सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस सरकार पर 6100 करोड़ के अवैध खनन के आरोप लगे थे| जिसकी जाँच के लिए गठित हुए शाह कमीशन ने इन आरोपों को सही पाया था, लेकिन केंद्र सरकार में सत्ता सुख भोग रही कांग्रेस ने इस मामले को भी दबाने में कोई कोर कसार नहीं छोड़ी|


आंध्र प्रदेश के दिवंगत व पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी का पुत्र जगमोहन रेड्डी व कुछ सम्बन्धियों को सीबीआई ने सत्ता की मदद से अवैध संपत्ति जोड़ने के मामले में गिरफ्तार किया है| उन पर लगे आरोपों में राज्य के खनन व्यवसाय में भी अवैध तरीके से हिस्सेदारी रखने के भी आरोप लगे हैं|


झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर भी सीएम होते हुए अवैध तरीके से अपने नाम खनन पट्टे लेने के आरोप लगे थे| जिसके बाद कोड़ा को 4000 करोड़ की नगदी की लोंड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था| मालूम हो कि झारखण्ड एक खनन खनिज धनी राज्य है|


गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी के दो- तीन मंत्रियों के खिलाफ भी अवैध खनन के मामले दर्ज हुए हैं| देश के अग्रणी खनिज उत्पादक राज्यों में गिने जाने वाले गुजरात में भी खनन माफियाओं ने यहाँ के खनन व्यवसाय पर नज़रें जमाना शुरू कर दीं हैं|


उत्तर प्रदेश एक बेहद सीमित खनन खनिजों वाला राज्य जहाँ केवल पत्थर और रेत का खनन किया जाता है, लेकिन यहां के खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने भी अपने करीबी सम्बन्धियों और प्रदेश के बड़े शराब व्यवसाई पोंटी चड्ढा को अवैध तरीकों से कई खनन पट्टे देकर लाभ पहुँचाया था|


मध्य प्रदेश देश के खनन प्रधान राज्यों में से एक है| जहाँ पत्थर से लेकर हीरा और कई धातु खनिजों का खनन बड़े पैमाने पर होता है, लेकिन यहां के खनन माफियाओं ने भी अब अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है|


इसी तरह देश के लगभग सभी खनन खनिज धनी राज्यों में खनन माफिया अपनी जड़ें जमा चुके हैं| कहीं तो इनके कारनामे खुल चुके है तो कहीं राज्य सरकारों ने उन्हें दबा दिया है| पर्यावरण संरक्षण निर्देशों और कानूनों को ताक पर रख ये माफिया प्रति वर्ष लाखों करोड़ के अवैध खनन को अंजाम देते हैं जिससे होने वाली कमाई इनके काले धन के खातों में जमा होती है| प्रशासन और शासन की शक्ति को कुछ न समझने वाले माफिया नेताओं की मदद से करोड़पति और अरबपति होते जा रहे हैं और इन माफियाओं पर नकेल कसने के बजाय चुपचाप बैठ कर तमाशा देख रही है|


मध्य प्रदेश में शहीद हुए आईपीएस नरेन्द्र देव सिंह की मौत ने मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि केंद्र व अन्य राज्यों की सरकारों का ध्यान भी अपनी और खिंचा है| टीम पर्दाफाश उम्मीद करती है कि केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर खनन माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें सजा दिलाएंगी |

सोमवार, 19 मार्च 2012

!! जाति ब्यवस्था सभी धर्मो में है !!

ऐसा माना जाता है कि जाति व्यवस्था केबल हिन्दुओँ मेँ पायी जाती है ।जबकि भेदभाब,छुआछुत .जाति ,संप्रदाय हर प्रमुख धर्मोँ मेँ मिलता है ।

#क्रिश्चन मेँ बहुत सारे छोटे बडे चर्च होते हैँ जहाँ छोटे चर्च मेँ जाने बालौँ को बडे चर्च मेँ जाने कि मनाहि होती है और सबकी पुजा पद्धति मान्यताओँ मेँ अंतर पाया जाता है ।
http://en.m.wikipedia.org/wiki/List_of_Christian_denominations

... #मुस्लिमोँ मेँ जाति व्यबस्था जो प्रमुखतः अशरफ ,अजलफ ,अरजल जातिओँ मेँ बंटा है जिसकी अनेक उपजातियां हैँ।
http://m.facebook.com/note.php?note_id=347461641965768&refid=22&_rdr#356847261027206
http://en.m.wikipedia.org/w/index.php?title=List_of_Muslim_Other_Backward_Classes_communities&mobileaction=view_normal_site

# सिखोँ मेँ जाति व्यबस्था
हिन्दुओँ कि तरह 4 वर्णोँ मेँ बंटा हुआ है ।
http://www.sikhcastes.faithweb.com/whats_new.html

#बौद्धोँ कि जाति व्यबस्था जो प्रमुखतः 3 प्रमुख संप्रदायोँ महायान ,हीनयान और वज्रयान मेँ बंटा हुआ है जिसका सैँकडोँ स्कुल है जो अलग अलग पुजा पद्धतिओँ और मान्याताओँ को मानता है ।
http://m.facebook.com/note.php?note_id=333913793320553&refid=21

!!जिम्मेदार और जवाबदेह होने का गुण ब्यक्ति को बिशेष बनाता है !!

ज्यादा तर देखने को मिलता है की हम अपने कर्तब्य के प्रति लापरवाह हो जाते है और अपने कार्यो को इमानदारी पूर्वक  नहीं करते है परिणाम स्वरुप हम प्रगति नहीं कर पाते और अवनति की और जाने लगते है तो उस समय पर हम अपनी किस्मत को कोसते है और पत्नी ,बच्चो के ऊपर अपना गुस्सा निकलते है माँ -बाप को उअलाहना देते है आपने हमें इस लायक नहीं बनाया ,या फिर कार्यस्थल में अपने सहकर्मियों को दोषी ठहराते की मेरा समर्थन नहीं किया आदि आदि कई बहाने ढूढ़ते है और अपनी नाकामी को छिपाने का अनर्थक प्रयास करते है यदि हम अपने  जीवन मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता हमें सुख, संतोष और शांति की राह पर ले जाती है। प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ जिम्मेदारी, जवाबदेही का भाव जुड़ता है।

मनुष्य को जिम्मेदार और जवाबदेह होना चाहिए। जवाबदेही के बिना जिम्मेदारी लेने से मनुष्य का अस्तित्व कमजोर हो जाता है। कमजोरियों से निराशा पैदा होती है। निराशा को खत्म करने के लिए हमें अपनी शक्तियों को जागृत करना होगा। प्रतिबद्धता से पैदा होने वाली ऊर्जा जीवन की समस्याओं को सुलझाने का फामरूला है। प्रतिबद्धता का अर्थ अपने- आपको किसी एक लक्ष्य और बिंदु पर केंद्रित करना है। एक बिंदु पर केंद्रित होने से कौशल और दक्षता का संचार होता है।

प्रतिबद्धता के संदर्भ में हम प्रकृति और प्राणियों से प्रेरणा ले सकते हैं। शिकार पर अचूक निशाना साधने के लिए जाना जाने वाला पक्षी बाज अपने बच्चों को जन्म लेने के साथ चुनौतियों से जूझना सिखाता है। मादा बाज अंडे देने से पहले किसी ऊंची चोटी पर घोंसला बनाती है। घोंसले में तिनकों के साथ कांटे भी गुंथे रहते हैं।

अंडों से बाहर निकलते ही बच्चों के कोमल शरीर में कांटे चुभते हैं। मादा बच्चों को घोंसले से बाहर फेंक देती है। बच्चे जैसे ही जमीन पर गिरने लगते हैं, नर उन्हे पकड़कर घोंसले में रख देता है। इस बीच मादा घोंसले से घास की परत हटा देती है।

जाहिर है,बच्चों के शरीर में कांटे और अधिक तीव्रता से चुभेंगे। इसके बाद नर बाज बच्चों को घोंसले से नीचे फेंकता है और मादा उन्हे पकड़कर लाती है। यह क्रिया उस समय तक चलती है जब तक बच्चे नीचे गिरने के खतरे को भांपकर उड़ना शुरू नहीं करते हैं। धीरे-धीरे वे अपने पंखों की अहमियत समझकर उड़ने की दक्षता हासिल कर लेते हैं। बाज कभी मुर्दा शिकार नहीं खाता है। वह तूफान के बीच तेज हवा को काटता हुआ उड़ता है। वह मुश्किलों से सीधा टकराता है।

ईश्वर और प्रकृति हमसे आशा करते हैं कि हम अपनी ताकत, क्षमता को पहचानें औ्रर जीवन के अनंत आकाश में उड़ने का कौशल विकसित करें। बाज सरीखी प्रतिबद्धता और दक्षता जीवन के हर क्षेत्र में आजमाई जा सकती है। परिवार, कारोबार, नौकरी, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में प्रतिबद्धता के जरिए सफलता, पूर्णता के नए क्षितिज पर पहुंचना संभव है।

!! बौध्द धर्म क्या कायर बनाता है ?

बुद्धिज्म के बारे में हमें ज्यादा जानकारी नहीं है. अभी बस केवल लगभग इतना ही पता है कि-सिद्दार्थ का क्षत्रीय राजा के घर जन्म हुआ. उन्होंने पत्नी, संतान, राजसी सुख आदि का आनंद उठाया. फिर दूसरों की पीड़ा से दुखी होकर सारे सुखों का त्याग कर दिया. ब्रक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या की, जिससे ज्ञान प्राप्त हों गया. उनसे प्रेरित हुए लोगों ने नया धर्म चालू कर दिया. उसके कुछ सालों के बाद मौर्य सम्राट अशोक द्वारा युद्ध में खूनखराबे को देख कर द्रवित होने के बाद बुद्धिज्म को अपना लिया गया.
उसके बाद से लेकर आज तक, लगभग दो हजार साल तक, जब इस्लामी हम्लाबरों ने भारत पर आक्रमण किया, उसके बिरोध में बौद्धों के खड़े होने का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है. ऐसे ही अंग्रेजों के साम्राज्य के बिरोध में भी, बौद्धों की कहीं कोई भूमिका कहीं दिखाई नहीं देती. कोई भी कौम इतनी कायर कैसे हों सकती है कि - जब देश में इत...ना संघर्ष चल रहा हों तो वो केवल तमाशा ही देखती रहे.
आज जितना अग्रेसिव होकर बौद्ध, बहुसंख्यक हिंदुओं से लड़ते हैं उसको देखकर तो लगता है कि - अल्पसंख्यक मुगलों और अंग्रेजों को तो ये अकेले ही भागने पर मजबूर कर देते. फेसबुक पर बौद्धों की बातों से लगता है कि- भारत के इतिहास के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी बौद्धों के पास ही है. कृपया मुगलों और अंग्रेजों के साथ बौद्धों के संघर्ष के इतिहास की जानकारी देने की कृपा करें. जिससे हम जैसे अज्ञानी भी महान बौद्धों की महानता से परिचित हों सकें. धन्यवाद ........
आजादी के उस संघर्ष में राजाओं (प्रथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप, रानी दुर्गावती, शिवाजी, रणजीत सिंह, आदि ) , संतों (गुरु हरगोविन्द सिंह, गुरु गोविन्द सिंह, आदि ) , व्यापारियों ( भामा शाह, जमाना लाल बजाज, रविन्द्र नाथ टैगोर आदि ), वनवासी ( कोल, भील, आदि), ब्राह्मण ( मंगल पांडे, चन्द्र शेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल, आदि ), दलित (विरसा मुंडा, झलकारी बाई आदि ), मुसलमान (असफाक उल्ला खां, मौलाना आजाद, आदि ), किसान (भगत सिंह,आदि ) , खानाबदोस बंजारे, नागा साधूओं से लेकर चोर- डाकू तक लगभग हर वर्ग से लोग शामिल हुए.
मगर ऐसा कोई प्रसंग सुनने में नहीं आता कि - कहीं किसी संघर्ष में बौद्ध भी शामिल रहे हों लेकिन जब देश आजाद हों गया तो आप बौद्ध लोग उनको ही गालियाँ देने लगे. इसके अलाबा चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान, वर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, माल्दीव् आदि में भी लतियाए जाने पर उनका मुकाबला करने के बजाये शरण देने वाले हिंदुओं को ही कोसने में लगे रहते हैं.........BY नवीन वर्मा जी द्वारा लिखित ....

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

!!सकारात्मक सोच रखे और दुनिया को मुट्ठी में करे !!

पुरानी कहावत है कि मन के हारे हार है...मन के जीते जीत...यानी सब कुछ जब आपके भीतर छिपा है तो क्यों न जिंदगी के प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखें...
पॉजिटिव सोच रखना आपको जीवन के हर मोड़ पर अच्छा ही देता है साथ ही यह शब्द हर अक्षर के जरिए आपसे बहुत कुछ कहता भी है। आइए जानें क्या संदेश देता है यह - पी-ओ-एस-आई-टी-आई-वी-ई ....
पी - पेशेंस यानी धैर्य
ओ - ऑप्टीमिस्टीक यानी आशावादी
एस - सैटीसफैक्शन यानी संतुष्टि
आई - इंसपीरेशन यानी प्रेरणा
टी - टारगेट यानी लक्ष्य
आई - आइडीयल यानी आदर्श
वी - विक्टर यानी विजेता
ई - इजी यानी सहजता
पी - पेशेंस यानी धैर्य। धैर्य सफलता की सबसे बडी कुंजी है। अगर आपमें धैर्य की भावना है तो स्वाभाविक है कि आपके मन में कभी भी नकारात्मक विचार नहीं आ सकते। मुझे यह अवसर नहीं मिला, काश! मेरा बच्चा वह बना होता जो मैंने चाहा... पति बहुत धौंस जमाता है,अब क्या होगा, जैसी बातों के लिए रोना रोते रहने से कुछ हासिल नहीं होता। अगर आप ऎसे मोड़ पर धैर्य बरतेंगी और परिस्थिति से निबटने का रास्ता खोजेंगी तभी उस चिंता को दूर कर सकेंगी।
ओ- ऑप्टीमिस्टीक यानी आशावादी बनें। आशाएं ही सफलता की सीढ़ी तक पहुंचाती हैं, निराशा कुंठाओं से भर देती है। मैं क्यों नहीं कर सकती, इस बार अवसर मुझे ही मिलेगा, आप सोच ऎसी ही रखें। यह न सोचें कि मेरी किस्मत ही अच्छी नहीं, सारी दुनिया को मुझसे परेशानी है। आशावादी बनकर तो देखें, आपकी सारी समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाएंगी।
एस- सैटीसफैक्शन यानी सुख संतोष। जिस घड़ी आप अपने भीतर संतोष का भाव पैदा कर लेंगी, उसी पल से आप सकारात्मक सोचने लगेंगी और अनावश्यक तनाव बचेंगी। जो मिला है, जितना भी मिला है उसमें संतोष बरतें। कहते हैं कि संतोषम् परमसुखम्। संतोष से बढ़कर कुछ भी नहीं। अवसाद की स्थिति से बचने लिए संतोष एकमात्र इलाज है।
आई -इंसपीरेशन यानी प्रेरणा। हर कोई अपने जीवन में किसी न से प्रेरित होता है। ऎसे लोगों से प्रेरणा लीजिए जो जीवन कोç जंदादिली और खुशहाली से जीना जानते हैं। हर व्यक्ति के भीतर कुछ-न-कुछ अच्छाइयां जरूर होती हैं। कोई व्यक्ति व्यवस्थित होता तो कोई धैर्यवान, कोई पॉजिटिव सोच रखता है, तो कोई जागरूक रहता है। आप उन गुणों/अच्छाइयों से प्रेरित होकर अपने भीतर भी सकारात्मक भाव पैदा करें।
टी - टारगेट यानी लक्ष्य। अगर आपका लक्ष्य निर्धारित हो तो आपको निराशा या विफलता का मुंह देखना नहीं पडता। आपको क्या काम करना है, कैसा घर बनाना है, कहां रहना है, यह निर्धारित करना आवश्यक है। साथ ही उसका विकल्प भी तैयार रखना जरूरी होता है। लक्ष्य साफ हो तो उसे पाना आसान हो जाता है। यह नहीं, कि मैं इंजीनियर नहीं बनीं तो डॉक्टर बनूंगी वरना म्यूजिक की लाइन चुन लूंगी और वह भी न बनी तो घरेलू जीवन जी लूंगी।
आई - आइडीयल यानी आदर्श बनें। अपने व्यक्तित्व को ऎसा बनाएं कि दूसरे आपको अपना आदर्श मानें। जब आप कठिन परिस्थितियों में भी अपना दिमागी संतुलन बनाए रखेंगी, हर हाल में खुश रहेंगी, दूसरों के सुख-दुख में उनकी मदद करने को हमेशा तत्पर रहेंगी तो आप किसी आदर्श व्यक्ति से कम नहीं होंगी। सोचिए आखिर आप अपने पिता या माता या गुरू को अपना आदर्श क्यों मानती हैं। उनमें जरूर ऎसे गुण होंगे जो हर किसी को प्रभावित करते होंगे, तो क्यों न आप भी दूसरों की आदर्श बनें।
वी - विक्टर यानी विजेता। विजेता बनना अपना लक्ष्य बनाएं, लेकिन अगर सफलता हासिल न हो तो निराश न हों, दोबारा दुगने जोश के साथ उसके लिए जुट जाएं। जीत और हार जीवन में लगी ही रहती है। हार मिलने पर निराश होकर न बैठ जाएं, खुद को समझाएं, बार-बार कहें कि हम होंगे कामयाब एक दिन।
ई - इजी यानी सहज/ आसान। जो लोग सहज जीवन जीते हैं उन्हें कभी भी नकारात्मक विचार नहीं घेरते। बनावटी जीवन जीने से बेहतर होगा कि वास्तविकता में जिएं। इससे कभी भी आपको दिक्कत का सामना नहीं करना पडेगा। घर-परिवार से लेकर प्रोफेशनल जीवन तक सहजता जरूरी है। असहजता न सिर्फ आपकी सफलता के मार्ग में बाधक होती है, बल्कि आपके इस व्यवहार से दूसरे से भी परेशान होकर किनारा कर लेते हैं...तो करलो दुनिया मुट्ठी में।

बुधवार, 14 मार्च 2012

!! भारत के आदिवासी विकाश की राह तकते हुए ...!!

भारत सरकार हर साल अपने बजट में प्रावधान करती है आदिवासी विकास की पर ये बजट आदिवासी क्षेत्र के विकास और शिक्षण-पोषण की योजनाएँ भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा साधन हैं. योजनाएँ  लाने (मलाई खाने) में एनजीओ और सरकारी विभाग रुचि रखते हैं लेकिन उन्हें ईमानदारी से लागू करने में उनकी कोई रुचि नहीं है. दुराग्रहपूर्ण दृष्टिकोण रखने वाले भारतीय मीडिया ने सभी आदिवासियों को नक्सली छवि में रंग दिया है जिसका टॉप नेतृत्व बेकसूर बना रहता है लेकिन साधारण कार्यकर्ता को पुलिस की बंदूकों के सामने खड़ा किया जाता है. इस व्यवस्था में इनका क्या भला हो सकता है! ज़मीनी सचाई यह है कि इन आदिवासियों को देश के मानव संसाधनों में न गिनने की प्रवृत्ति हमारे यहाँ है ! 

भारत का तथाकथित पढ़ा-लिखा (एक) वर्ग इनके बारे में बहुत कुछ कहता है लेकिन उसमें वास्तविकता के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है. पिछले दिनों एक साइट पर भारत की आदिवासी जातियों पर कुछ आलेख देखने को मिले जिनमें सुंदर शब्दों में बहुत कुछ कहा गया था. लेकिन इनकी परंपराएँ (घोटुल) दिखाने के नाम पर आदिवासी महिलाओं के ऐसे ब्लैक एंड व्हाइट चित्रों का प्रयोग किया गया जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं थे. लेखक की नीयत साफ़ झलक रही थी. भारत का ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति कपड़े पहनता है बशर्ते उसके पास हो. ज़ाहिर है विद्वान लेखक को भारत की छवि नहीं चाहिए थी बल्कि आलेख के लिए 'मसाला' चाहिए था.
कुछ साइट में लेखक ने इन आदिवासियों के पुराने, ब्लैक एंड व्हाइट, चित्रों का प्रयोग किया है. स्पष्टतः ये चित्र लेखक के नहीं थे. क्या भारत के ये मूलनिवासी लोग अपनी ग़रीबी की ऐसी फोटो खींचने की अनुमति आज देते हैं? नहीं. और क्यों दें? सामाजिक कार्यकर्ता जानते हैं कि 'बाहर' से यदि कोई आ जाए तो ये लोग पहले अपनी झोंपड़ियों में जाते हैं और जो भी बेहतर कपड़ा हो उसे पहन कर सामने आते हैं. काश लेखक ने इनकी समझदारी का सम्मान किया होता. इस बारे में मैंने उस साइट पर एक टिप्पणी लिखी थी जिसे हटा दिया गया. आपसे शेयर कर रहा हूँ कि जो मैंने लिखा था वह इसी पैरा में है. बाद में पता चला कि लेखक, जो स्वयं को आदिवासी मामलों का विशेषज्ञ बताता है, वास्तव में वहाँ लकड़ी का ठेकेदार है. यानि उन्हीं लोगों में से एक जिन्होंने आदिवासी क्षेत्रों को उजाड़ने के लिए कई हथकंडे अपनाए जिनमें ऐसे आलेख छपवाना भी शामिल था जो यहाँ के निवासियों को मानवता की सीमा से बाहर की चीज़ साबित कर सकें. क्या यही विकाश है भारत सरकार का ..?

!!पानीपत के युद्धों का पूरा सच - राजेश कश्यप !!

नोट ---यह ब्लॉग सिर्फ कोपी पेस्ट है ,,मकसद है इतिहास की सच्चाई से अवगत करना .......
 
हरियाणा प्रदेश पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय स्थान रखता है। हरियाणा की माटी का कण-कण शौर्य, स्वाभिमान और संघर्ष की कहानी बयां करता है। महाभारतकालीन ‘धर्म-यृद्ध’ भी हरियाणा प्रदेश की पावन भूमि पर कुरूक्षेत्र के मैदान में लड़ा गया था और यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘गीता’ का उपदेश देकर पूरे विश्व को एक नई दिशा दी थी। उसी प्रकार हरियाणा का पानीपत जिला भी पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर अपना विशिष्ट स्थान रखता है। महाभारत काल में युद्ध को टालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शांतिदूत के रूप में पाण्डव पुत्र युद्धिष्ठर के लिए जिन पाँच गाँवों को देने की माँग की थी, उनमें से एक पानीपत था। ऐतिहासिक नजरिए से देखा जाए तो पानीपत के मैदान पर ऐसी तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ीं गईं, जिन्होंने पूरे देश की तकदीर और तस्वीर बदलकर रख दी थी। पानीपत की तीसरी और अंतिम ऐतिहासिक लड़ाई 250 वर्ष पूर्व 14 जनवरी, 1761 को मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगानी सेनानायक अहमदशाह अब्दाली के बीच हुई थी। हालांकि इस लड़ाई में मराठों की बुरी तरह से हार हुई थी, इसके बावजूद पूरा देश मराठों के शौर्य, स्वाभिमान और संघर्ष की गौरवमयी ऐतिहासिक दास्तां को स्मरण एवं नमन करते हुए गर्व महसूस कर रहा है।


इतिहास के पटल पर पानीपत की तीनों लड़ाईयों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। हर लड़ाई के अंत में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। पानीपत की पहली लड़ाई के उपरांत लोदी वंश के अंत और मुगल साम्राज्य की नींव की कहानी लिखी गई। दूसरी लड़ाई के उपरांत सूरवंश के अंत और मुगल साम्राज्य के सशक्तिकरण का इतिहास लिखा गया। तीसरी लड़ाई ने मराठों को हार और अहमदशाह अब्दाली को इतिहास में सुनहरी अक्षरों में अपना नाम लिखवाने का उपहार देने के साथ ही ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रभुत्व की स्थापना भी की। पानीपत की हर लड़ाई हमें जहां भारतीय वीरों के शौर्य, स्वाभिमान एवं संघर्ष से परिचित कराती है, वहीं आपसी फूट, स्वार्थता और अदूरदर्शिता जैसी भारी भूलों के प्रति भी निरन्तर सचेत करती है।


पानीपत की प्रथम लड़ाई

पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी और मुगल शासक बाबर के बीच हुई। इब्राहीम लोदी अपने पिता सिकन्दर लोदी की नवम्बर, 1517 में मृत्यु के उपरांत दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुआ। इस दौरान देश अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों ने अफगानी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए लालायित कर दिया। उसने 5 जनवरी, 1526 को अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए। जब इसकी सूचना सुल्तान इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए हिसार के शेखदार हमीद खाँ को सेना सहित मैदान में भेजा। बाबर ने हमीद खाँ का मुकाबला करने के लिए अपने पुत्र हुमायुं को भेज दिया। हुमायुं ने अपनी सूझबूझ और ताकत के बलपर 25 फरवरी, 1526  को अंबाला में हमीद खाँ को पराजित कर दिया।
इस जीत से उत्साहित होकर बाबर ने अपना सैन्य पड़ाव अंबाला के निकट शाहाबाद मारकंडा में डाल दिया और जासूसांे के जरिए पता लगा लिया कि सुल्तान की तरफ से दौलत खाँ लोदी सेना सहित उनकीं तरफ आ रहा है। बाबर ने दौलत खाँ लोदी का मुकाबला करने के लिए सेना की एक टुकड़ी के साथ मेहंदी ख्वाजा को भेजा। इसमें मेहंदी ख्वाजा की जीत हुई। इसके बाद बाबर ने सेना सहित सीधे दिल्ली का रूख कर लिया। सूचना पाकर इब्राहिम लोदी भी भारी सेना के साथ बाबर की टक्कर लेने के लिए चल पड़ा। दोनों योद्धा अपने भारी सैन्य बल के साथ पानीपत के मैदान पर 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आ डटे।
दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी




मुगल शासक बाबर


सैन्य बल के मामले में सुल्तान इब्राहिम लोदी का पलड़ा भारी था। ‘बाबरनामा’ के अनुसार बाबर की सेना में कुल 12,000 सैनिक शामिल थे। लेकिन, इतिहासकार मेजर डेविड के अनुसार यह संख्या 10,000 और कर्नल हेग के मुताबिक 25,000 थी। दूसरी तरफ, इब्राहिम की सेना में ‘बाबरनामा’ के अनुसार एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी शामिल थे। जबकि, जादुनाथ सरकार के मुताबिक 20,000 कुशल अश्वारोही सैनिक, 20,000 साधारण अश्वारोही सैनिक, 30,000 पैदल सैनिक और 1,000 हाथी सैनिक थे। बाबर की सेना में नवीनतम हथियार, तोपें और बंदूकें थीं। तोपें गाड़ियों में रखकर युद्ध स्थल पर लाकर प्रयोग की जाती थीं। सभी सैनिक पूर्ण रूप से कवच-युक्त एवं धनुष-बाण विद्या में एकदम निपुण थे। बाबर के कुशल नेतृत्व, सूझबूझ और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने सुल्तान इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। सुल्तान की सेना के प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। इससे गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का नितांत अभाव और सुल्तान की अदूरदर्शिता  का अवगुण आड़े आ रहा था।
दोनों तरफ से सुनियोजित तरीके से एक-दूसरे पर भयंकर आक्रमण हुए। सुल्तान की रणनीतिक अकुशलता और बाबर की सूझबूझ भरी रणनीति ने युद्ध को अंतत: अंजाम तक पहुंचा दिया। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। इस लड़ाई के उपरांत लोदी वंश का अंत और मुगल वंश का आगाज हुआ। इतिहासकार प्रो. एस.एम.जाफर के अनुसार, “इस युद्ध से भारतीय इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ। लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई। इस नए वंश ने समय आने पर ऐसे प्रतिभाशाली तथा महान् शासकों को जन्म दिया, जिनकी छत्रछाया में भारत ने असाधारण उन्नति एवं महानता प्राप्त की।”


पानीपत की दूसरी लड़ाई

पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर, 1556 को पानीपत के ऐतिहासिक मैदान पर ही शेरशाह सूरी के वंशज और मुहम्मद आदिलशाह के मुख्य सेनापति हेमू तथा बाबर के वंशज अकबर के बीच लड़ी गई। इस लड़ाई के बाद भी एक नए युग की शुरूआत हुई और कई नए अध्याय खुले। आदिलशाह शेरशाह सूरी वंश का अंतिम सम्राट था और ऐशोआराम से सम्पन्न था। लेकिन, उनका मुख्य सेनापति हेमू अत्यन्त वीर एवं समझदार था। उसने अफगानी शासन को मजबूत करने के लिए 22 सफल लड़ाईयां लड़ी। इसी दौरान 26 जनवरी, 1556 को दिल्ली में मुगल सम्राट हुमायुं की मृत्यु हो गई। उस समय उसके पुत्र अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष थी। इसके बावजूद उनके सेनापति बैरम खां ने अपने संरक्षण में शहजादे अकबर को दिल्ली दरबार के बादशाह की गद्दी पर बैठा दिया।
मुहम्मद आदिलशाह के मुख्य सेनापति हेमू




बाबर के वंशज अकबर


जब बैरम खां को सूचना मिली कि हेमू भारी सेना के साथ दिल्ली की तरफ बढ़ रहा है तो वह भी पूरे सैन्य बल के साथ दिल्ली से कूच कर गया। हालांकि सैन्य बल के मामले में हेमू का पलड़ा भारी था। इतिहासकारों के अनुसार हेमू की सेना में कुल एक लाख सैनिक थे, जिसमें 30,000 राजपूत सैनिक, 1500 हाथी सैनिक और शेष अफगान पैदल सैनिक एवं अश्वारोही सैनिक थे। जबकि अकबर की सेना में मात्र 20,000 सैनिक ही थे। दोनों तरफ के योद्धा अपनी आन-बान और शान के लिए मैदान में डटकर लड़े। शुरूआत में हेमू का पलड़ा भारी रहा और मुगलों में भगदड़ मचने लगी। लेकिन, बैरम खां ने सुनियोजित तरीके से हेमू की सेना पर आगे, पीछे और मध्य में भारी हमला किया और चक्रव्युह की रचना करते हुए उनके तोपखाने पर भी कब्जा कर लिया। मुगल सेना ने हेमू सेना के हाथियों पर तीरों से हमला करके उन्हें घायल करना शुरू कर दिया। मुगलों की तोपों की भयंकर गूंज से हाथी भड़क गए और वे अपने ही सैनिकों को कुचलने लगे। परिणामस्वरूप हेमू की सेना में भगदड़ मच गई और चारों तरफ से घिरने के बाद असहाय सी हो गई। इस भीषण युद्ध में हेमू सेना के मुख्य सहयोगी वीरगति को प्राप्त हो गए। इसी दौरान दुर्भाग्यवश एक तीर हेमू की आँख में आ धंसा। इसके बावजूद शूरवीर हेमू ने आँख से तीर निकाला और साफे से आँख बांधकर युद्ध जारी रखा। लेकिन, अधिक खून बह जाने के कारण हेमू बेहोश हो गया और नीचे गिर पड़ा। इसके बाद हेमू की सेना में भगदड़ मच गई और सभी सैनिक युद्धभूमि छोड़कर भाग खड़े हुए।
बेहोश एवं अत्यन्त घायल हेमू को मुगल सैनिक उठाकर ले गए। क्रूर मुगल सेनापति बैरम खाँ ने मुर्छित अवस्था में ही हेमू के सिर को तलवार से काट दिया। उसने हेमू के सिर को काबूल भेजा और धड़ को दिल्ली के प्रमुख द्वार पर लटका दिया, ताकि उनका खौफ देशभर में फैल जाए और कोई भी ताकत उनसे टकराने की हिम्मत न कर सके। इस प्रकार पानीपत की दूसरी लड़ाई में अकबर को उसके सेनापति बैरम खाँ की बदौलत भारी विजय हासिल हुई। इस विजय ने मुगल शासन को भारत में बेहद मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया। इसके साथ ही अकबर ने दिल्ली तथा आगरा के साथ-साथ हेमू के नगर मेवात पर भी अपना कब्जा जमा लिया।


पानीपत की तीसरी लड़ाई

पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की बेहद महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी बदलावों वाली साबित हुई। पानीपत की तीसरी जंग 250 वर्ष पूर्व 14 जनवरी, 1761 को मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ और अफगान सेनानायक अहमदशाह अब्दाली के बीच हुई। इस समय उत्तर भारत में सिक्ख और दक्षिण में मराठों की शक्ति का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ रहा था। हालांकि इस दौरान भारत आपसी मतभेदों व निजी स्वार्थों के कारण अस्थिरता का शिकार था और विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर था। इससे पूर्व नादिरशाह व अहमदशाह अब्दाली कई बार आक्रमण कर चुके थे और भयंकर तबाही के साथ-साथ भारी धन-धान्य लूटकर ले जा चुके थे।
सन् 1747 में अहमदशाह अब्दाली नादिरशाह का उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। अहमदशाह अब्दाली ने अगले ही वर्ष 1748 में भारत पर आक्रमण की शुरूआत कर दी। 23 जनवरी, 1756 को चौथा आक्रमण करके उसने कश्मीर, पंजाब, सिंध तथा सरहिन्द पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। वह अप्रैल, 1757 में अपने पुत्र तैमुरशाह को पंजाब का सुबेदार बनाकर स्वदेश लौट गया। इसी बीच तैमूरशाह ने अपने रौब को बरकरार रखते हुए एक सम्मानित सिक्ख का घोर अपमान कर डाला। इससे क्रोधित सिक्खों ने मराठों के साथ मिलकर अप्रैल, 1758 में तैमूरशाह को देश से खदेड़ दिया। जब इस घटना का पता अहमदशाह अब्दाली को लगा तो वह इसका बदला लेने के लिए एक बार फिर भारी सैन्य बल के साथ भारत पर पाँचवां आक्रमण करने के लिए आ धमका। उसने आते ही पुन: पंजाब पर अपना आधिपत्य जमा लिया। इस घटना को मराठों ने अपना अपमान समझा और इसका बदला लेने का संकल्प कर लिया। पंजाब पर कब्जा करने के उपरांत अहमदशाह अब्दाली रूहेला व अवध नवाब के सहयोग से दिल्ली की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए। उसने 1 जनवरी, 1760 को बरारघाट के नजदीक दत्ता जी सिन्धिया को युद्ध में परास्त करके मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उसने 4 मार्च, 1760 को मल्हार राव होल्कर व जनकोजी आदि को भी युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया।


मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ




अफगान सेनानायक अहमदशाह अब्दाली


अहमदशाह के निरन्तर बढ़ते कदमों को देखते हुए मराठा सरदार पेशवा ने उत्तर भारत में पुन: मराठा का वर्चस्व स्थापित करने के लिए अपने शूरवीर यौद्धा व सेनापति सदाशिवराव भाऊ को तैनात किया और इसके साथ ही अपने पुत्र विश्वास राव को प्रधान सेनापति बना दिया। सदाशिवराव भाऊ भारी सैन्य बल के साथ 14 मार्च, 1760 को अब्दाली को सबक सिखाने के लिए निकल पड़ा। इस जंग में दोनों तरफ के सैन्य बल में कोई खास अन्तर नहीं था। दोनों तरफ विशाल सेना और आधुनिकतम हथियार थे। इतिहासकारों के अनुसार सदाशिवराव भाऊ की सेना में 15,000 पैदल सैनिक व 55,000 अश्वारोही सैनिक शामिल थे और उसके पास 200 तोपें भी थीं। इसके अलावा उसके सहयोगी योद्धा इब्राहिम गर्दी की सैन्य टूकड़ी में 9,000 पैदल सैनिक और 2,000 कुशल अश्वारोहियों के साथ 40 हल्की तोपें भी थीं। जबकि दूसरी तरफ, अहमदशाह अब्दाली की सेना में कुल 38,000 पैदल सैनिक और 42,000 अश्वारोही सैनिक शामिल थे और उनके पास 80 बड़ी तोपें थीं। इसके अलावा अब्दाली की आरक्षित सैन्य टूकड़ी में 24 सैनिक दस्ते (प्रत्येक में 1200 सैनिक), 10,000 पैदल बंदूकधारी सैनिक और 2,000 ऊँट सवार सैनिक शामिल थे। इस प्रकार दोनों तरफ भारी सैन्य बल पानीपत की तीसरी लड़ाई में आमने-सामने आ खड़ा हुआ था।


14 जनवरी, 1761 को सुबह 8 बजे मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने तोपों की भयंकर गर्जना के साथ अहमदशाह अब्दाली का मुँह मोड़ने के लिए धावा बोल दिया। दोनों तरफ के योद्धाओं ने अपने सहयोगियों के साथ सुनियोजित तरीके से अपना रणकौशल दिखाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते शुरूआत के 3 घण्टों में दोनों तरफ वीर सैनिकों की लाशों के ढ़ेर लग गए। इस दौरान मराठा सेना के छह दल और अब्दाली सेना के 8,000 सैनिक मौत के आगोश में समा चुके थे। इसके बाद मराठा वीरों ने अफगानी सेना को बुरी तरह धूल चटाना शुरू किया और उसके 3,000 दुर्रानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अब्दाली सेना में मराठा सेना के आतंक का साया बढ़ने लगा। लेकिन, दूसरे ही पल अब्दाली व उसके सहयोगियों ने अपने युद्ध की नीति बदल दी और उन्होंने चक्रव्युह रचकर अपनी आरक्षित सेना के ऊँट सवार सैनिकों के साथ भूख-प्यास से व्याकुल हो चुकी मराठा सेना पर एकाएक भीषण हमला बोल दिया। इसके बाद बाजी पलटकर अब्दाली की तरफ जा पहुंची।


मराठा वीरों को अब्दाली के चक्रव्युह से जान बचाकर भागना पड़ा। सदाशिवराव भाऊ की स्थिति भी एकदम नाजुक और असहाय हो गई। दिनभर में कई बार युद्ध की बाजी पलटी। कभी मराठा सेना का पलड़ा भारी हो जाता और कभी अफगानी सेना भारी पड़ती नजर आती। लेकिन, अंतत: अब्दाली ने अपने कुशल नेतृत्व व रणकौशल की बदौलत इस जंग को जीत लिया। इस युद्ध में अब्दाली की जीत के साथ ही मराठों का एक अध्याय समाप्त हो गया। इसके साथ ही जहां मराठा युग का अंत हुआ, वहीं, दूसरे युग की शुरूआत के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभुत्व भी स्थापित हो गया। इतिहासकार सिडनी ओवेन ने इस सन्दर्भ में लिखा कि – “पानीपत के इस संग्राम के साथ-साथ भारतीय इतिहास के भारतीय युग का अंत हो गया।”


पानीपत के तीसरे संग्राम में भारी हार के बाद सदाशिवराव भाऊ के सन्दर्भ में कई किवदन्तियां प्रचलित हैं। पहली किवदन्ती यह है कि सदाशिवराव भाऊ पानीपत की इस जंग में शहीद हो गए थे और उसका सिर कटा शरीर तीन दिन बाद लाशों के ढ़ेर में मिला था। दूसरी किवदन्ती के अनुसार सदाशिवराव भाऊ ने युद्ध में हार के उरान्त रोहतक जिले के सांघी गाँव में आकर शरण ली थी। तीसरी किवदन्ती यह है कि भाऊ ने सोनीपत जिले के मोई गाँव में शरण ली थी और बाद में नाथ सम्प्रदाय में दक्ष हो गए थे। एक अन्य किवदन्ती के अनुसार, सदाशिवराव भाऊ ने पानीपत तहसील में यमुना नदी के किनारे ‘भाऊपुर’ नामक गाँव बसाया था। यहां पर एक किले के अवशेष भी थे, जिसे ‘भाऊ का किला’ के नाम से जाना जाता था।


पानीपत की लड़ाई मराठा वीर विपरित परिस्थितियों के कारण हारे। उस दौरान दिल्ली और पानीपत के भीषण अकालों ने मराठा वीरों को तोड़कर कर रख दिया था। मैदान में हरी घास का तिनका तक दिखाई नहीं दे रहा था। मजबूरी में पेड़ों की छाल व जड़ें खोदकर घास के स्थान पर घोड़ों को खिलानी पड़ीं। सेनापति सदाशिवराव भाऊ भी भूख से जूझने को विवश हुआ और सिर्फ दूध पर ही आश्रित होकर रह गया। छापामार युद्ध में माहिर मराठा सेना को पानीपत के समतल मैदान में अपनी इस विद्या का प्रयोग करने का भी मौका नहीं मिल पाया। अत्याधुनिक हथियारों और तोपों का मुकाबला लाखों वीरों ने अपनी जान गंवाकर किया। परिस्थिति और प्रकृति की मार ने मराठा वीरों के हिस्से में हार लिख दी।
सांसद यशोधरा राजे सिंधिया के अनुसार, ‘पानीपत का तृतीय संग्राम एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा है। पानीपत संग्राम में लाखों मराठाओं ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।’ इतिहासकार डा. शरद हेवालकर के कथनानुसार, ‘पानीपत का तीसरा युद्ध, विश्व के इतिहास का ऐसा संग्राम था, जिसने पूरे विश्व के राजनीतिक पटल को बदलकर रख दिया। पानीपत संग्राम हमारे राष्ट्रीय जीवन की जीत है, जो हमारी अखण्डता के साथ चलती आई है।’

पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण धरोहर है। इस जंग में बेशक मराठा वीरों को हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन भारतीय इतिहास में उनकी वीरता का अमिट यशोगान अंकित हो चुका है। हरियाणा की धरती पर लड़ी गई यह लड़ाई, आज भी यहां के लोगों के जहन में गहराई तक रची बसी है। मराठा वीरों के खून से सनी पानीपत की मिट्टी को आज भी बड़े मान, सम्मान एवं गौरव के साथ नमन किया जाता है। मराठा वीरों के खून से मैदान में खड़ा आम का पेड़ भी काला पड़ गया था। इसी कारण यहां पर युद्धवीरों की स्मृति में उग्राखेड़ी के पास ‘काला अंब’ स्मारक बनाया गया और इसे हरियाणा प्रदेश की प्रमुख धरोहरों में शामिल किया गया। इन सबके अलावा पानीपत में ही एक देवी का मन्दिर है। यह मन्दिर मराठों की स्मृति का द्योतक है। इसे मराठा सेनापति गणपति राव पेशवा ने बनवाया था।


देवी का मन्दिर


मराठा वीरों की वीरता से जुड़े गीत, भजन, आल्हा, अलग-अलग किस्से, कहानियों का ओजस्वी रंग हरियाणवी लोकसंस्कृति में सहज देखा जा सकता है। जोगी मराठा वीरों की वीरता के लोकगीत गाते हुए गर्व महसूस करते हैं। एक हरियाणवी गीत में सदाशिवराव भाऊ की माँ युद्व के लिए निकल रहे भाऊ को शनवार बाड़े की ड्योढ़ी पर रोक लेती है और अपनी चिन्ता प्रकट करते हुए कहती है -


तू क्या शाह से लड़ेगा मन में गरवाया।
बड़े राव दत्ता पटेल का सिर तोड़ भगाया।
शुकताल पै भुरटिया ढूंढा ना पाया।
बेटा, दक्खिन बैठ करो राज, मेरी बहुत ही माया।


(अर्थात्, बेटा! तू अब्दाली से लड़ने और उसे हराने के अहंकार को मन से निकाल दो। तुम जानते हो कि उसने शुक्रताल पर दत्ता जी की गर्दन उतारकर कैसी दुर्दशा कर दी थी। इसलिए बेटा, तू दक्षिण में बैठकर राज कर ले, हमारे पास बहुत बड़ी धनमाया है।)


माँ के मुँह से ऐसी बात सुनकर इस लोकगीत में शूरवीर भाऊ जवाब देता है -


भाऊ माता से कहै एक अर्ज सुणावै।
कहै कहाणी बावली, क्यूं हमनैं डरावै।
मेरा नवलाख लेज्या दखनी कौण सामनै आवै।
अटक नदी मेरी पायगा घोड़ों के जल प्यावै।
तोप कड़क कै खुणे देश गणियर गरजावै।
दखन तो सोई आवैंगे जिननैं हरलावै।


(अर्थात्, हे माता, तुम मुझे क्यों रोक रही हो? मुझे यह कहानी सुनाकर इतना क्यो डरा रही हो? मेरे सामने भला कौन ठहर सकता है। मैं अपने घोड़ों को अटक नदी का पानी पिलाकर आऊँगा। अपनी शक्तिशाली तोपों की मार से सभी शत्रुओं के छक्के छुड़ा दुँगा। भगवान की कृपा से मैं दक्षिण सकुशल वापस तो आऊँगा ही, इसके साथ ही गिलचा को पूरा तबाह करके आऊँगा।)


इस प्रकार मराठा वीरों की गाथाएं न केवल हरियाणा की संस्कृति में गहराई तक रची बसी हैं, इसके साथ ही यहां के लोगों में उनके प्रति अगाध श्रद्धा भरी हुई है। उदाहरण के तौरपर जब कोई छोटा बच्चा छींकता है तो माँ के मुँह से तुरन्त निकलता है, ‘जय छत्रपति माई रानियां की।’ इसका मतलब यहां की औरतें अपनी ईष्ट देवी के साथ-साथ मराठो की वीरता का प्रतीक छत्रपति शिवाजी का भी स्मरण करती हैं। केवल इतना ही नहीं हरियाणा में निवास करने वाली रोड़ जाति उसी पुरानी मराठा परंपरा को संजोए हुए है। इस जाति का मानना है कि पानीपत के तीसरे युद्ध में करारी हार होने के कारण काफी संख्या में मराठे वीर दक्षिण नहीं गए और यहीं पर बस गए और वे उन्हीं वीरों के वंशज हैं। जो मराठा वीर यहीं बस गए थे, वे ही बाद में रोड़ मराठा के नाम से जाने गए। इस प्रकार हरियाणा प्रदेश मराठों के शौर्य एवं बलिदान को अपने हृदय में बड़े गर्व एवं गौरव के साथ संजोए हुए है 

(नोट : लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
राजेश कश्यप